हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार,अरादान के इमाम ए जुमआ हुज्जतुल इस्लाम जलील शरीफी निया ने कहा है कि अब ईरान और अमेरिका के बीच बातचीत का माहौल पहले जैसा नहीं रहा उन्होंने कहा कि ईरानी जनता की प्राथमिक मांग यह है कि इन बातचीतों में सबसे पहले ईरान की गरिमा इज्ज़त बनी रहे और उसके बाद सभी प्रतिबंध हटाए जाएं।
उन्होंने शुक्रवार के खुतबे में ‘तबस की घटना’ (5 उर्दीबिहिश्त 1359 / 25 अप्रैल 1980) का हवाला देते हुए कहा कि यह घटना दिखाती है कि अत्याचारियों को सज़ा देने के लिए अल्लाह के विकल्प हमेशा मौजूद रहते हैं।उन्होंने आगे कहा कि हमें अपने ईमान, दृढ़ता और इस्तेक़ामत के साथ तथा इमाम ज़माना (अज) के प्रतिनिधि की पैरवी करते हुए इस्लामी क्रांति की रक्षा करनी चाहिए जो हजारों शहीदों की क़ुर्बानी का नतीजा है।
उन्होंने कहा कि ईरान और अमेरिका के बीच जो तीसरे दौर की बातचीत होने जा रही है उसमें सरकार को सब्र और समझदारी से काम लेना चाहिए जैसा कि रहबर ए इनक़लाब ने कहा है, बातचीत विदेश मंत्रालय के दर्जनों कामों में से सिर्फ एक है इसलिए देश की व्यवस्था और तरक़्क़ी को केवल बातचीत पर निर्भर नहीं किया जाना चाहिए।
उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि देश की अर्थव्यवस्था, उद्योग, निवेश आदि को बातचीत से जोड़ना ग़लत है। उन्होंने उम्मीद जताई कि बातचीत अच्छे परिणाम तक पहुँचे, लेकिन यह भी कहा कि अगर दुश्मन ‘लाल रेखाओं’ (रेड लाइन्स) को पार करने की कोशिश करता है या कोई ऐसी शर्तें रखता है जिससे ईरान की गरिमा को ज़रा भी नुक़सान पहुँचे तो ईरान ऐसी बातचीत को स्वीकार नहीं करेगा।
उन्होंने कहा कि रहबर ने भी साफ़ किया है कि हम बातचीत को लेकर आशावान हैं, लेकिन सामने वाले (अमेरिका और पश्चिम) पर बिल्कुल भरोसा नहीं करते। ईरान अपनी गरिमा, हिकमत और मस्लहत के साथ, विलायत के साये में बातचीत करता है और जनता भी यही चाहती है कि देश की इज्ज़त बनी रहे और सभी प्रतिबंध हटाए जाएँ।
अंत में उन्होंने कहा कि अगर इस बार बातचीत कोई नतीजा लाती है तो यह “क़दम-ब-क़दम” होनी चाहिए। अगर हम यूरेनियम संवर्धन (enrichment) को 60% से घटाकर 10-20% करते हैं, तो बदले में सामने वाले को भी हमारे सभी हक अदा करने होंगे जैसे प्रतिबंध हटाना और रोके गए पैसे वापस लौटाना। अब ऐसा नहीं होगा कि सारे काम सिर्फ हम करें और सामने वाला वादाखिलाफ़ी करे।
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