शनिवार 18 अक्तूबर 2025 - 18:09
बरज़ख और कयामत के सवालात में क्या फर्क है?

हौज़ा / बरजख और क़ियामत दोनों जगह इंसान से सवाल किए जाते हैं और उसका हिसाब-किताब होता है लेकिन इन दोनों जगहों के सवालों की प्रकृति, गहराई और मकसद बिल्कुल अलग होता हैं। यही फर्क इंसान की आखिरी मंजिल और उसके अंजाम को शुरू से ही साफ कर देता है।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,बरजख और क़ियामत दोनों जगह इंसान से सवाल किए जाते हैं और उसका हिसाब-किताब होता है लेकिन इन दोनों जगहों के सवालों की प्रकृति, गहराई और मकसद बिल्कुल अलग होता हैं। यही फर्क इंसान की आखिरी मंजिल और उसके अंजाम को शुरू से ही साफ कर देता है।

ब्रज़ख़ और क़यामत के सवाल

इंसान से एक सवाल कब्र के संसार में होता है और एक सवाल क़यामत के दिन।

ब्रज़ख़ में होने वाला सवाल वास्तव में एक प्रारंभिक पूछताछ है, यानी इंसान से उसके आस्थाओं और कुछ बुनियादी कर्मों के बारे में सवाल किया जाता है।

लेकिन क़यामत में, आस्थाओं, नैतिकता और कर्मों की सभी बारीकियों के बारे में पूछा जाएगा।

उदाहरण के लिए:

ब्रज़ख़ में पूछा जाता है: क्या तुम नमाज़ पढ़ते थे या नहीं?
लेकिन क़यामत में पूछा जाएगा: तुमने जो नमाज़ पढ़ी, उसकी नीयत क्या थी? क्या कपड़ा ग़स्बी तो नहीं था? क़िराअत रुकू और सज्दे सही थे या नहीं? यानी वहाँ हर एक बारीकी पर सवाल होगा।

ब्रज़ख़ में अधिकतर मूलभूत आस्थाओं से संबंधित सवाल किया जाता है, वे आस्थाएँ जो इंसान के व्यक्तित्व और जीवन की दिशा को निर्धारित करती हैं।

आस्था: व्यक्तित्व की आधारशिला

इंसान के व्यक्तित्व के निर्माण में सबसे बुनियादी और प्रभावशाली तत्व उसकी आस्थाएँ हैं। हालाँकि नैतिकता और कर्म भी प्रभाव रखते हैं, लेकिन मुख्य केंद्र आस्था ही है। इसीलिए फ़रिश्ते सबसे पहले इसी के बारे में पूछते हैं:

तुम्हारा माबूद कौन था?
तुम्हारा दीन क्या था?
तुम्हारे पैग़ंबर और इमाम कौन थे?

फिर कुछ ख़ास कर्मों के बारे में पूछा जाता है, जैसे:नमाज़, रोज़ा, ख़ुम्स, हज, क्योंकि ये कर्म ईमान की सच्चाई के गवाह हैं।

इसी तरह सवाल होगा:

· तुम्हारी कमाई कहाँ से थी? हलाल थी या हराम?
तुमने अपनी जवानी और ज़िंदगी कहाँ खर्च की?

कर्म क्यों पूछे जाते हैं?

ये कर्म वास्तव में इस बात का मापदंड हैं कि इंसान की आस्थाएँ वास्तविक थीं या सिर्फ़ ज़ुबानी।

अगर कोई कहे: मैं ख़ुदा पर ईमान रखता हूँ, तो फ़रिश्ते कहेंगे: सबूत क्या है? नमाज़ कहाँ है?

अगर तुम इमाम और नबी को मानते थे तो फिर उनके हक़ क्यों नहीं अदा किए? ख़ुम्स क्यों नहीं दिया? हराम कमाई क्यों अपनाई? उम्र को क्यों बेकार और गुनाहों में बर्बाद किया?

ये सवाल इम्तिहान की तरह समय लेकर नहीं किए जाते, बल्कि मलाइका (फ़रिश्ते) ख़ुद-ब-ख़ुद इंसान के अंदर से हक़ीक़त ज़ाहिर कर देते हैं।

ब्रज़ख़ का परिणाम

अगर इंसान इन सवालों में सफल हो जाए, तो ब्रज़ख़ उसके लिए आराम और राहत का स्थान बन जाता है।

उस पर जन्नत का एक दरवाज़ा खुल जाता है, यानी क़यामत की जन्नत की एक झलक उसे ब्रज़ख़ में दे दी जाती है।

लेकिन अगर इंसान इन सवालों में नाकाम हो जाए, तो उस पर जहन्नम का दरवाज़ा खोल दिया जाता है।

यानी इंसान का परिणाम पहले ही चरण में स्पष्ट हो जाता है, और कब्र का सवाल इसी प्रारंभिक चरण में किया जाता है।

ब्रज़ख़ में किसी तरह की भटकन नहीं होती।

हुज्जतुल इस्लाम मसूद आली

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