۳ آذر ۱۴۰۳ |۲۱ جمادی‌الاول ۱۴۴۶ | Nov 23, 2024
इत्रे क़ुरआन

हौज़ा / यह आयत हमें मुनाफ़िकों की पहचान करने का एक मानक देती है कि उनका व्यवहार अल्लाह और रसूल (स) के आदेशों का पालन करने से दूरी पर आधारित है। एक सच्चा मुसलमान हमेशा अल्लाह और उसके रसूल की पुकार को स्वीकार करता है।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी

بسم الله الرحـــمن الرحــــیم   बिस्मिल्लाह अल-रहमान अल-रहीम

وَ إِذَا قِيلَ لَهُمْ تَعَالَوْا إِلَىٰ مَا أَنْزَلَ اللَّهُ وَإِلَى الرَّسُولِ رَأَيْتَ الْمُنَافِقِينَ يَصُدُّونَ عَنْكَ صُدُودًا   व इज़ क़ीला लहुम तआलौ ऐला मा अंज़लल्लाहो व ऐलर रसूले रअयतल मुनाफ़ेक़ीना यसुद्दूना अंका सोदूदा (नेसा 61)

अनुवाद: और जब उनसे कहा जाएगा: अल्लाह और उसके रसूल के हुक्म पर आओ, तो तुम पाखंडियों को इसका सख्ती से खंडन करते हुए देखोगे।

विषय:

मुनाफ़ेक़ीन से घृणा और अल्लाह की आज्ञाओं का खंडन

पृष्ठभूमि:

यह आयत सूर ए नेसा से है जो मदीना में नाज़िल हुई थी। मदीना में मुसलमानों के बीच पाखंडियों का एक समूह था जिसने स्पष्ट रूप से इस्लाम स्वीकार कर लिया था लेकिन दिल से इसका विरोध किया था। जब भी अल्लाह के दूत (ﷺ) ने लोगों को अल्लाह की आज्ञाओं का पालन करने के लिए आमंत्रित किया, तो पाखंडी शत्रुता और इनकार का रवैया अपना लेते थे।

तफ़सीर:

1. अल्लाह और रसूल का दावा: अल्लाह तआला ने प्रकट आदेशों और अल्लाह के रसूल (स) के अनुसरण को विश्वास का आधार घोषित किया।

2. मुनाफ़िक़ों का इनकार: मुनाफ़िक़ न सिर्फ़ अल्लाह और रसूल के पास आने से बचते थे, बल्कि दूसरों को भी आने से रोकते थे।

3. सुद्दुद का अर्थ: "सुद्दुद" का अर्थ है दृढ़ता से रोकना या विरोध करना। यह पाखंडियों के इन्कार की गंभीरता को दर्शाता है।

महत्वपूर्ण बिंदु:

1. पाखंड की भूमिका: पाखंडी धर्म के दुश्मन हैं जो ऊपरी तौर पर विश्वास का दावा करते हैं लेकिन अपने दिल में अविश्वास का पालन करते हैं।

2. अल्लाह तआला के हुक्म का महत्व: अल्लाह और उसके रसूल की आज्ञा का पालन करना हर मुसलमान पर अनिवार्य है, इससे इनकार करना पाखंड की निशानी है।

3. पाखण्डियों का लक्षण : धर्म के मूल नियमों का पालन न करना तथा दूसरों को ऐसा करने से रोकना।

परिणाम:

यह आयत हमें मुनाफ़िक़ों की पहचान करने का एक उपाय प्रदान करती है कि उनका व्यवहार अल्लाह की आज्ञाओं से दूरी और रसूल ﷺ के अनुसरण पर आधारित है। एक सच्चा मुसलमान हमेशा अल्लाह और उसके दूत की पुकार को स्वीकार करता है।

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तफ़सीर सूर ए नेसा

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