हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, हज़रत अहमद बिन मूसा अल काज़िम (अ) की शहादत दिवस पर ईरान के शहर शिराज़ में एक सभा आयोजित की गई, जिसमें हुज्जतुल इस्लाम वुल मुस्लेमीन अहमद मरवी ने भाषण दिया। उन्होंने कहा कि इजराइल ने ग़ज़ा पर हमले के तीन उद्देश्यों का जिक्र किया था: पहला उद्देश्य क़ैदियों की रिहाई, दूसरा उद्देश्य हमास की तबाही, और तीसरा उद्देश्य ग़ज़ा पर क़ब्ज़ा लेकिन वह इन तीनों में से किसी में भी कामयाब नहीं हो सका।
उन्होंने कहा कि ग़ज़ा में क़ैदियों की रिहाई और हमास की तबाही इजराइल का नाकाम ख्वाब था। इजराइली सरकार एक भी क़ैदी को रिहा नहीं कर सकी। क्या हमास खत्म हो गई? अगर हमास खत्म हो जाती तो युद्धविराम की ज़रूरत ही नहीं पड़ती। हां, इन्होंने ग़ज़ा को बहुत नुकसान पहुँचाया, अस्पतालों और इमारतों को नष्ट किया, बर्बरता और क्रूरता की हदें पार कीं, और पचास हजार से ज्यादा बेगुनाहों को शहीद किया, लेकिन अंततः वह अपने किसी भी उद्देश्य में कामयाब नहीं हो सके और युद्धविराम करने के लिए मजबूर हो गए।
आस्तानए क़ुद्स रिज़वी के मुतवल्ली ने कहा कि पश्चिमी देश, जो सदीयों से मानवाधिकार का दावा करते आए हैं, ग़ज़ा में हो रहे इन सारे अपराधों पर चुप रहे और न केवल प्रतिक्रिया नहीं दी, बल्कि इन अपराधों का बचाव भी किया, जिससे उनका असली चेहरा सामने आ गया।
उन्होंने शहीद सैयद हसन नसरुल्लाह और प्रतिरोध मोर्चे के कुछ प्रमुख कमांडरों की शहादत के बावजूद हिज़बुल्लाह की दृढ़ता और प्रतिरोध का ज़िक्र करते हुए कहा कि प्रतिरोध सिर्फ व्यक्तियों पर निर्भर नहीं है, बल्कि यह एक विचार और रास्ता है जिसे मुसलमानों ने इस्राईल और ताक़तवर शत्रुओं के खिलाफ चुना है। व्यक्तियों की शहादत से प्रतिरोध समाप्त नहीं होता। अगर बड़े लोगों की शहादत से प्रतिरोध खत्म हो जाता, तो कर्बला में इमाम हुसैन(अ) की शहादत के बाद इस्लाम हमेशा के लिए खत्म हो जाता, लेकिन असल में यज़ीद और उसके बाद के शासक हार गए और इस्लाम का प्रकाश दिन-ब-दिन फैल रहा है।
उन्होंने कहा कि दुश्मन से मुकाबला करने के लिए राष्ट्रीय एकता बनाए रखना जरूरी है और हमें इन्कलाब के रहबर की चेतावनियों पर ध्यान देना चाहिए। दुश्मन ने तीन साज़िशें बनाई हैं: "फर्का वारी फैलाना", "निराशा पैदा करना" और "डर और आतंक फैलाना"। हमें इन साज़िशों का सामना करते हुए अपने देश की एकता बनाए रखनी होगी।
उन्होंने आगे कहा कि हमें अपने मुख्य मुद्दों को प्राथमिकता देनी चाहिए और गौण मुद्दों को प्रमुख मुद्दों से पहले नहीं रखना चाहिए, ताकि हम दुश्मन से बेखबर न हो जाएं। जब समाज आंतरिक समस्याओं में घिरा हुआ था, तो इमाम ख़ुमैनी(रह) ने कहा था कि जितना हो सके, अमेरिका के खिलाफ आवाज़ उठाओ।
आस्तानए क़ुद्स रिज़वी के मुतवल्ली ने कहा कि समाज में तफरका और निराशा फैलाने से बचना चाहिए, क्योंकि दुश्मन हमारे सिस्टम, हमारी कौम और हमारी संस्कृति से नफरत करता है। अगर कोई यह सोचता है कि तफरका फैलाकर वह इन्कलाब की सेवा कर रहा है तो वह गलत रास्ते पर है। रहबर ए इन्कलाब ने स्पष्ट रूप से कहा है कि दुश्मन की मुख्य साज़िशों में से एक "फर्का वारी पैदा करना" है।
आखिरकार उन्होंने कहा कि यह सही है कि देश में समस्याएँ और खामियाँ हैं, लेकिन इन समस्याओं को इस तरह से नहीं बढ़ाना चाहिए कि समाज में तफरका पैदा हो और राष्ट्रीय एकता को नुकसान पहुंचे।
हुज्जतुल इस्लाम मरवी ने कहा कि डर और आतंक फैलाना दुश्मन की साज़िश है। हमें दुश्मन को इतना बड़ा नहीं समझना चाहिए। दुश्मन क्रूर और बेतहाशा है और किसी भी अपराध को करने से पीछे नहीं हटता, जैसा कि हमने ग़ज़ा और लेबनान में देखा। हालांकि, अगर एक कौम और समाज एकजुट होकर दुश्मन का सामना करता है, तो दुश्मन कभी भी कामयाब नहीं हो सकता।
आपकी टिप्पणी