हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,हुज्जतुल इस्लाम वाल मुस्लिमीन मुर्तज़ा आगा तेहरानी ने हज़रत मासूमा स.अ.के पवित्र स्थल पर आयोजित एक मातमी सभा में संबोधित करते हुए कहा कि मानवता की सेवा धर्म की वास्तविक आत्मा और सबसे बड़ी इबादतों में से एक है उन्होंने कहा कि जो व्यक्ति ईश्वर के बंदों की सेवा से अनजान है, वह धर्म के वास्तविक अर्थ को नहीं समझता।
उन्होंने कहा कि सेवा को केवल अल्लाह की रज़ा के लिए की जानी चाहिए और अगर यह नेक नियत से की जाए तो यह इंसान को ईश्वर के निकट पहुँचाती है उन्होंने दुख जताते हुए कहा कि आज दुनिया में मानवता और सेवा के मूल्य विकृत हो चुके हैं।
हुज्जतुल इस्लाम आका तेहरानी ने माह-ए सफर को मुहर्रम का विस्तार बताया और कहा कि इमाम हुसैन अ.स.का संघर्ष इसी महीने में अपने चरम पर पहुँचा अर्बईन का मार्च एक महान अवसर और उत्तम इबादत है जिसके माध्यम से हमें इमाम हुसैन (अ.स.) के लक्ष्यों को पहचानना और उनका अनुसरण करना चाहिए।
उन्होंने इमाम रज़ा अ.स. की हदीस के हवाले से कहा कि अल्लाह अपने बंदे की धारणा के अनुसार होता है।अगर इंसान ईश्वर की रहमत और उसके गुणों को पहचान ले तो उसके दिल में अल्लाह की मोहब्बत बढ़ती है और उसकी रूह में ईश्वरीय जलाल के निशान प्रकट होते हैं।
हुज्जतुल इस्लाम आगा तेहरानी ने मज़लूम फिलिस्तीनी बच्चों के क़त्लेआम की कड़ी निंदा करते हुए कहा कि यहूदीवादी अत्याचार इतने भयानक हैं कि उनकी तुलना जानवरों से भी नहीं की जा सकती क्योंकि जानवर भी कुछ नैतिक सीमाओं का पालन करते हैं।
उन्होंने कहा कि अगर इंसान आत्मिक शिक्षा और संयम से दूर हो जाए, तो वह सबसे बुरे अपराध कर सकता है कर्बला की घटना एक ही दिन में पूरी हुई, लेकिन उसकी रौशनी और संदेश हमेशा के लिए अमर हो गया इमाम हुसैन (अ.स.) की शहादत और अहलेबैत (अ.स.) की असीरियत ने इस आंदोलन को इतिहास में अमर कर दिया।
उन्होंने कहा कि यज़ीद ने धर्म के ढोंग के साथ लोगों को धोखा दिया लेकिन जब इमाम सज्जाद अ.स. ने शाम में अपने ख़ुत्बे दिए, तो यज़ीद का असली चेहरा उजागर हो गया इन ख़ुत्बों के माध्यम से पैगंबर स.अ.व. और हज़रत अली (अ.स.) की फज़ीलतों को बयान किया गया, यहाँ तक कि यज़ीद ने भी खुद को अशूरा के जुर्मों से बरी करने की कोशिश की।
उन्होंने कहा कि हाल की लड़ाई में यहूदी विश्लेषकों ने भी माना कि ईरान इस मैदान का विजेता रहा और इज़राइल अपने मकसद में नाकाम रहा।
अंत में उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि हमें खुद भी अस्ल इस्लाम को पहचानना चाहिए और अपनी आने वाली पीढ़ियों को भी सही धर्म से परिचित कराना चाहिए ताकि वह गुमराही और अज्ञानता से बच सकें।
आपकी टिप्पणी