शुक्रवार 5 सितंबर 2025 - 15:30
अमेरिका और सहयोगियों का लेबनान पर दबाव; हिज़्बुल्लाह को निरस्त्र करने की मांग

हौज़ा / अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स ने खुलासा किया है कि अमेरिका, इज़राइल और खाड़ी के अरब देशों ने लेबनान की सरकार पर दबाव बढ़ा दिया है ताकि वह हिज़्बुल्लाह को निरस्त्र करने के लिए तत्काल और सख्त कदम उठाए।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , अमेरिकी अधिकारियों ने बेरुत में कैबिनेट की एक महत्वपूर्ण बैठक से पहले लेबनानी अधिकारियों को चेतावनी दी कि अगर हिज़्बुल्लाह को निरस्त्र करने में देरी हुई तो लेबनान अमेरिकी और खाड़ी की वित्तीय सहायता से वंचित हो सकता है और उसे इज़राइल की ओर से एक नई सैन्य कार्रवाई का भी सामना करना पड़ सकता है। वर्तमान में अमेरिका हर साल लेबनानी सेना को लगभग 150 मिलियन डॉलर की सहायता देता है।

पिछले महीने लेबनानी सरकार ने पहली बार सेना को निर्देश दिया कि वह हिज़्बुल्लाह के हथियारों के खात्मे के लिए एक औपचारिक योजना तैयार करे। कैबिनेट इस योजना पर विचार करने वाली है। वाशिंगटन और तेल अवीव इस कदम को बेरुत की राजनीतिक प्रतिबद्धता की परीक्षा बता रहे हैं।

वहीं हिज़्बुल्लाह के उप महासचिव शेख नईम कासिम ने इस सरकारी योजना को अत्यंत गलत फैसला बताते हुए कहा कि यह कदम लेबनान को इज़राइली आक्रामकता के सामने बेरहम कर देगा और प्रतिरोध योद्धाओं के साथ-साथ उनके परिवार भी हत्या और जबरन बेदखली का शिकार हो सकता हैं। उन्होंने चेतावनी दी कि इस दबाव के परिणामस्वरूप लेबनान में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन भी भड़क सकते हैं, जिससे अमेरिकी दूतावास भी खतरे में पड़ सकता है।

विशेषज्ञों का कहना है कि लेबनानी सेना के पास इतनी क्षमता नहीं है कि वह इज़राइली आक्रामकता का अकेले सामना कर सके। इसीलिए हिज़्बुल्लाह पिछले कई दशकों से लेबनान का सबसे मजबूत रक्षा कवच साबित हुआ है।

इज़राइल ने दक्षिणी लेबनान में कई सैन्य अड्डे स्थापित किए हैं और कुछ विश्लेषकों के मुताबिक वह 1980 के दशक की तरह एक "निर्जन सुरक्षा क्षेत्र" फिर से स्थापित करने की योजना बना सकता है।

कुछ लेबनानी अधिकारियों का मानना है कि इज़राइल ने अब तक हिज़्बुल्लाह के निरस्त्र होने के साथ-साथ अपनी वापसी की कोई स्पष्ट गारंटी नहीं दी है, जिससे यह कदम जनता में बाहरी ताकतों के दबाव के रूप में देखा जा सकता है।

अमेरिका और खाड़ी राज्यें लेबनान को अरबों डॉलर की आर्थिक सहायता के वादों के जरिए राजी करने की कोशिश कर रही हैं, लेकिन टिप्पणीकारों के मुताबिक, जब तक इज़राइल की ओर से पारदर्शी गारंटियां प्रदान नहीं की जातीं, यह योजना सफल होती नहीं दिखती।

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