लेखक: डॉ. नदीम अब्बास
हौज़ा न्यूज़ एजेसी । ज़ुल्म, जबरदस्ती, बर्बरता, नस्ली सफाया, अकाल, पूजा स्थलों और पवित्र जगहों का विनाश — जो भी जुल्म आप 21वीं सदी में सोच सकते हैं, वह सब इजरायल ने किया है। इस पूरे समय में यूरोप और अमेरिका ने पूरी तरह इजरायल की पीठिका बनकर रहे और हर उस कदम के सामने आए जो इजरायल को उसकी सीमा में रखने और क्षेत्रीय स्थिरता बनाए रखने के लिए उठाया गया था। इस्लामिक गणतंत्र ईरान ने "ऑपरेशन वाद-उस-सादिक" के नाम से इस जुल्म और बर्बरता के खिलाफ दो बार कार्रवाई की। आप इसकी पूरी जानकारी देख सकते हैं। यूरोप, अमेरिका और उनके स्थानीय कठपुतलियों ने मिलकर पूरी ताकत इजरायल की रक्षा के लिए इस्तेमाल की। यह ईरान की मिसाइल तकनीक की ताकत थी जिसने हैफा और तेल अवीव में इतनी गर्मी पैदा कर दी कि उसकी लपटें वाशिंगटन तक महसूस होने लगीं। अमेरिका इजरायल को बचाने के लिए मैदान में आया और कतर में अपने आधारों पर हमला करवा बैठा।
राष्ट्रपति ट्रंप को शांति के नोबेल पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया है और उनका बहुत जोर है। वह चाहते हैं कि इस साल वह नोबेल पुरस्कार जरूर जीतें। उन्होंने सीधे तौर पर धमकी भरी भाषा भी इस्तेमाल की है कि उन्हें ही नोबेल पुरस्कार मिलना चाहिए। अगर नोबेल पुरस्कार समिति ट्रंप को शांति का पुरस्कार देती है तो यह उनके नैतिक मानकों पर भी सवाल खड़ा करेगा। वह व्यक्ति जो गाजा में नस्ली सफाये में सीधे शामिल है, उसे किसी भी हाल में यह महत्वपूर्ण पुरस्कार नहीं दिया जाना चाहिए। मेरा मानना है कि उन्हें यह कहा गया होगा कि जब तक ग़ज़्ज़ा में जंग जारी है, तब तक उन्हें यह पुरस्कार नहीं दिया जा सकता। इसलिए उन्होंने पूरी तैयारी की और हर जगह यह डेडलाइन दी कि जरूर जुम्मे तक ग़ज़्ज़ा में युद्ध विराम की बातचीत पूरी कर ली जाए, ताकि जब जुम्मे को नोबेल पुरस्कार समिति फैसला करे, उस समय टीवी पर यह खुशनुमा नजारा दिखाया जा सके कि गाजा में युद्ध विराम हो चुका है।
मीडिया बता रहा है कि ट्रंप खुद शर्म अल-शेख में अंतिम समझौते के लिए पहुंच रहे हैं। वैसे यह शर्म अल-शेख हमेशा से फिलिस्तीनी संघर्ष की खरीद-फरोख्त का केंद्र रहा है। यहां से फिलिस्तीनियों को झूठे वादों और जबरन विस्थापन के अलावा कभी कुछ नहीं मिला। दोस्तों, हमेशा यह विचार रहा है कि शांति ताकत का नतीजा होती है, कमजोर को बस गुलामी करनी पड़ती है। आज ग़ज़्ज़ा के हजारों मुजाहिदों की कुर्बानियों के कारण ग़ज़्ज़ा और फिलिस्तीनी राज्य की बात हो रही है। इब्राहिम समझौते के नाम पर पूरे ग़ज्ज़ा और फिलिस्तीन को हमेशा के लिए निगलने की योजना थी। मुजाहिदों की कुर्बानियों ने औपनिवेशिक योजनाओं पर पानी फेर दिया है। ग़ज़्ज़ा की महान कुर्बानियां हमें यह याद दिलाती हैं कि अगर पूरा अमेरिका, यूरोप और उनके स्थानीय गुर्गे आपके खिलाफ हों और आप पूरी तरह अल्लाह पर भरोसा रखकर तैयारी करें, तो जीत और सफलता आपके कदमों में होती है।
याद रखिए, प्रतिरोध के लिए बचे रहना ही जीत होती है। जो खुद को सबकुछ जानने वाला समझते हैं, वे इतिहास से अनजान हैं। आज नहीं तो कल, हालात बदलने ही वाले हैं और ताकत का संतुलन भी बदलेगा। यह एक अस्वाभाविक राज्य है, आज नहीं तो कल यह खत्म हो जाएगा। स्थानीय मुसलमान, यहूदी और ईसाई मिलकर रहेंगे और यह सब फिलिस्तीन होगा। अभी तक नेतन्याहू फिरौन के अंदाज में बोल रहा था कि वह हमास पर पूरी तरह जीत हासिल करेगा, गज़्ज़ा को एक जमीन की तरह एक रिसॉर्ट बनाएगा और इसके लिए निवेशकों का भी इंतजाम कर लिया गया था। आपको ट्रंप का वह वीडियो याद होगा जिसमें ग़ज़्ज़ा को एक रिसॉर्ट दिखाया गया था और ट्रंप व नेतन्याहू को वहां मस्ती करते दिखाया गया था। आज सभी बातचीत के लिए मजबूर हैं, एक बार नहीं, बार-बार मजबूर हुए हैं।
दुनिया का सामूहिक विवेक सरकारों से अलग होता है और इसके असर को नकारा नहीं जा सकता। कुछ समय तक जनता की सामूहिक बुद्धि पर मीडिया और प्रचार का पर्दा डाला जा सकता है, लेकिन हमेशा के लिए ऐसा करना संभव नहीं है। आज की स्थिति यह है कि पूरे गाजा को तबाह करने और दुनिया की नवीनतम तकनीक के इस्तेमाल के बावजूद इजरायल अपने किसी भी कैदी को छुड़ा नहीं पाया है। हमास जब चाहती है, जैसे चाहती है, कार्रवाई करती है और अपनी मौजूदगी का ऐलान करती है। 7 अक्टूबर को रॉकेट बरसाकर उसने यह साबित कर दिया कि हम जमीन पर मौजूद हैं और आपके बहुत करीब हैं। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, मौजूदा समझौते के तहत सभी कैदियों को रिहा किया जाएगा, जिनमें 20 कैदियों के बारे में कहा जा रहा है कि वे जिंदा हैं। सभी जीवित बचे कैदियों को एक साथ संभवतः रविवार तक रिहा कर दिया जाएगा। जबकि 28 मारे गए कैदियों के अवशेष चरणबद्ध तरीके से वापस किए जाएंगे।
समझौते के तहत इजरायली जेलों में बंद सैकड़ों फिलिस्तीनियों को रिहा किया जाएगा और इजरायली सेना ग़ज़्ज़ा के कुछ इलाकों से हट जाएगी और क्षेत्र में इंसानी मदद की आपूर्ति बढ़ाई जाएगी। पूर्ण युद्ध विराम पर आगे बातचीत जारी रहेगी। इजरायल एक अविश्वसनीय राज्य है, यह अपने समझौतों का पालन नहीं करता। मौजूदा समझौता कितने दिन चलेगा, यह आने वाला समय बताएगा। अमेरिका और पश्चिमी देशों की सरकारों की नीति स्पष्ट थी कि वे इजरायली नस्ली सफाये में शामिल थे, लेकिन यूरोप की जनता ने बहुत बड़ा प्रतिरोध किया है। मुझे लगता है कि हमारे मुस्लिम समाजों में इस तरह की जागरूकता की बहुत जरूरत है। लोगों को मानवाधिकार और अन्य नारों पर बहुत संवेदनशील बनाया गया था, लेकिन यह सब इस झूठे विचार पर आधारित था कि "इंसान" से मतलब सिर्फ सफेद फाम के लोग हैं।
यूरोप के लोगों ने मानवता के इतिहास में बड़े-बड़े जलसे किए हैं, इस मौके पर इन इंसान दोस्तों का शुक्रिया अदा करना चाहिए। इन दो सालों में यूरोप के 25 देशों के 793 शहरों में फिलिस्तीन के समर्थन में 45,000 से ज्यादा प्रदर्शन और कार्यक्रम हुए। सबसे ज्यादा प्रदर्शन इटली (7643), जर्मनी (6918), स्पेन (5886), फ्रांस (5253) और नीदरलैंड्स (3301) में हुए। अन्य देशों में स्वीडन (3112), डेनमार्क (3244), बेल्जियम (2252), स्विट्जरलैंड (1561) और ऑस्ट्रिया (1745) शामिल हैं। पूर्वी यूरोप और अन्य देशों जैसे ग्रीस, नॉर्वे, पोलैंड, पुर्तगाल, सर्बिया और फिनलैंड में भी सैकड़ों प्रदर्शन हुए। अंत में मैं यही कहूंगा कि यह एक विराम है, अगली लड़ाई तक के लिए युद्ध रुक गया है। जब तक सभी फिलिस्तीनियों को उनके घर वापसी नहीं होती, तब तक गाजा की लड़ाई जारी रहेगी। नदी से लेकर समुद्र तक फिलिस्तीन होगा और इस फिलिस्तीन में सभी धर्मों के फिलिस्तीनी मिलकर रहेंगे।
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