हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुरास, अमीरुल मोमेनीन इमाम अली (अ) ने नहजुल बलाग़ा में 'क़नाअत की कीमत' के बारे में कुछ बातें बताई हैं, जिस हम अपने प्रिय पाठको की सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं।
الْقَنَاعَةُ مَالٌ لَا یَنْفَدُ अल क़नाअतो मालुन ला यनफ़दो
क़नाअत ऐसी दौलत है जो कभी खत्म नहीं होती। (नहजुल बलागा, हिकमत 57)
शरह:
अनंत संपत्ति।
इमाम अली (अ) ने इस छोटी मगर गहरी बात में क़नाअत की अहमियत बताई है: "क़नाअ ऐसी दौलत है जो कभी खत्म नहीं होती" (الْقَنَاعَةُ مَالٌ لَا یَنْفَدُ)।
क़नाअत का मतलब है कि इंसान अपनी ज़िंदगी की जरूरी चीज़ों से खुश रहता है और उन चमक-दमक और जरूरत से ज़्यादा चीज़ों के पीछे नहीं भागता, जो हमारे दिमाग़ और समय को व्यस्त करते हैं और अक्सर हमें गलत रास्तों पर ले जाते हैं।
इस सोच को अपनाना अनमोल दौलत जैसा है, क्योंकि इससे इंसान को दुनियावी दौलत की कोई आवश्यकता नहीं रहती। वह गर्व से अपनी ज़िंदगी जीता है, सम्मान के साथ रहता है, दूसरों से मदद माँगने की जरूरत नहीं पड़ती और अपनी ज़िंदगी को दिखावे और फ़ुजूलखर्ची में नहीं गँवाता।
इमाम अली (अ) ने हिकमत 44 में क़नाअत करने वालों की खूब तारीफ की है और फ़रमाया: طُوبَی لِمَنْ ذَکَرَ الْمَعَادَ وَعَمِلَ لِلْحِسَابِ وَقَنِعَ بِالْکَفَافِ तूबा लेमन ज़करल मआदा व अमेला लिलहिसाबे व क़नेआ बिलकफ़ाफ़े भाग्यशाली है वह व्यक्ति जो हमेशा मौत और आख़िरत को याद करता है, हिसाब-किताब के दिन के लिए काम करता है, अपनी ज़रूरत के अनुसार क़नाअ करता है और अल्लाह से खुश रहता है।
नहजुल बलाग़ा के खुतबा 192 में इमाम अली (अ) ने पैग़म्बरों की एक खास खूबी बताई है: مَعَ قَنَاعَة تَمْلاَ الْقُلُوبَ وَالْعُیُونَ غِنًی मआ क़नाअते तमलअल क़ोलूबा वल ओयूना ग़िनन उनमें ऐसी क़नाअत थी जिससे दिल और आँखें गरीबी और कमी से मुक्त हो जाती थीं।
बिहार उल अनवार में भी इमाम अली से ऐसा वर्णित है: طَلَبْتُ الْغِنَی فَمَا وَجَدْتُ إِلاَّ بِالْقَنَاعَةِ عَلَیْکُمْ بِالْقَنَاعَةِ تَسْتَغْنُوا तलब्तुल ग़ेना फ़मा वजदतो इल्ला बिल क़नाअते अलैकुम बिल क़नाअते तस्तग़नू मैं दौलत की तलाश में निकला, लेकिन उसे मैंने केवल संतोष में पाया। तुम लोग संतोष अपनाओ ताकि तुम अमीर बन जाओ।
यह बात भी बहुत महत्वपूर्ण है कि लोगों की बहुत सी नाराज़गियाँ और ज़िन्दगी की शिकायतें गरीबी या कमी के कारण नहीं होतीं। कभी-कभी लोग सब कुछ होते हुए भी शोर मचाते रहते हैं। इसका मुख्य कारण क़नाअत का न होना और अनगिनत उम्मीदें होती हैं। अगर सभी अपनी ज़रूरत के मुताबिक़ क़नाअत करें, तो समाज में एक अद्वितीय शांति फैल जाएगी, कई आपराधिक मामले और चोरी-डाके खत्म हो जाएंगे, और इंसानियत की इज़्ज़त बनी रहेगी, साथ ही गुनाहों से भी सुरक्षा मिलेगी।
यहाँ इब्न अबी हदीद ने एक सुंदर बात "बुक़रात" (सुकरात) से सुनाई है। एक आदमी ने उन्हें जंगली कुछ सब्ज़ियाँ खाते देखा और कहा, "अगर तुम राजा की सेवा में होते, तो ये नहीं खाना पड़ता।" बुक़रात ने जवाब दिया, "अगर तुम भी ऐसी चीज़ खाते, तो राजा की दासता की ज़रूरत न पड़ती।"
शायर कहता हैं:
गंजे आज़ादी व गंज़े क़नाअत गंजी अस्त --- के बे शम्शीर मयस्सर न शवद सुलतान रा (अनुवादः आज़ादी और क़नाअत का ख़ज़ाना ऐसा ख़ज़ाना है जो तलवार से भी राजा को नही मिल सकता)
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