हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,एक रिपोर्ट के अनुसार , ईरान के हौज़ा ए इल्मिया के प्रमुख आयतुल्लाह आराफ़ी ने कहा कि इमाम की मारफ़त ही इंसान की आध्यात्मिक उन्नति और पूर्णता की बुनियाद है और यदि इमाम की सही पहचान न हो तो इंसान के सभी कर्म अधूरे और नाकिस रहेंगे।
उन्होंने यह बात शहर बनाब के हौज़ा-ए-इल्मिया के छात्रों की अम्मामा पोशी की रस्म के दौरान अपने संबोधन में कही इस कार्यक्रम में उलेमा राजनीतिक और सामाजिक हस्तियां तथा जनता की एक बड़ी संख्या मौजूद थी।
आयतुल्लाह आराफ़ी ने इमाम ज़माना अ.ज. के इंतज़ार को ईश्वरीय मूल्यों को प्रोत्साहित करने वाला तत्व बताते हुए कहा कि छात्रों को चाहिए कि इमाम की पहचान और उनसे प्रेम के साथ-साथ, धर्म और समाज की सेवा में विनम्रता और त्याग को अपनाएं और इसी रास्ते पर आगे बढ़ें।
उन्होंने आज़रबाइजान विशेष रूप से शहर बनाब के लोगों की सराहना करते हुए कहा कि हौज़ा-ए-इल्मिया बनाब जनता के समर्थन के कारण आज देश के प्रतिष्ठित धार्मिक विद्यालयों में गिना जाता है इसके लगभग दो हजार पूर्व छात्र आज क़ुम और अन्य शहरों में धार्मिक सेवाएं अंजाम दे रहे हैं जो बनाब के लोगों के लिए गर्व की बात है।
ईरान और हौज़ा-ए-इल्मिया की इस्लामी शिक्षाओं के प्रचार में ऐतिहासिक भूमिका को उजागर करते हुए उन्होंने कहा कि ईरान ने खुले दिल से इस्लाम और शिया मत को स्वीकार किया और आज दुनिया भर में इस्लामी और शिया शिक्षाएं ईरानी हौज़ों के माध्यम से फैल रही हैं।
आयतुल्लाह आराफ़ी ने कहा कि इस्लामी क्रांति इस महान आंदोलन की ध्वजवाहक है और आज पूरी दुनिया की नज़रें ईरान और हमारे धार्मिक केंद्रों पर टिकी हुई हैं।
उन्होंने इमाम ज़माना अ.ज. की पहचान और उनके इंतज़ार की महत्ता पर जोर देते हुए कहा कि इंतज़ार केवल एक विचार नहीं है, बल्कि सभी ईश्वरीय मूल्यों, जैसे नमाज़, रोज़ा, जिहाद, नेकी और समाज सेवा का असली प्रेरक है। हमें इमाम ज़माना अज की पहचान और प्रेम को मजबूत करते हुए उनके जुहूर के लिए स्वयं को तैयार करना चाहिए।
उन्होंने इतिहास में हौज़ा-ए-इल्मिया की नास्तिकता और अधार्मिकता के खिलाफ भूमिका पर प्रकाश डालते हुए कहा कि संविधानिक क्रांति और प्रथम विश्व युद्ध के बाद हौज़ा-ए-इल्मिया क़ुम को मरहूम अब्दुलकरीम हायरी यज़दी ने फिर से जीवित किया आज इस्लामी क्रांति की बदौलत धार्मिक विद्यालय पूरी दुनिया में फैल चुके हैं।
आयतुल्लाह आराफ़ी ने इमाम-ए-जुमा बनाब और अन्य हस्तियों का धन्यवाद करते हुए आशा व्यक्त की कि जनता और अधिकारियों के सहयोग से हौज़ा-ए-इल्मिया और अधिक विकसित होंगे और धर्म एवं समाज की सेवा में अपनी ज़िम्मेदारियों को पूरी तरह निभाएंगे।
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