गुरुवार 5 दिसंबर 2024 - 07:39
 ईमानदारी का मूल्य और पाखंड की वास्तविकता

हौज़ा/ यह आयत सिखाती है कि सफलता और कृपा केवल उन लोगों के लिए है जो ईमानदारी और विश्वास के साथ धर्म की सेवा करते हैं। पाखंड और सांसारिक हित के लिए धार्मिक मामलों में शामिल होने से न तो इस लोक में और न ही परलोक में सफलता मिलती है।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी

بسم الله الرحـــمن الرحــــیم  बिस्मिल्लाह अल-रहमान अल-रहीम

وَلَئِنْ أَصَابَكُمْ فَضْلٌ مِنَ اللَّهِ لَيَقُولَنَّ كَأَنْ لَمْ تَكُنْ بَيْنَكُمْ وَبَيْنَهُ مَوَدَّةٌ يَا لَيْتَنِي كُنْتُ مَعَهُمْ فَأَفُوزَ فَوْزًا عَظِيمًا.    वलइन असाबकुम फ़ज़्लुम मिनल्लाहे लयकूलन्ना कअन लम तकुन बैनकुम व बयनहू मवद्दतुन या लैतनी कुन्तो मआहुम फ़आफ़ूजा फ़ौज़न अज़ीमा (नेसा 73)

अनुवाद: और यदि ईश्वर की कृपा और दया तुम्हें मिल जाये तो मानो उनमें कभी मित्रता ही न रही हो, वे कहने लगेंगे कि काश हम भी उनके साथ होते और सफलता के महान लक्ष्य तक पहुँच गये होते।

विषय:

पाखंडियों की मनोवृत्ति और उनकी अभिलाषाएँ

पृष्ठभूमि:

यह आयत सूरह निसा से है और युद्ध के दौरान ईमानवालों और पाखंडियों के व्यवहार का वर्णन करती है। इस आयत में पवित्र क़ुरआन उन लोगों के मनोविज्ञान को उजागर करता है जो कठिन समय में मुसलमानों का साथ छोड़ देते हैं, लेकिन जब जीत या सफलता मिलती है, तो वे उसका हिस्सा बनने की इच्छा रखते हैं।

तफ़सीर:

1. मुनाफ़िकों का मनोविज्ञान: आयत में मुनाफ़िकों के रवैये की ओर इशारा किया गया है कि जब मुसलमानों पर मुसीबतें आती हैं तो वे दूर रहते हैं, लेकिन जब अल्लाह की कृपा और अनुग्रह प्रकट होता है, तो वे अफसोस और पश्चाताप व्यक्त करते हैं।

2. प्यार की कमी: ये लोग अपनी बातचीत और अफ़सोस में ऐसे व्यक्त करते हैं जैसे उनका विश्वासियों के साथ कभी कोई रिश्ता ही न रहा हो। उनका बाहरी और आंतरिक हिस्सा अलग-अलग है, जो पाखंड का प्रतीक है।

3. सांसारिक सफलता की इच्छा: पाखंडी केवल सांसारिक सफलता और लाभ की इच्छा रखते हैं, न कि धर्म की सेवा या अल्लाह की प्रसन्नता की।

महत्वपूर्ण बिंदु:

ईमानदारी और पाखंड के बीच अंतर: विश्वास करने वाले अल्लाह की खुशी के लिए बलिदान देते हैं, जबकि पाखंडी केवल तभी मदद करना चाहते हैं जब यह फायदेमंद हो।

अल्लाह का इनाम: अल्लाह का इनाम केवल उन लोगों के लिए है जो सच्चे हैं और ईमान रखते हैं, पाखंडियों के लिए नहीं।

पछतावे का अंत: यह पछतावा इस दुनिया में शर्म और आख़िरत में सज़ा का कारण बन सकता है।

परिणाम:

यह आयत हमें सिखाती है कि सफलता और कृपा केवल उन्हीं को मिलती है जो ईमानदारी और विश्वास के साथ धर्म की सेवा करते हैं। पाखंड और सांसारिक हित के लिए धार्मिक मामलों में शामिल होने से न तो इस लोक में और न ही परलोक में सफलता मिलती है।

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सूर ए नूर की तफसीर

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