۱۵ تیر ۱۴۰۳ |۲۸ ذیحجهٔ ۱۴۴۵ | Jul 5, 2024
मौलाना अली हाशिम

हौज़ा / वसीम और शकील अलग नहीं हैं  बल्कि एक ही सिक्के के दो रुख हैं क्योंकि जिस तरह इंकार क़ुरआन और तौहीने रेसालत कर के वसीम मुसलमान नहीं उसी तरह वली ए ख़ुदा और जानशीने रसूल स०अ०व०अ० की तौहीन कर के शकील अहमद भी इस्लाम का मोख़ालिफ हो गया और हज़रत इमाम महदी अ०ज० पर सिर्फ शियों का अक़ीदा नहीं बल्कि अहले सुन्नत का भी अक़ीदा है लेहाज़ा हज़रत इमाम महदी अ०ज० की तौहीन करने वाला सुन्नी भी नहीं हो सकता!

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, ख़ुदा ग़रीक़े रहमत करे मरहूम आयतुल्लाह सय्यद तय्यब आक़ा जज़ायरी र०अ० को, आप ने बयान किया था कि जब 8 शव्वाल 1344 हिजरी को आले सऊद ने जन्नतुलबक़ी वीरान कर दिया तो पूरे आलमे इस्लाम में बेचैनी फैल गई, सब ने आले सऊद से इज़हारे बेज़ारी और उनके खेलाफ एहतेजाज बुलंद किया!

लखनऊ में शिया सुन्नी उलमा और अवाम ने एक साथ मिलकर आले सऊद के खेलाफ आवाज़े एहतेजाज बुलंद की, लखनऊ में कभी शिया उलमा अहले सुन्नत के यहाँ जाते कभी अहले सुन्नत उलमा शियों के यहाँ आते, सब की ज़बान पर एक ही नारा था!
आले सऊद बर्बाद

चेराग़े दीने मुहम्मदी रौशन बाद
मरहूम आयतुल्लाह सय्यद तय्यब आक़ा जज़ायरी र०अ० ने फरमाया उस वक़्त मेरी कमसिनी थी लेकिन मुझे अच्छी तरह याद है कि मैं अपने वालिदे मरहूम (आयतुल्लाह मुफ्ती मुहम्मद अली र०अ०) की उंगलियां पकड़ कर इन जलसों मे जाता था, खतरे को महसूस करते हुए दुश्मन ने साज़िश रची और मुसलमानों को आपस में ही लड़ा दिया!

यानी जो मुसलमान जन्नतुलबक़ी के लिए आले सऊद के ख़ेलाफ एहतेजाज कर रहे थे वह ख़ुद आपसी एख्तेलाफ का शिकार हो गए, जिसका सब से बड़ा नुक़सान तामीरे बक़ी तहरीक को हुआ कि आज तक बक़ी वीरान है!

इसी तरह आज जब इस्लाम व इंसानियत के दुश्मन वसीम ने क़ुरआन ए करीम और रसूले इस्लाम स०अ०व०अ० की शान में गुस्ताख़ी की तो सारे मुसलमानों ने मिल कर उसके ख़ेलाफ एहतेजाज किया, खासकर शिया उलमा और मोमनीन ने उसके खेलाफ एहतेजाज भी किया और क़ानूनी कार्वाई का सरकार से मांग भी की, एफ आई आर दर्ज कराई और उसे मुर्तद क़रार दिया और कुछ उलमा ने तो खुल कर कहा कि जिस तरह सलमान रुश्दी का अहले सुन्नत से कोई वास्ता नहीं उसी तरह वसीम का शिया मज़हब से कोई वास्ता नहीं बल्कि वह मुसलमान ही नहीं! और ख़ुद वसीम ने भी अपने मुसलमान न होने का एलान किया बल्कि अपना नाम तक बदल दिया!

लेकिन इन सबके बावजूद शकील अहमद मलऊन ने वसीम को राफ़ज़ी कहते हुए अल्लाह की आख़री हुज्जत और वली, रसूलुल्लाह स०अ०व०अ० के बारहवें जानशीन बारहवें इमाम इमाम ज़माना अ०ज० की तौहीन की और शियों के क़ुरआनी अक़ीदे पर बेबुन्याद इल्ज़ाम लगाया!

ज़ाहिर है दुश्मन ख़ामोश बैठने वाला नहीं है लेहाज़ा पहले उसने वसीम के ज़रीए क़ुरआन व रसूल स०अ०व०अ० की तौहीन करा कर मुसलमानों के अक़ीदे और जज़्बात से खेलना चाहा लेकिन जब मुसलमानों ने सूझ बूझ से काम लेते हुए आपसी इत्तेहाद से दुश्मन की साज़िश को नाकाम बना तो दुश्मन ने अपने दूसरे एजेंट और ग़ुलाम शकील अहमद मलऊन को मैदान में उतारा और इस जाहिल, बेदीन ने अल्लाह की आख़री हुज्जत और वली, रसूलुल्लाह स०अ०व०अ० के बारहवें जानशीन बारहवें इमाम इमाम ज़माना अ०ज० की शान में गुस्ताख़ी करते हुए इस्लामी इत्तेहाद को ख़त्म करने की नाकाम कोशिश की कि मुसलमान वसीम को भूल कर आपस में ही लड़ जायें और वसीम बच जाए!

वसीम और शकील अलग नहीं हैं बल्कि एक ही सिक्के के दो रुख हैं क्योंकि जिस तरह इंकार क़ुरआन और तौहीने रेसालत कर के वसीम मुसलमान नहीं उसी तरह वली ए ख़ुदा और जानशीने रसूल स०अ०व०अ० की तौहीन कर के शकील अहमद भी इस्लाम का मोख़ालिफ हो गया और हज़रत इमाम महदी अ०ज० पर सिर्फ शियों का अक़ीदा नहीं बल्कि अहले सुन्नत का भी अक़ीदा है लेहाज़ा हज़रत इमाम महदी अ०ज० की तौहीन करने वाला सुन्नी भी नहीं हो सकता!
ख़ुदा दोनों पर लानत करे!

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