हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , हौज़ा एल्मिया क़ुम के प्रोफेसर और जामिया मुदर्रिसीन की मजलिस-ए-आमा के सदस्य हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन हुसैन अहमदी शाहरूदी ने अमेरिकी राष्ट्रपति की हालिया धमकी पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि इस कार्रवाई ने उसकी वास्तविकता और महारिब' होने को दुनिया पर उजागर कर दिया है। उन्होंने स्पष्ट किया कि इस कदम से अमेरिका को आंतरिक और बाहरी स्तर पर नुकसान पहुंचा है।
उन्होंने कहा कि इस आक्रामक रवैये के जवाब में उम्मत-ए-विलायती ने कफन पहनकर रैलियों, बयानों और अन्य प्रदर्शनों के माध्यम से मरजइयत विलायत और इस्लाम धर्म के प्रति अपनी गहरी निष्ठा दिखाई।
ईरानी कौम इमाम हुसैन अ.स.के मकतब की परवरिश पाई है, और अमेरिका को समझ लेना चाहिए कि "हयात मिना अज़-ज़िल्ला (हम कभी अपमान स्वीकार नहीं करेंगे) का नारा लगाने वाली कौम के सामने खड़ा होना संभव नहीं है।
हुज्जतुल इस्लाम शाहरूदी ने आगे कहा कि दुनिया भर में जन जागृति और साम्राज्यवादी ताकतों के खिलाफ उठ खड़े होना, रहबर-ए-मोअज़्ज़म की वैश्विक नेतृत्व का नतीजा है। अमेरिकी राष्ट्रपति के इस कदम ने कई देशों के अमेरिका से संबंध तोड़ने और उसके आर्थिक हितों को नुकसान पहुंचाने का कारण बना।
उन्होंने कहा कि विलायत ए फकीह और मरजइयत, इस्लामी व्यवस्था के मूल सिद्धांतों में से हैं, और शिया नेतृत्व हमेशा एक मुजतहिद-ए-जामेउश्शराइत के हाथ में रहा है। अमेरिका आज तक रहबर-ए-मोअज़्ज़म की शख्सियत को पहचान नहीं पाया।
उन्होंने इमाम ख़ुमैनी (रह.) की इस व्याख्या का जिक्र किया कि रहबर-ए-मोअज़्ज़म वह शख्सियत हैं जो दिल से मिल्लत-ए-ईरान (ईरानी राष्ट्र) की सेवा को अपना लक्ष्य समझते हैं। कुछ मराजय के अनुसार, आप एक सालिह (योग्य) नाखुदा हैं जो इंकलाबी कश्ती को तूफानी समंदर से सुरक्षित किनारे तक पहुंचा सकते हैं।
अंत में उन्होंने जोर देकर कहा कि सभी को चाहिए कि मरजइयत और रहबर-ए-मोअज़्ज़म के समर्थन में अपनी वैज्ञानिक और तबलीगी क्षमताओं का उपयोग करें और 12-दिवसीय युद्ध (इराक-ईरान युद्ध) के तथ्यों और सफलताओं को न भूलें। ईरान हमेशा रक्षात्मक रहा है और दुश्मन की आक्रामकता का मजबूती से जवाब देने की क्षमता रखता है।
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