दुआ के कुबूल होने
-
शरई अहकामः
आक़ के मामले में बच्चों को माता-पिता की विरासत मिलेगी?
हौज़ा | यदि कोई व्यक्ति अपने किसी बच्चे को आक़ करके कहे, "मैंने तुझे आक़ कर दिया है" तो उस पर क्या प्रभाव पड़ेगा? क्या ऐसे बच्चों को अपने माता-पिता की विरासत मिलेगी?
-
दुआ ज़िन्दगी की मुश्किलों में इंसान के दिल को मज़बूत रखती हैं।
हौज़ा/दुआ ज़िन्दगी की मुश्किलों के सामने इंसान को सब्र व हौसला देती है हर वो शख़्स जो अपनी ज़िन्दगी के दौरान किसी दुर्घटना का शिकार होता है मुश्किलें और कठिनाइयां उसे घेर लेती है दुआ इंसान को ताक़त व सामर्थ्य देती हैं।
-
:दिन कि हदीस
ऐसा अमल जो दुआ को क़बूल होने से रोक देता हैं।
हौज़ा/हज़रत रसूल अल्लाह स.ल.व.व. ने एक रिवायत में एक ऐसे अमल की ओर इशारा किया है जो दुआ कबूल होने से रोक देती हैं।
-
हदीस की रौशनी में:
फ़िक्र व ज़ेहन की मुकम्मल तवज्जो से दुआ क़ुबूल होती हैं।
हौज़ा/दुआ के क़ुबूल होने की एक शर्त यह है कि उसे पूरे ज़ेहन व दिल की पूरी तवज्जो से माँगें, कभी कभी सिर्फ़ ज़बान से कहा जाता है ए अल्लाह मुझे माफ़ कर दे, ऐ अल्लाह मेरी रोज़ी बढ़ा दे, ऐ अल्लाह मेरा क़र्ज़ अदा कर दे” दस साल तक इंसान इस तरह से दुआएँ करता रहे, बिलकुल क़ुबूल नहीं होगी जब तक वह फ़िक्र व ज़ेहन की मुकम्मल तवज्जो से दुआ न करें।
-
:दिन की हदीस
दुआ के यकीनी कुबूल होने का राहे हाल
हौज़ा/ हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने एक रिवायत में दुआ के यकीनी कुबूल होने के राहे हाल की ओर इशारा किया हैं।