मंगलवार 14 जनवरी 2025 - 11:55
इमाम अली (अ) अबुल यतामा

हौज़ा / अनाथों के प्रति दया और प्रेम पवित्र कुरान की घोषणा है और पैगंबर और पैगंबर के परिवार का आदेश है। पवित्र कुरान की कई आयतों में अल्लाह ने अनाथों के साथ अच्छा व्यवहार करने का आदेश दिया है। नीचे कुछ श्लोक दिये गये हैं।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, यह आलेख यतीमों के साथ नर्मी और रहम दिलाने के बारे में क़ुरआन और हज़रत अली (अ) के हुक्मों को बयान करता है। क़ुरआन और हज़रत अली (अ) दोनों ने यतीमों के साथ अच्छे व्यवहार की तालीम दी है। इस सिलसिले में कुछ आयतें और हदीसें दी गई हैं, जो यतीमों के प्रति आचार विचार के बारे में हैं:

  1. क़ुरआन में कहा गया है:

    • ‘‘फَأَمَّا الْيَتِيمَ فَلَا تَقْهَرْ’’ (सूरा अलज़ोहा, आयत 9)
      ‘‘तो यतीम पर जुल्म मत करो।’’
    • ‘‘أَرَأَيْتَ الَّذِي يُكَذِّبُ بِالدِّينِ। فَذَٰلِكَ الَّذِي يَدُعُّ الْيَتِيمَ’’ (सूरा माऊन, आयत 1, 2)
      ‘‘क्या तुमने उस शख्स को देखा है जो दीन (क़ियामत) को झुटलाता है। वही वह है जो यतीम को धक्का देता है।’’
    • ‘‘وَلَا تَقْرَبُوا مَالَ الْيَتِيمِ إِلَّا بِالَّتِي هِيَ أَحْسَنُ…’’ (सूरा इस्रा, आयत 34)
      ‘‘और यतीम के माल के पास भी न जाना सिवाय उसके जो अच्छा तरीका हो जब तक वह बड़ा न हो जाए।’’
  2. हज़रत अली (अ) ने अपनी ज़िंदगी में यतीमों के साथ विशेष नर्मी दिखाई। उनके कुछ किस्से भी उल्लेखित हैं:

    • एक बार हज़रत अली (अ.स.) और उनके गुलाम क़ंबर एक गरीब औरत के घर से गुजर रहे थे। देखा कि वह महिला अपने यतीम बच्चों को दिलासा दे रही थी और खाना पकाने की कोशिश कर रही थी, जबकि बच्चों को भूख से तकलीफ हो रही थी। हज़रत अली (अ) ने उन्हें खजूर, आटा, तेल, चावल और रोटियां दीं, ताकि वे खा सकें और खुश हो सकें।
    • एक दिन हज़रत अली (अ) ने कोफ़ा में देखा कि एक महिला पानी का मटका ले कर परेशान हो रही थी। हज़रत अली (अ) ने उसे मदद का प्रस्ताव दिया और बाद में उसके घर जाकर खाने का सामान दिया, ताकि वह और उसके यतीम बच्चे सुकून से रह सकें।
  3. हज़रत अली (अ) के समय में एक बच्ची ने हज़रत अली (अ) के बारे में इतना ज्ञान और उनके गुण बताए कि सुनने वाला हैरान रह गया। बच्ची ने कहा कि हज़रत अली (अ) वह शख्स हैं जो सभी कायनात में सबसे बड़े हैं, और उन्होंने अपने दिल से यतीमों की मदद की और उन्हें एक पिता का प्यार दिया।

यह लेख हमें यह सिखाता है कि यतीमों का सम्मान और उनकी मदद करना, न सिर्फ क़ुरआन और हज़रत अली (अ) का आदेश है, बल्कि यह हमारे समाज को बेहतर और मजबूत बनाने की दिशा में भी एक अहम कदम है।

टैग्स

आपकी टिप्पणी

You are replying to: .
captcha