हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, हज़रत आयतुल्लाहिल उज़मा शुबैरी ज़ंजानी ने एक लेख में दूसरों के लिए दुआ करने की अहमियत पर रौशनी डालते हुए इमाम मूसा काज़िम (अ.स.) की एक रिवायत का हवाला दिया और फ़रमाया,व्यक्ति अपने धार्मिक भाई के लिए उसकी ग़ैर मौजूदगी में दुआ करता है, तो अर्श ए इलाही से नेदा आती है,तुम्हारे लिए हो उसका सौ हज़ार गुना जो तूने अपने भाई के लिए माँगा है।
इसके बाद उन्होंने हज़रत अब्दुल्लाह बिन जुंदब का एक प्रेरणादायक वाक़या बयान किया,
इब्राहीम बिन हाशिम कहते हैं,मैंने हज़रत अब्दुल्लाह बिन जुंदब को मक़ाम-ए-अरफ़ात पर देखा। उनकी तरह ख़ुलूस और दर्द से भरी हुई दुआ किसी और की नहीं देखी। उनके दोनों हाथ लगातार आसमान की तरफ उठे हुए थे, और उनके आँसू उनके गालों से बहते हुए ज़मीन तक पहुँच रहे थे।
जब अरफ़ात से लौटने का समय आया और लोग वापस जाने लगे तो मैंने उनसे कहा,ऐ अबू मुहम्मद! मैंने आपसे बेहतर अरफ़ा का क़ियाम (रुकना) किसी का नहीं देखा!
उन्होंने जवाब दिया,ख़ुदा की क़सम! मैंने पूरे समय सिर्फ अपने धार्मिक भाइयों के लिए दुआ की। और इसकी वजह ये है कि हज़रत इमाम मूसा काज़िम (अ.स.) ने मुझे बताया कि जो व्यक्ति अपने धार्मिक भाई के लिए उसकी ग़ैर-मौजूदगी में दुआ करता है, तो आसमान से आवाज़ आती है तेरे लिए हो वो सब कुछ जिसकी तूने दुआ की बल्कि उससे एक लाख गुना ज़्यादा!
इसके बाद हज़रत अब्दुल्लाह बिन जुंदब ने कहा,मैं ये पसंद नहीं करता कि मैं सिर्फ एक दुआ माँगूं जिसकी क़बूलियत का मुझे कोई यक़ीन न हो और उसके बदले में उन एक लाख दुआओं से महरूम रह जाऊं, जिनकी क़बूलियत की गारंटी दी गई है।
काफी भाग 2,पेज 508
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