रविवार 25 मई 2025 - 16:43
इमाम जवाद अ.स.के सामने गाना गाने की जुर्रत... फिर जो हुआ, वो सबके लिए सबक बन गया!

हौज़ा/ आयतुल्लाहिल उज़मा शुबैरी ज़ंजानी ने इमाम जवाद अलैहिस्सलाम की शहादत की मुनासिबत से अपने एक लिखित बयान में इस महान इमाम की इल्मी और अमली सीरत पर रौशनी डाली है।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार,हज़रत आयतुल्लाहिल उज़मा शुबैरी ज़ंजानी ने इमाम जवाद अ.स की शहादत की मुनासिबत से अपने एक लिखित बयान में इस महान इमाम की इल्मी और अमली सीरत पर रौशनी डाली उन्होंने एक प्रेरणादायक वाकये का ज़िक्र करते हुए फ़रमाया,मुहम्मद बिन रियान रिवायत करते हैं कि ख़लीफ़ा मआमून ने इमाम जवाद (अ.स) को एक दुनियादार और लहव-ओ-लअब (मनोरंजन) में डूबा हुआ इंसान साबित करने के लिए हर तरह की चालाकी और योजना आज़माई, लेकिन हर बार नाकाम रहा। जब वह पूरी तरह मायूस हो गया, तो इमाम (अ.स) की अपनी बेटी से शादी की रात एक साज़िश रची।

उसने 200 खूबसूरत कनीज़ें तैयार कीं, जिनके हाथों में जाम (प्याले) थे और हर जाम में एक कीमती मोती (गोहَر) रखा गया था। मआमून का मक़सद था कि जब इमाम (अ.स) विशेष स्थान पर तशरीफ़ लाएं, तो ये सब कनीज़ें उनका शानदार स्वागत करें और उन्हें लुभाने की कोशिश करें। लेकिन इमाम (अ.स) ने किसी पर भी कोई ध्यान नहीं दिया।

इसी दौरान एक व्यक्ति को लाया गया जिसका नाम "मुख़ारिक" था। वह साज़ बजाने और गाने में माहिर था, बड़ी सी दाढ़ी रखता था और अपनी संगीत से महफ़िलों को रंगीन किया करता था। मआमून ने उसे बुलाया। मुख़ारिक ने कहा,
अगर मसला दुनियावी दिलचस्पी का है, तो मैं इसमें माहिर हूं।
उसका इरादा था कि वह इमाम (अ.स) को गाने-बजाने और खेल-तमाशे में उलझा दे।

मुख़ारिक इमाम जवाद (अ.स) के सामने बैठ गया और तेज़ आवाज़ में गाने लगा। उसकी आवाज़ सुनकर घर के सभी लोग इकट्ठा हो गए। वह "ऊद" बजाते और गाते हुए महफ़िल को गरमाने लगा, लेकिन इमाम (अ.स) ने न उसकी तरफ देखा और न ही इधर-उधर ध्यान दिया।

कुछ वक़्त बाद, इमाम (अ.स) ने अपना सिर उठाया और उससे कहा:

«اتَّقِ اللَّهَ یَا ذَا الْعُثْنُونِ»
ऐ लंबी दाढ़ी वाले! अल्लाह से डर!

बस इमाम (अ.स) का ये कहना था कि मुख़ारिक के हाथ से साज़ गिर गया, और वह ऐसा कांपा कि फिर कभी ठीक नहीं हो पाया। वह अपनी बाकी ज़िंदगी में उस हाथ से कोई काम नहीं कर सका।

जब मआमून ने उससे पूछा,तुम्हें क्या हो गया? तो मुख़ारिक ने जवाब दिया:जिस लम्हे इमाम जवाद (अ.स) ने मुझ पर जलाल के साथ यह बात कही, मैं ऐसी दहशत और खौफ़ में घिर गया कि आज तक उससे उबर नहीं पाया।

(अल-काफ़ी, जिल्द 1, सफ़ा 494, हदीस नंबर 4)

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