हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, इमाम ए जुमआ दय्यर सैय्यद अली हुसैनी ने कहा कि ग़दीर का दिन वह दिन है जिस दिन रसूल-ए-ख़ुदा (स.अ.) ने अमीरुल मोमिनीन अली (अ.स.) को अपना वली और जानशीन (उत्तराधिकारी) मुकर्रर फरमाया और इस तरह इस्लामी हुकूमत के निज़ामे इमामत को वाज़ेह किया।
उन्होंने कहा कि ग़दीर सिर्फ़ खिलाफ़त का एलान नहीं, बल्कि "इकमाले-दीन" और "इतमामे-ने'मत" का दिन है, जैसा कि कुरआन में भी ज़िक्र है। इस दिन न सिर्फ़ हज़रत अली (अ.स.) का नाम लिया गया, बल्कि तमाम मासूम इमामों (अ.स.) और इमामे ज़माना (अ.ज.) का भी तज़किरा किया गया, ताकि उम्मत क़यामत तक के अपने रहनुमाओं को पहचान सके।
हुज्जतुल इस्लाम हुसैनी ने कहा कि इमामत सिर्फ़ एक सियासी या मआशी ओहदा नहीं है, बल्कि इमाम लोगों को दीन व दुनिया दोनों में रहनुमाई फराहम करता है और उनकी नजात का ज़रिया बनता है। "विलायत-ए-फ़क़ीह" इसी सिलसिले की एक कड़ी है, जो दौर-ए-ग़ैबत में उम्मत की हिदायत के लिए कायम है।
उन्होंने यह भी कहा कि आज दुनिया में कहीं भी ऐसी मुहब्बत, वाबस्तगी और दीनी मोद्दत हाकिमों के साथ नहीं देखी जाती जैसी इस्लामी निज़ाम में रहबर-ए-मुअज़्ज़म के साथ पाई जाती है।
अंत में उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि ग़दीर के मौके पर तमाम मुसलमानों को इत्तेहाद और वहदत (एकता) का पैग़ाम आम करना चाहिए, ताकि दुश्मनों की तफरक़ा अंदाज़ी की कोशिशें नाकाम हो सकें। साथ ही, ख़ुतबाए ग़दीर को मस्जिदों, इज्तिमा'आत और सोशल मीडिया के ज़रिए फैलाना चाहिए।
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