हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार,माहे मुहर्रम की अज़ादारी के सिलसिले में हज़रत इमाम रज़ा (अ.स.) का पवित्र हरम ग़म और मातम के माहौल में डूबा रहा। इमाम हुसैन (अ.स.) और शोहदाए कर्बला की याद में यहां अज़ादारों ने मजलिसें, मातमी जुलूस और अन्य धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन किया।
हरम में जमा होने वाले अज़ादारों ने काले परचमों और शोक की निशानियों के साथ इमाम हुसैन (अ.स.) की अज़ीम कुर्बानी को याद किया और नम आँखों से उन्हें खिराजे अकीदत पेश किया।
रात के वक्त हरम की फ़िजा इमाम हुसैन (अ.स.) की याद में पढ़े गए मर्सियों और नौहों से भर गई। अज़ादारों ने कर्बला की उस दर्दनाक दास्तान को याद किया जिसने इंसानियत को ज़ुल्म के सामने सर झुकाने से इंकार करना सिखाया।
हरम-ए-मुतहर की तज़ईन भी इस मौके पर अज़ादारी के रंग में रंगी हुई थी। ज़ायरीन इस दौरान हरम में हाज़िरी देने पहुंचे और इमाम रज़ा (अ.स.) के ज़रिए इमाम हुसैन (अ.स.) की बारगाह में अपने इश्क़ और वफ़ादारी का इज़हार किया।
माहे मुहर्रम का ये आलमी पैग़ाम हक़ की सरबलंदी, ज़ुल्म के खिलाफ़ आवाज़ और कुर्बानी की अज़मत हरम-ए-रिज़वी से पूरी दुनिया में गूंजता रहा।
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