हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार , फ़ोआद इज़दी जो एक राजनीतिक मामलों के विशेषज्ञ हैं, ने इमामैन-ए-इंक़लाब के गुफ़्तगू का विस्तार" शीर्षक से आयोजित एक राष्ट्रीय सम्मेलन में भाग लिया यह सम्मेलन "इमाम खुमैनी (र.ह)" शैक्षिक और शोध संस्थान द्वारा "यावरे मदी कॉम्प्लेक्स" में आयोजित किया गया था।
उन्होंने अमेरिका की नीतियों को सही ढंग से समझने की अहमियत पर ज़ोर देते हुए कहा कि इस्लामी क्रांति की सफलता के बाद अमेरिका की वैश्विक और ईरान में भूमिका का विश्लेषण करना इस बात की पहचान में मदद करता है कि सही रास्ता कौन-सा है और गुमराही का रास्ता कौन सा।
इज़दी ने कहा कि क्रांति के पहले दशक में इमाम खुमैनी (रह) का अमेरिका को लेकर दृष्टिकोण पूरी तरह स्पष्ट था यहाँ तक कि जो लोग आज सुधारवादी गुट से माने जाते हैं, उन्होंने भी उस समय अमेरिका के खिलाफ तीखे रुख अपनाए थे।
लेकिन समय के साथ कुछ लोगों ने अमेरिका के साथ संबंधों को लेकर एक काल्पनिक और अप्रामाणिक चित्र पेश किया और यहां तक कि अमेरिका की ईरान में निवेश की वकालत भी की, जिसके नतीजे में बाद में देश की नीति में कई समस्याएं पैदा हुईं।
उन्होंने यह भी कहा कि आयतुल्ला खामेनेई ने कई बार यह बात दोहराई है कि किसी व्यक्ति का अमेरिका के प्रति रवैया उसकी विश्वदृष्टि (worldview) को दर्शाता है।
उन्होंने चेताया कि आज भी कुछ विदेशी और फारसी भाषा के दुश्मन मीडिया यह कहकर एक ग़लतफ़हमी फैलाने वाला मनोवैज्ञानिक युद्ध चला रहे हैं कि अमेरिका वार्ता चाहता है लेकिन ईरान के सर्वोच्च नेता इसमें बाधा बन रहे हैं। यह एक योजना है जो तथ्यों को उल्टा करके पेश कर रही है।
इज़दी ने स्पष्ट किया कि ईरान और अमेरिका के बीच मूल समस्या यूरेनियम संवर्धन जैसी चीज़ों में नहीं है, बल्कि अमेरिका की नीतियों और उसके व्यवहार में है अमेरिका ने अंतरराष्ट्रीय संधियों का उल्लंघन किया है और ईरानी वैज्ञानिकों की हत्या जैसे कृत्यों से यह साबित किया है कि उस पर भरोसा नहीं किया जा सकता।
उन्होंने कहा कि आज अमेरिका पतन के रास्ते पर है और यहाँ तक कि म्यूनिख सुरक्षा सम्मेलन की वार्षिक रिपोर्ट "पोस्ट-वेस्ट" (Post-West) के शीर्षक के साथ इस गिरावट को स्वीकार कर चुकी है उस रिपोर्ट में कहा गया है कि वैश्विक शक्ति और संपत्ति अब पूरब की ओर बढ़ रही है, जो वैश्विक व्यवस्था में परिवर्तन का संकेत है।
उन्होंने इस्लामी क्रांति की शुरुआत से ही पूरब और पश्चिम दोनों की सत्ता के खिलाफ थी और आज अमेरिका से दुश्मनी उसकी नीति के कारण है, न कि उसकी जातीय पहचान के कारण। सुप्रीम लीडर हमेशा इस बात पर ज़ोर देते रहे हैं कि अमेरिका का पतन वास्तविक है और यह वापसी का रास्ता नहीं है।
इज़दी ने कहा कि अमेरिका के नीति निर्माताओं की तरफ़ से चलाया जा रहा यह मनोवैज्ञानिक युद्ध” इस उद्देश्य से हो रहा है कि इस्लामी व्यवस्था को अकार्यक्षम साबित किया जा सके। इसलिए, हमें सजग रहना चाहिए और अमेरिका को लेकर अपने विश्लेषण को वास्तविकता और पिछले अनुभवों के आधार पर ही बनाना चाहिए।
अंत में उन्होंने कहा कि आज दुनिया भर, ख़ास तौर पर अमेरिका के विश्वविद्यालयों में फ़िलिस्तीन के समर्थन की जागरूकता तेज़ी से बढ़ रही है। यह बात दर्शाती है कि मुक़ावमत (प्रतिरोध) की सोच अब ताक़तवर हो चुकी है और पश्चिमी धुरी कमज़ोर होती जा रही है।
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