हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , अलीरज़ा खातमी द्वारा लिखित पुस्तक दास्तानहाये अज़ उलेमा (धार्मिक विद्वानों की कहानियाँ) उलेमा और धार्मिक विद्वानों के जीवन के शिक्षाप्रद प्रसंगों और बातों को शामिल करती है जो विभिन्न अंकों में आप बुद्धिजीवियों को प्रस्तुत की जाएँगी।
शहीद आयतुल्लाह हाज़ शेख अली आका क़ुद्दुसी (रह) की पत्नी कहती हैं:
उनका एक समूह बच्चों और रिश्तेदारों के साथ था, जो हर साल ईद से एक महीने पहले जाते थे और उनके कपड़ों का साइज लेते थे और जूते का नंबर पूछते थे और उनके लिए कपड़े और जूते तैयार करते थे।
यहाँ तक कि मुझे याद है कि एक साल एक परिवार आया जिसके बहुत सारे बच्चे थे, उन्होंने एक-एक करके बच्चों का साइज लिया ताकि उनके लिए जूते और कपड़े तैयार कर सकें।
मैंने उनसे कहा, आप इनके लिए कपड़े खरीद रहे हैं, हमारे बच्चे: मोहम्मद हसन और मोहम्मद हुसैन भी इनकी उम्र के हैं। तो आप इनके लिए कुछ क्यों नहीं खरीदते? उन्होंने जवाब दिया,ये खुद जानते हैं कि हमारी ईद वह दिन है जब एक भी कैदी न हो। ईद वह दिन है जब सभी खुश हों।
वह उन परिवारों के पास जाते थे जिनके पति जेल में थे, उनकी जरूरतों की चीजें खरीदते थे और रात में उनके घर ले जाते थे। यहाँ तक कि वे घर वालों को यह भी नहीं बताते थे कि वे कहाँ जा रहे हैं।
एक दिन उनका भाई आया और उनके बारे में मुझसे पूछा। मैंने कहा: वह बाहर गए हैं। उसने पूछा: रात के इस समय कहाँ गए? मैंने कहा: पता नहीं। उसनेकहा: मैं उनकी तलाश में जाता हूँ। जब वह गयाऔर वापस आया तो मैंने देखा कि वह बहुत चिंतित था, बाद में उसने कहा: क्या तुम जानती हो कि उस रात अली आका कहाँ गए थे? मैंनेकहा: नहीं। उसनेकहा: मैंने उन्हें ऐसी स्थिति में पाया कि मैंने देखा कि वह एक घर के दरवाजे पर गए और उस अमुक व्यक्ति के परिवार की मदद की जो जेल में था।
यह घटना राजशाही के समय की है।
पत्रिका राहे रश्द: 15 मार्च 2000, अंक 3, पृष्ठ 3
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