मंगलवार 1 जुलाई 2025 - 14:26
अस्र-ए ग़ैबत-ए कुबरा में इमाम महदी (अलैहिस्सलाम) का आवास स्थल

हौज़ा /​​​​​​​ अगर ग़ैबत के विषय में इमाम (अलैहिस्सलाम) के ठिकाने, उनके खाने-पीने जैसी बातें छुपी रहें, तो इससे कोई शक या संदेह पैदा नहीं होता। जैसे कि इन बातों का पता चलना या न चलना, ग़ैबत की सच्चाई को साबित या नकारने में कोई असर नहीं डालता।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, अस्र-ए ग़ैबत-ए कुबरा में इमाम महदी (अलैहिस्सलाम) का निवास कहाँ है?

अगर ग़ैबत के विषय में इमाम (अलैहिस्सलाम) के ठिकाने, उनके खाने-पीने जैसी बातें छुपी रहें, तो इससे कोई शक या संदेह पैदा नहीं होता। जैसे कि इन बातों का पता चलना या न चलना, ग़ैबत की सच्चाई को साबित या नकारने में कोई असर नहीं डालता। जब हम मानते हैं कि इमाम (अलैहिस्सलाम) की गैर-मौजूदगी (ग़ैबत) तर्कसंगत और समझदारी वाली बात है, तो उनके ठिकाने या अन्य निजी बातें छुपी रहना भी वैसा ही समझदारी भरा होगा। इन बातों को न जान पाना किसी भी तरह का सबूत नहीं है कि ग़ैबत सच नहीं है।

फिर भी, इस सवाल का छोटा सा जवाब देते हैं: कुछ विश्वसनीय हदीसों और कहानियों के अनुसार, इमाम (अलैहिस्सलाम) ग़ैबत-ए कुबरा के दौरान किसी एक खास जगह या शहर में स्थायी रूप से नहीं रहते। बल्कि वे अपने फर्ज और जिम्मेदारियों को निभाने के लिए वे एक जगह से दूसरी जगह जाते रहते हैं। कुछ कहानियों के अनुसार, इमाम (अलैहिस्सलाम) को कई जगहों पर देखा गया और उनकी ज़ियारत की गई है। उन शहरों में जो निश्चित रूप से उनके पवित्र आगमन से सम्मानित हुए हैं, शामिल हैं: मदीना, मक्का,  नजफ़, कूफ़ा, कर्बला, काज़मैन, सामर्रा, मशहद, क़ुम, बगदाद, मस्जिदे कूफ़ा, मस्जिद सहला, वादी उस सलाम नजफ़ मे मक़ाम ए हज़रत साहिब अम्र और हिल्ला मे। 

संभव है कि उनका मुख्य ठिकाना या जहाँ वे सबसे ज़्यादा समय बिताते हैं, वह मक्का, मदीना और पवित्र अत्ताबात (अर्थात् पवित्र धार्मिक स्थान) हों।

अगर पूछा जाए कि फिर इमाम ज़माना (अलैहिस्सलाम) का "कूह-ए रिज़वी" और "ज़ी तुवा" से क्या संबंध है, जैसा कि दुआ-ए नदबा में आया है:

لَیْتَ شِعْری أَیْنَ اسْتَقَرَّتْ بِکَ النَّوَی، بَلْ أَیُّ أَرْضٍ تُقِلُّکَ أَوْ ثَرَی أَبِرَضْوَی أَوْ غَیْرِهَا أَمْ ذِی طُوَی लैता शेअरी अयनस्तक़र्रत बेकन्नवा, बल अय्यो अर्ज़िन तोक़िल्लोका औ सरा आ बेरज़वा औ गैरेहा अम ज़ी तुवो

"काश मैं जान पाता कि तुम्हारा दिल कहाँ स्थिर और शांति पाता है। किस ज़मीन पर तुम रहते हो, क्या वह 'रज़वी' की धरती है या कहीं और, 'ज़ी तुवा' की जगह पर तुम्हारा ठिकाना है?"

यहां "कूह-ए रिज़वी" और "ज़ी तुवा" उन पवित्र स्थानों को दर्शाते हैं जहाँ इमाम (अलैहिस्सलाम) के ठिकाने या उनके रहन-सहन के बारे में सवाल उठते हैं। यह दुआ उनके रहस्यमय और छुपे हुए ठिकाने की तरफ इशारा करती है, जिसे जानना मुश्किल है।

इसका जवाब यह है कि ये दोनों स्थान (कूह-ए रिज़वी और ज़ी तुवा) शब्दकोशों और इतिहास की किताबों के अनुसार पवित्र जगहें मानी जाती हैं। संभव है कि इमाम (अलैहिस्सलाम) कभी-कभी अपने कुछ खास समय इन दोनों जगहों पर इबादत और एकांत में बिताते हों। लेकिन इसका यह मतलब बिल्कुल नहीं कि ये दोनों जगहें या इनमें से कोई एक उनकी स्थायी आवास स्थल है।

ये सवाल असली सवाल नहीं हैं, बल्कि ये इस लिए पूछे जाते हैं ताकि अपने दिल की बेचैनी, दूरियों का दर्द और उनकी उपस्थिति के बिना होने वाले दुख को जाहिर किया जा सके, और साथ ही उनके आने के इंतजार में होने वाली देरी पर अफसोस जताया जा सके।

इसके अलावा, दुआ-ए नुद्बा के कुछ वाक्य यह भी दर्शाते हैं कि वे लोग के बीच मौजूद हैं और लोगों से दूर नहीं हैं। उदाहरण के लिए:

بِنَفْسِی أَنْتَ مِنْ مُغَیَّبٍ لَمْ یَخْلُ مِنَّا بِنَفْسِی أَنْتَ مِنْ نَازِحٍ لَمْ یَنْزَحْ (مَانَزَحَ) عَنَّا बेनफ़्सी अंता मिन मुग़ैय्यबिन लम यख़लो मिन्ना, बेनफ़्सी अंता मिन नाज़ेहिन लम यंज़ह (मां नज़हा) अन्ना

"मेरी जान तेरे लिए कुर्बान, तू छुपा हुआ है लेकिन हमारे बीच से दूर नहीं है। मेरी जान तेरे लिए कुर्बान, तू दूर है लेकिन हमसे दूर नहीं है।"

अगर कोई पूछे कि कुछ लोग, खासकर कुछ सुन्नी विद्वान यह कहते हैं और कभी-कभी इसे शिया समुदाय पर हमला करने और उनके खिलाफ बहस का बहाना बनाने के लिए इस्तेमाल करते हैं कि शिया लोग इमाम साहिब-अल-अमर (अलैहिस्सलाम) को समर्रा के तहखाने में छुपा हुआ मानते हैं, तो इसका क्या आधार है?

इसका जवाब यह है कि यह बात पूरी तरह झूठ, आरोप और बदनामी है। इस दावे का कोई भी ठोस आधार या प्रमाण नहीं है।

श्रृंखला जारी है ---

इक़्तेबास : आयतुल्लाह साफ़ी गुलपाएगानी द्वारा लिखित किताब "पासुख दह पुरशिसे पैरामून इमामत " से (मामूली परिवर्तन के साथ) 

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