हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, कल 17 रबीअ उस सानी को अली मंज़िल, भीखपुर (सिवान, बिहार) में दुआ-ए-नुदबा का एक आध्यात्मिक और आध्यात्मिक कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस कार्यक्रम की विशेषता यह थी कि दुआ-ए-नुदबा को व्याख्या के साथ और प्रतिष्ठित शिक्षकों की उपस्थिति में पढ़ा गया। यह इस क्षेत्र में दुआ-ए-नुदबा का पहला आधिकारिक कार्यक्रम था, जिसकी श्रृंखला इन्शाअल्लाह अगले सप्ताह से हर साल, हर इमाम हुसैन (अलैहिस सलाम) के प्रेमी के घर पर जारी रहेगी।
कार्यक्रम में मौलाना मुहम्मद रिज़ा मारूफी ने दुआ-ए-नुदबा की तिलावत की और मोमिनों को संबोधित करते हुए दुआ के अर्थों और उसकी व्याख्या पर प्रकाश डाला।
अंत में मौलाना सय्यद शमा मुहम्मद रिज़वी ने संबोधित करते हुए कहा कि कुछ साल पहले हौज़ा ए इल्मिया आयतुल्लाह खामनेई के तत्वावधान में मदरसों की एक बड़ी संख्या में हर सप्ताह दुआ-ए-नुदबा के कार्यक्रम शानदार तरीके से आयोजित किए जाते थे, जो सुबह के समय दो से तीन घंटे तक चलते थे। लेकिन परिस्थितियों और शिक्षकों की कमी के कारण बहुत से शैक्षणिक केंद्र और ये कार्यक्रम धीरे-धीरे अपनी मूल आत्मा खो बैठे। अब अल्हम्दुलिल्लाह यह श्रृंखला फिर से बेहतर और व्यवस्थित तरीके से शुरू की जा रही है। उन्होंने आगे कहा कि इस्लामी ज्ञान के प्रचार-प्रसार की बहुत आवश्यकता है, इसलिए सभी इमाम हुसैन (अ) के प्रेमियों को चाहिए कि वे मिलकर इस कारवां को आगे बढ़ाएं।
मौलाना रिज़वी ने दुआ-ए-नुदबा के विषयों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि इस दुआ का मुख्य उद्देश्य इमाम-ए-ज़माना (अ) के ज़हूर की तैयारी करना है। जब लोग इस दुआ के माध्यम से ज़हूर के कारणों और कारकों से परिचित हो जाएंगे, तो इमाम की आवाज़ पर लब्बैक कहने की भावना स्वतः पैदा हो जाएगी। अल्लाह हमारे आलिमों को सलामत रखे, और इस्लामी क्रांति के बानी इमाम खुमैनी (र) के उन प्रयासों को स्थायी रखे, जिनकी बरकत से आज पूरी दुनिया में दीन की रौनक बनी हुई है।
उन्होंने आयतुल्लाह अली रज़ा आराफी (मजलिस-ए-ख़बरगान के सदस्य) और जामिअतुल मस्तूफा अल-आलमिया के प्रमुख आयतुल्लाह डॉ. अली अब्बासी (म) सहित उन सभी बुजुर्गों का आभार व्यक्त किया, जिन्होंने अहल-ए-बैत (अ) के ज्ञान के प्रचार-प्रसार के लिए दुनिया भर में दिन-रात प्रयास किए।
मौलाना ने अपने भाषण के अंत में कहा कि अब समय की मांग है कि हर व्यक्ति परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए खुद कदम आगे बढ़ाए, चाहे वह हौज़ा ए इल्मिया का मामला हो, हुसैनिया का हो या धार्मिक केंद्रों का। अगर इंसान दुआ-ए-नुदबा के रहस्यों और नबवी निर्देशों को दिल से समझे और ईमानदारी से उन पर अमल करे, तो हर परेशानी से छुटकारा संभव है और इसी तरह समाज प्रगति के पायदान तय करता रहेगा।
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