हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,एक रिपोर्ट के अनुसार, हिज़बुल्लाह लेबनान की सुप्रीम काउंसिल के सदस्य शेख हसन अलबगदादी ने क़ुम अल मुकद्दस में अय्याम ए फातिमिया के अवसर पर आयोजित उपदेशकों की सभा को संबोधित करते हुए कहा कि अल्लाह फरमाता है तुममें एक ऐसा समूह होना चाहिए जो लोगों को भलाई का हुक्म दे और बुराई से रोके और यही समूह सफल होगा।
उन्होंने कहा कि सामाजिक मामलों में सभी लोग ज़िम्मेदार हैं लेकिन समाज के मार्गदर्शन और नेतृत्व के लिए उन लोगों की ज़रूरत होती है जो विशेष योग्यताओं और असाधारण क्षमताओं के मालिक हों।
शेख बगदादी ने कहा कि असाधारण क्षमताओं वाले व्यक्तियों में नबियों औलिया और धार्मिक विद्वानों को शामिल किया गया है। इनका काम लोगों को अल्लाह का संदेश पहुंचाना और उनके मार्गदर्शन का बोझ उठाना होता है। उन्होंने जोर दिया कि दीन के उपदेशकों को लोगों के लिए आदर्श बनना चाहिए और अपने उच्च नैतिक आचरण के माध्यम से लोगों को धर्म की ओर आकर्षित करना चाहिए।
शेख बगदादी ने हज़रत फातिमा ज़हरा स.ल. की सामाजिक भूमिका पर जोर देते हुए कहा कि पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की वफ़ात के बाद जो चुनौतियां सामने आईं हज़रत फातिमा स.ल. ने उन्हें जिहाद ए तबीयिन और अपने भाषणों के ज़रिए चुनौती दी और लोगों को इस्लाम से भटकने से बचाया।
उन्होंने कहा कि हज़रत फातिमा ज़हरा स. की इमामत और इस्लाम को समाप्त करने वाली साज़िशों के खिलाफ भूमिका बेमिसाल है। हज़रत फातिमा स.ल. ने अपने त्याग से इमामत की सच्चाई की रक्षा की और अपने संघर्ष के माध्यम से उन योजनाओं को विफल कर दिया जिनका उद्देश्य इस्लाम का खात्मा था।
शेख बगदादी ने कहा कि हज़रत फातिमा ज़हरा स.ल. को अपनी इन भूमिकाओं की भारी कीमत चुकानी पड़ी उन्हें गंभीर अत्याचार और कष्टों का सामना करना पड़ा।
उन्होंने हिज़बुल्लाह और इस्लामी प्रतिरोध द्वारा इज़राइल के खिलाफ संघर्ष की ओर इशारा करते हुए कहा कि लेबनान और फिलिस्तीन पर थोपी गई हालिया जंग तूफ़ान अलअक़सा का जवाब नहीं थी बल्कि प्रतिरोधी मोर्चों को समाप्त करने की एक साज़िश थी।
हिज़बुल्लाह के सदस्य ने कहा कि दुश्मन ने क्षेत्र में यूरोप बाइडन और मैक्रों की उपस्थिति का लाभ उठाते हुए ईरान और हिज़बुल्लाह को डराने और फ़िलिस्तीन के मुद्दे को खत्म करने की कोशिश की लेकिन उनकी ये साज़िशें नाकाम हो गईं।
उन्होंने कहा कि दुश्मन का अंतिम लक्ष्य प्रतिरोध को निरस्त्र करना और हिज़बुल्लाह को समाप्त करना था लेकिन हिज़बुल्लाह और ईरान ने स्पष्ट कर दिया कि प्रतिरोध के रास्ते को रोकना संभव नहीं है। भले ही इस रास्ते में भारी कीमत चुकानी पड़ी हो प्रतिरोध जारी है और दुश्मन अपने इरादों में कभी सफल नहीं होगा।
शेख बगदादी ने प्रतिरोधी मोर्चों के संघर्ष के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि ये कुर्बानियां इस्लाम की रक्षा और मुसलमानों की इज़्ज़त के लिए दी गई हैं। प्रतिरोध की ज़रूरत केवल लेबनान तक सीमित नहीं है बल्कि पूरे इस्लामी जगत के लिए आवश्यक है।