शनिवार 20 सितंबर 2025 - 09:48
हज़रत मासूमा (स) के बारे में मिर्ज़ा ए क़ुमी की सिफ़ारिश

हौज़ा / क़ुम के इतिहास की सबसे कष्टदायक अकाल के दौरान, हज़रत मासूमा (स) के मक़बरे में चालीस धार्मिक लोगों का एक समूह धरने पर बैठा। लेकिन उन्हें अपनी दुआ का जवाब उस जगह से मिला जिसकी उन्होंने कभी उम्मीद नहीं की थी।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी ।  इस्लामी प्रेरणादायक कथाओं में, जो अल्लाह के वलीयो की करामात और अहले बैत (अ) के उच्च स्थान को दर्शाती हैं, यह कहानी जो एक परहेज़ग़ार विद्वान की जुबानी सुनाई गई है, इस सच्चाई का जीवंत और विचारशील सबूत है कि इमाम और अल्लाह के वली, इस दुनिया के पार की दुनियाओं में, रहमते इलाही का माध्यम हैं। और इन महानुभावों में से हर एक की प्रतिष्ठा को समझना, भौतिक और आध्यात्मिक संकटों को समाधान करने की चाबी है। यह कहानी  "तवस्सुल" को एक साधन और "शफाअत" को एक उच्च स्थान के रूप में दर्शाती है।

हज़रत आयतुल्लाह हाज शेख मुहम्मद नासिरी दौलताबादी अपने दिवंगत पिता, आयतुल्लाह शेख मुहम्मद बाक़िर नासिरी के हवाले से बयान करते हैं:

1295 हिजरी क़मरी में, क़ुम के आसपास एक बहुत कष्टदायक अकाल पड़ा जो लोगों को बहुत परेशान कर रहा था। लोगों ने फैसला किया कि वे अपने बीच से चालीस धार्मिक लोगों को चुनकर क़ुम भेजेंगे।

यह चालीस लोग क़ुम आए और हज़रत मासूमा (स) की दरगाह में धरने पर बैठ गए ताकि शायद इस महान बीबी की इनायत और दुआ से, खुदा बारिश भेज दे। तीन दिन और रात के बाद, तीसरी रात को, उनमें से एक ने मिर्ज़ा ए क़ुमी को सपना मे देखा। मिर्ज़ा ए क़ुमी ने उससे उनका धरने पर बैठने का कारण पूछा। उसने कहा: "कुछ समय से हमारे इलाके में बारिश न होने के कारण सूखा और अकाल पड़ गया है। खतरे को दूर करने के लिए हम यहाँ आए हैं।"

मिर्ज़ा ए क़ुमी कहते हैं:

"क्या तुम इसी कारण यहाँ एकत्र हुए हो? यह तो कोई बड़ी बात नहीं है; यह काम तो मैं भी कर सकता हूँ। ऐसी ज़रूरतों में मुझसे मिलो। लेकिन अगर तुम आख़ेरत मे शफ़ाअत चाहते हो, तो इस शफ़ीआ ए रोज़ ए जज़ा ए हज़रत फ़ातिमा मासूमा (स) के पास दोनो हाथ फैलाओ।"

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