शनिवार 28 दिसंबर 2024 - 08:37
प्रमुख भारतीय शिया मुफ़स्सेरीन की अरबी तफ़सीरो का परिचय

हौज़ा / कुरआन एक सार्वभौमिक पुस्तक है, जिसके अनुवाद और व्याख्याएँ दुनिया की लगभग सभी भाषाओं में उपलब्ध हैं, लेकिन अरबी भाषा को कुरआन की सबसे अधिक व्याख्याएँ इसी भाषा में लिखे जाने का गौरव प्राप्त है।

लिखित और व्यवस्था: डॉ. मौलाना शाहवर हुसैन अमरोहवी

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी पवित्र कुरान एक सार्वभौमिक पुस्तक है, जिसके अनुवाद और व्याख्याएँ दुनिया की लगभग सभी भाषाओं में उपलब्ध हैं, लेकिन अरबी भाषा को पवित्र कुरान की सबसे अधिक व्याख्याएँ इस भाषा में लिखे जाने का गौरव प्राप्त है।

अल्हम्दुलिल्लाह, भारतीय शिया विद्वानों को भी यह सम्मान प्राप्त है कि उन्होंने भी गिरानबहा तफ़सीर लिखकर ज्ञान की दुनिया में बहुत योगदान दिया है।

हम यहां केवल कुछ ही विद्वानों का उल्लेख कर रहे हैं, जिन्होंने यह महान सेवा करके देश व राष्ट्र का नाम रोशन किया।

1- शेख मुबारक नागुरी (निधन 1001 हिजरी) 10वीं सदी हिजरी के एक प्रसिद्ध कुरआन के मुफ़स्सिर हैं, उन्होंने तफ़सीर मन्बअ ओयून अल मआनी मुत्तलअ शुमूसुल मसानी,को पाँच खंडों में लिखा है यह तफ़सीर अपनी विषय-वस्तु की दृष्टि से विशेष महत्व रखती है, इसकी पांडुलिपि लखनऊ में मुमताज उलमा की लाइब्रेरी में सुरक्षित है।

2- अबुल फ़ैज़ फ़ैज़ी (मृत्यु 1004) अरबी में कुरान के एक गौरवान्वित व्याख्याकार हैं, उन्होंने बिना बिंदी के एक तफ़सीर लिखी, जिसे स्वातेउल इल्हाम कहा जाता है। यह तफ़सीर 10 रबीअ उस-सानी1002 हिजरी को दो साल की छोटी अवधि में पूरी हुई  इसे एक विद्वत्तापूर्ण कृति कहा जाता है, इस भाष्य पर काजी नूरुल्लाह शुस्त्री ने बिना बिन्दु के भाष्य (तक़रीज़) भी लिखा था।

3- मुल्ला ताहिर दकनी (निधन 952 हिजरी) बीजापुर के जलील उल क़द्र शिया विद्वान जिन्होने धर्म के प्रचार में बहुमूल्य सेवाएँ दीं, उन्होंने तफ़सीर बैज़ावी पर एक शोध नोट लिखा।

4- क़ाज़ी नूरुल्लाह शूस्तरी शहीदे सालिस (1019 हिजरी)
11वीं शताब्दी हिजरी के एक प्रसिद्ध विद्वान, धर्मशास्त्री और मुफ़स्सिर उन्हें राजा जहाँगीर ने शहीद कर दिया था। उनकी तफ़सीर से संबंधित कई संकेत मिलते हैं।
उनसुल वहीद फ़ि तफ़सीर आयतिल अदले वत-तौहीद
तफ़सीर इन्नमल-मुशरेकूना नजिस...
सहाबिल मतीर फ़ी तफ़सीर आयतित तत्हीर, यह तफ़सीर नासिरिया लाइब्रेरी, लखनऊ में उपलब्ध है।
रफ़्उल-क़द्रे फ़ि तफ़सीर आयत शरहिस सद्र तफ़सीर बैज़ावी पर हाशिया है, इसकी पांडुलिपि नासिरियाह पुस्तकालय में दो खंडों में संरक्षित है।

5- सय्यद शरीफुद्दीन शूस्तरी (1020 एएच)
क़ाज़ी नूरुल्लाह शूस्तरी के बड़े पुत्र थे, उन्होंने तफ़सीर बैदावी पर एक शोध नोट लिखा था।

6-सय्यद अला-उद-दौला शूस्तरी (1080 एएच)
तफ़सीर में अत्यधिक कुशल, उन्होंने तफ़सीर बैसावी पर एक यादगार नोट लिखा।

7- शेख मुहम्मद अली हज़ी बारहवीं शताब्दी हिजरी के महान टिप्पणीकार है उन्होंने कई तफ़सीरे लिखीं।
तफ़सरी सूरतुल इख़्लाख, तफ़सीर शजरात अल-तूर फ़ी शरह आयतिन नूर, इस तफ़सीर की पांडुलिपी रज़ा लाइब्रेरी में मौजूद हैं।

8- मौलाना मुहम्मद हुसैन 13वीं शताब्दी हिजरी के एक प्रमुख मुफ़स्सिर है आपने खुलासातुत तफ़सीर लिखा, जो 1259 हिजरी में लिखा गया था, जोकि नासिरिया लाइब्रेरी, लखनऊ में संरक्षित है।

9- मुमताज उलमा सैयद मुहम्मद तकी लखनऊ (1289 हिजरी) 13वीं सदी हिजरी के एक गौरवान्वित मुफ़स्सिर थे, उन्होंने यनाबी अल-अनवार फ़ी तफ़सीर कलामुल्लाहिल जब्बार को चार भागों में लिखा था, जो सुलतानुल मद्रारिस लखनऊ की सुल्तान लाइब्रेरी में उपलब्ध है।

10- मुफ़्ती मुहम्मद अब्बास शुस्तरी (1306 एएच)
अल्लामा ज़ुल्फ़ुनुन और अवध सरकार लखनऊ में न्यायाधीश के पद पर थे, उनकी प्रसिद्ध तफ़सीर रवायेहुल कुरान फ़ी फ़ज़ाइले ओमानाइर रहमान है 1278 हिजरी में जाफ़री प्रकाशन लखनऊ से प्रकाशित हुई थी।

11- शम्स उलमा सय्यद मुहम्मद इब्राहिम लखनवी (1307 हिजरी) उन्होंने अपने पिता की तफ़सीर यनाबी अल-अनवार को पूरा किया जो अधूरी रह गई थी।

12- ताज उलमा सय्यद अली मुहम्मद (1312 हिजरी) सुल्तान उलमा सय्यद मुहम्मद के पुत्र थे। उन्होंने 1305 में तफ़सीर अहसान उल-क़िसस लिखा था, जो सुब्ह सादिक प्रकाशन अज़ीमाबाद, पटना में प्रकाशित हुआ था।

13- अल्लामा मुहम्मद मोहसिन जंगीपुरी (1325 हिजरी)
नवाब वाजिद अली शाह उनके ज्ञान और अनुग्रह के बहुत बड़े प्रशंसक थे, उन्होंने मिस्बाहुल बयान फ़ी तफ़सीर सूर ए रहमान संकलित की।

14- अल्लामा मुहम्मद हारून जंगीपुरी (1339 एएच)
नज्मुल मिल्लत मौलाना नज्मुल-हसन अमरोहवी के छात्र थे, उन्होंने खुलासातुत-तफसीर लिखी थी, इसकी पांडुलिपि लेखक की किताब किताब खाना मदरसा अल-वाऐज़ीन, लखनऊ में संरक्षित है।

15- मौलाना ज़ाकिर हुसैन बारहवें (1349 हिजरी) फिर सरे वतन था, उन्होंने अरबी में पवित्र कुरान पर एक हाशिया लिखा था।

16- अल्लामा सय्यद मुहम्मद शाकिर अमरोहवी (1433 हिजरी)
अमरोहा के प्रख्यात विद्वान, दार्शनिक और कुरआन के व्याख्याता जामेआ नाज़िमिया, लखनऊ में तर्कशास्त्र के शिक्षक थे। राक़िम को आपसे शरफ़े तलम्मुज़ हासिल है अर्थात लेखक आपका छात्र है। 1430 एएच में, उन्होंने तफ़सीर अल-कुरआन फ़िल काफ़ी नामक एक टिप्पणी लिखी। इस तफ़सीर में, उन्होंने किताब अल-काफ़ी में इस्तेमाल किए गए आयतो की तफ़सीर की। यह तफ़सीर क़ुम, ईरान से प्रकाशित हुई थी।
यह उन टिप्पणीकारों का संक्षिप्त उल्लेख है, जिन्होंने बड़ी मेहनत और लगन से ज्ञान की पूंजी कलम के हवाले की और आने वाली पीढ़ियों को कुरआन की शिक्षाओं से परिचित कराया।

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