रविवार 27 अप्रैल 2025 - 12:11
मोमिन की प्रतिष्ठा काबा की प्रतिष्ठा से भी महान है

हौज़ा / लखनऊ, भारत शाही आसिफी जामा मस्जिद में जुमआ के दिन, हज़्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन मौलाना सैयद रज़ा हैदर जैदी साहिब क़िबला की इमामत में नमाज़े जुमा अदा की गई। मौलाना ने जुमा के खुतबे में समकालीन हालात के साथ साथ अहलेबैत अ.स.के फ़ज़ाइल बयान किए।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के मुताबिक, लखनऊ की शाही आसिफी जामा मस्जिद में शुक्रवार को नमाज़े जुमा मौलाना सैयद रज़ा हैदर जैदी की इमामत में अदा हुई मौलाना ने अपने खुतबे में वर्तमान परिस्थितियों पर चर्चा करते हुए अहलेबैत (अ.स.) के गुणों का विस्तार से बयान किया।

मौलाना सैयद रज़ा हैदर जैदी ने इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ.स.) की एक हदीस बयान करते हुए कहा कि एक मोमिन का दूसरे मोमिन से मुसाफ़हा (हाथ मिलाना) करना गुनाहों के मिटने और अल्लाह की रहमत के उतरने का कारण बनता है। और जो मोमिन अपने मोमिन भाई से ज़्यादा मोहब्बत करता है, उस पर अल्लाह की रहमत भी ज़्यादा बरसती है।

मौलाना ने आगे इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ.स.) की एक और हदीस के हवाले से कहा कि यद्यपि हम अहलेबैत (अ.स.) के फ़ज़ाइल का पूरा हक़ अदा नहीं कर सकते, फिर भी हमारी कोताही यह है कि जितना बयान कर सकते हैं उतना भी नहीं करते। क्योंकि फ़ज़ाइल बयान करने के लिए केवल कैसेट नहीं, बल्कि किताबें पढ़नी चाहिए।

मौलाना सैयद रज़ा हैदर जैदी ने हदीस "मोमिन की प्रतिष्ठा काबा की प्रतिष्ठा से भी महान है को बयान करते हुए अफसोस जताया कि आज हम कितनी आसानी से मोमिन का अपमान कर देते हैं कभी ग़ीबत (पीठ पीछे बुराई) करके, कभी गाली देकर और कभी उसे ईमान के दायरे से ही निकालकर।

दूसरे खुतबे में मौलाना ने पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले की कड़ी निंदा करते हुए कहा कि आज देश में एकता की ज़रूरत है। हिन्दू-मुस्लिम फूट की राजनीति सही नहीं है। लाशों पर खड़े होकर तफरक़ा फैलाना उचित नहीं है। और सियासत के गर्म तवे पर स्वार्थ की रोटियाँ सेंकना भी निंदनीय है।

मौलाना ने नफ़रत का बाज़ार गर्म करने वालों को जवाब देते हुए कहा कि सदियों से हमारे देश में विभिन्न क़ौमें एक साथ रहती आई हैं और आगे भी एकता और मोहब्बत के साथ रहेंगी। इसलिए यह कहना ग़लत है कि दो अलग-अलग कौमें साथ नहीं रह सकतीं।

उन्होंने यह भी कहा कि धर्म के नाम पर किसी की हत्या करना निंदनीय है। कोई भी धर्म किसी दूसरे धर्म वाले को मारने की इजाजत नहीं देता। हां, एक "धर्म" है जो दूसरे को मारने की इजाज़त देता है, और उसका नाम है "स्वार्थ" और "स्वहित"।

अंत में मौलाना सैयद रज़ा हैदर जैदी ने एक ज़िलक़ादा को हज़रत मासूमा (स.अ.) की पवित्र जन्मतिथि के अवसर पर कहा कि ईरान में इस दिन को "रोज़े दुख़्तर" (बेटी का दिन) के रूप में मनाया जाता है। हमें भी चाहिए कि अपनी बेटियों को उपहार दें, चाहे वह एक चॉकलेट ही क्यों न हो, क्योंकि इससे प्रेम और स्नेह में वृद्धि होगी।

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