मुनाफ़िक़
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इत्रे क़ुरआनः सूर ए नेसा !
मुनाफ़ेक़ीन से घृणा और अल्लाह की आज्ञाओं का खंडन
हौज़ा / यह आयत हमें मुनाफ़िकों की पहचान करने का एक मानक देती है कि उनका व्यवहार अल्लाह और रसूल (स) के आदेशों का पालन करने से दूरी पर आधारित है। एक सच्चा मुसलमान हमेशा अल्लाह और उसके रसूल की पुकार को स्वीकार करता है।
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इत्रे कुरान:
सूरा ए बकरा: मुनाफ़िक़ों में सच सुनने, सच देखने और सच बोलने की ताक़त नहीं होती
हौज़ा / सत्य को सुनने, देखने और बोलने में असमर्थता वह अंधकार है जिससे पाखंडी पीड़ित होते हैं। गुमराही के अँधेरे से घिरे पाखंडियों के पास मुक्ति का कोई रास्ता नहीं है और ये लोग सच्चे धर्म की ओर नहीं लौट सकते।
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इत्रे कुरान:
सूरा ए बकरा: पाखंडीयो के गुरू अथवा नेता दुष्ट षड्यंत्रकारियों और शैतानों की तरह होते हैं
हौज़ा / पाखंडीयो का इस्लाम का दिखावा करने का लक्ष्य मुसलमानों और विश्वासियों के समुदाय का मज़ाक उड़ाना है। पैगंबर (स) की बेसत के समय, पाखंड के आंदोलन के नेता इस्लाम के प्रति अपने अनुयायियों के आकर्षण के बारे में चिंतित थे।
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इत्रे कुरान:
सूरा ए बकरा: पाखंडी ऐसे दंगाई हैं जो सुधार का दावा करते हैं
हौज़ा / पाखंडीयो की दिल की बीमारी उनके भ्रष्टाचार को समझने के रास्ते में एक बाधा है। पाखंडीयो को भ्रष्टाचार और विनाश फैलाने के लिए आस्तिकों के कार्यों और चालो से अवगत होने की आवश्यकता है।
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इस्लामी कैलेंडर: 28 रजबुल मुरज्जब 1442
हौज़ा / इस्लामी कैलेंडरः पैगंबर (स.अ.व.व.) बहुदेववादियों (मुशरेकीन) की वजह से मक्का से मदीना जाने के लिए मजबूर हुए। तो इमाम हुसैन (अ.स.) को उन मुशरेकीन और पाखंडीयो की संतानो की साजिश के कारण 28 रजब 60 हिजरी को मदीना छोड़कर मक्का और फिर इराक़ की ओर हिजरत करना पड़ी। ये मुशरेकीन और पाखंडीयो की मुशरिक और मुनाफिक संतान ही थी जिन्होने इमाम हुसैन (अ.स.) को शहीद करके कहाः काश बदर मे मार दिए गए हमारे पूर्वज आज जीवित होते और मेरे इस काम को देखते हुए कहते तेरे हाथ सलामत रहे।