सोमवार 2 जून 2025 - 17:16
वह मुकद्दस चश्मा जिसका पानी रसूल अल्लाह (स) को ग़ुस्ल देने के लिए इस्तेमाल किया गया

हौज़ा / मदीना में मस्जिद ए क़ुबा के क़रीब वह ऐतिहासिक कुआँ मौजूद है जिसका पानी पैग़म्बर-ए-अकरम स.ल.व. की वफ़ात के बाद उन्हें ग़ुस्ल देने के लिए इस्तेमाल किया गया था।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, मदीना मुनव्वरा के केंद्रीय क्षेत्र से लगभग छह किलोमीटर की दूरी पर "ग़रस" नामक क्षेत्र में एक ऐतिहासिक कुआँ स्थित है, जिसे इस्लामी इतिहास और ख़ास तौर पर शिया मान्यताओं में बहुत महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है।

यह कुआँ मदीना के दक्षिण पूर्व में स्थित है और मस्जिद क़ुबा के पास है वही मस्जिद जिसे पैग़म्बर-ए-अकरम हज़रत मुहम्मद (स.ल.व.) ने सबसे पहले निर्माण करवाया था। इसे इस्लामी इतिहास के महान आंदोलन की शुरुआत का केन्द्र भी कहा जाता है।

ग़रस क्षेत्र अतीत में पैग़म्बर इस्लाम (स.ल.व.) के निकटतम सहाबियों की बस्ती हुआ करती थी, और आज वहाँ "मअहद दारुल हिजरा" नामक एक केन्द्र मौजूद है। इस क्षेत्र में स्थित ग़रस का कुआँ को पाकीज़गी, तहारत (शुद्धता) और बरकत (बरक़त) की निशानी समझा जाता है और यह कुआँ पैग़म्बर और अहले बैत (अ.स.) की ज़िंदगी में एक विशेष स्थान रखता है।

शिया मान्यताओं में इस कुएँ के संबंध में एक अत्यंत महत्वपूर्ण रिवायत मौजूद है कि पैग़म्बर-ए-अकरम (स.ल.व.) ने हज़रत अली (अ.) को वसीयत की थी कि मेरी वफ़ात के बाद मुझे ग़ुस्ल देने के लिए इसी कुएँ का पानी इस्तेमाल किया जाए।

यह वसीयत इस कुएँ की रूहानी और मआनवी महानता को उजागर करती है मानो यह कुआँ जन्नत के चश्मों में से एक चश्मा हो। स्वयं पैग़म्बर (स.ल.व.) कई बार इसी कुएँ के पानी से वुज़ू और ग़ुस्ल फरमाया करते थे और इसे सबसे पाक पानी करार देते थे।

रिवायतों के अनुसार, जब पैग़म्बर (स.ल.व.) का विसाल हुआ, तो अमीरुल मोमिनीन हज़रत अली (अ.ल.व.) ने इस कुएँ से सात बाल्टी और सात मश्क भरकर मदीना लाए और वसीयत के अनुसार, पैग़म्बर के पाक जिस्म को उसी पानी से ग़ुस्ल दिया।

आज भी अहले बैत (अ.ल.व..) से मोहब्बत रखने वाले ज़ायरीन, मदीना के दक्षिण-पूर्व में स्थित इस पवित्र स्थान "ग़रस" जाकर इस ऐतिहासिक कुएँ की ज़ियारत कर सकते हैं। वहाँ जाकर वे अपने दिल में मोहब्बत, अकीदत और रूहानी लगाव को और मज़बूत करते हैं।

चाहे ग़रस की ज़ियारत दोपहर 2 बजे से रात 10 बजे तक की जा सकती है, और यह स्थान ज़ायरीन को एक क़ीमती अवसर देता है कि वे पैग़म्बर इस्लाम (स.) और अहले बैत (अ.) की पाक सीरत पर तफक्कुर करें।

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