۲ آذر ۱۴۰۳ |۲۰ جمادی‌الاول ۱۴۴۶ | Nov 22, 2024

सय्यद अली हाशिम आबिदी

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  • वसीम और शकील एक ही सिक्के के दो रूखः अली हाशिम आब्दी

    वसीम और शकील एक ही सिक्के के दो रूखः अली हाशिम आब्दी

    हौज़ा / वसीम और शकील अलग नहीं हैं  बल्कि एक ही सिक्के के दो रुख हैं क्योंकि जिस तरह इंकार क़ुरआन और तौहीने रेसालत कर के वसीम मुसलमान नहीं उसी तरह वली ए ख़ुदा और जानशीने रसूल स०अ०व०अ० की तौहीन कर के शकील अहमद भी इस्लाम का मोख़ालिफ हो गया और हज़रत इमाम महदी अ०ज० पर सिर्फ शियों का अक़ीदा नहीं बल्कि अहले सुन्नत का भी अक़ीदा है लेहाज़ा हज़रत इमाम महदी अ०ज० की तौहीन करने वाला सुन्नी भी नहीं हो सकता!

  • इस्लाम की लोकतांत्रिक व्यवस्था खतरे से बाहर आ गई , मौलाना सफ़ी हैदर

    इस्लाम की लोकतांत्रिक व्यवस्था खतरे से बाहर आ गई , मौलाना सफ़ी हैदर

    हौज़ा / ईरान के वफादार और जागरूक लोगों ने अपनी अच्छी पसंद से एक बार फिर साबित कर दिया है कि वे विलायत-ए-फकीह हुकूमत के पक्ष में हैं और वैश्विक उपनिवेशवाद के खिलाफ हैं। औपनिवेशिक षडयंत्र और प्रतिबंध उनकी स्थिरता को कभी हिला नहीं सकते।

  • अल्लाह ने हराम में शिफा नही रखी: मौलाना सय्यद अली हाशिम आबिदी

    अल्लाह ने हराम में शिफा नही रखी: मौलाना सय्यद अली हाशिम आबिदी

    हौज़ा / अल्लाह ने किसी भी हराम और अधर्म में शिफा नहीं रखा है और इसमें कोई फायदा नहीं है चाहे वह कोई वस्तु हो या व्यक्ति, कोई भी अच्छा काम किसी बुरे व्यक्ति द्वारा नहीं किया जा सकता है, यह एक अस्थायी लाभ हो सकता है लेकिन यही लाभ किसी बड़े नुकसान का प्रस्ताव होगा।

  • वक्ति ईमान गुमराही और तबाही है:मौलाना सय्यद अली हाशिम आबिदी

    वक्ति ईमान गुमराही और तबाही है:मौलाना सय्यद अली हाशिम आबिदी

    हौज़ा / हर युग में ऐसे लोग रहे हैं जिनका धर्म और आस्था अस्थायी थी जैसे कि हमीद बिन क़हतबा कि उसने अपनी दुनिया के लिए धर्म का सौदा किया और 60 निर्दोष सादात के खून से अपना हाथ रंगीन किया जिसके नतीजे में बंदगी से महरूमी और अबदी तबाही उसका मुकद्दर बनी।जनाबे बोहलोल जैसे दीनदारों ने इताअते इमाम में मसनदे इल्म व फकाहत को खैर बाद कहा,अपनी दुनयवी इज़्ज़त व एहतेराम की कुर्बानी दी, लोगों ने मज़ाक उड़ाया लेकिन अबदी इज़्ज़त, फज़ीलत, करामत और शराफ़त उनका मुकद्दर बन गई। 

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