गुरुवार 16 अक्तूबर 2025 - 09:02
शर्म-अश-शैख़ सम्मेलन इस्लामी देशों के कुछ नेताओं के लिए ट्रंप के सामने अपमान का दृश्य था

हौज़ा / आयतुल्लाह मोहसिन अराकी ने प्रांतीय धार्मिक शिक्षण केंद्रों के प्रचार विभागों के अधिकारियों के बीच कहा कि शर्म-अश-शैख़ सम्मेलन इस्लामी देशों के कुछ नेताओं के लिए ट्रंप के सामने अपमान का दृश्य था। ट्रंप ने मुस्लिम देशों के प्रमुखों का अपमान किया, जबकि वही लोग इज़राईल और अमेरिका की सेवा में लगे रहते हैं। मिस्र के राष्ट्रपति, जिन्होंने वर्षों तक प्रतिरोध को खत्म करने की कोशिश की, ट्रंप के सामने अपमानित हुए।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, आयतुल्लाह मोहसिन अराकी ने प्रांतीय धार्मिक शिक्षण केंद्रों के प्रचार विभागों के अधिकारियों के बीच कहा कि शर्म-अश-शैख़ सम्मेलन इस्लामी देशों के कुछ नेताओं के लिए ट्रंप के सामने अपमान का दृश्य था। ट्रंप ने मुस्लिम देशों के प्रमुखों का अपमान किया, जबकि वही लोग इज़राईल और अमेरिका की सेवा में लगे रहते हैं। मिस्र के राष्ट्रपति, जिन्होंने वर्षों तक प्रतिरोध को खत्म करने की कोशिश की, ट्रंप के सामने अपमानित हुए।

उन्होंने कहा कि दुश्मन का सबसे ख़तरनाक हथियार "मनोवैज्ञानिक युद्ध" है। सैन्य युद्ध में दुश्मन हार जाएगा, लेकिन संघर्ष से पहले वह भय, भ्रम और निराशा पैदा कर हमें कमजोर करता है। हमारा फ़र्ज़ है कि इस मानसिक युद्ध का सामना करें और दुश्मन को दिखाएँ कि हम वास्तव में शक्तिशाली हैं।

आयतुल्लाह अराकी ने कहा कि इस्लामी क्रांति की सफलता और उपलब्धियों को खासकर युवा पीढ़ी के सामने रखना बेहद ज़रूरी है, ताकि वे समझ सकें कि दुश्मन क्रांति से क्यों नफ़रत करता है और उनका ईमान व अंतर्दृष्टि मज़बूत हो।

उन्होंने कहा कि दुनिया ने ईरान की प्रशंसा की कि उसने उस सम्मेलन में भाग नहीं लिया—यह इज़्ज़त हमारे ईमान और आत्मनिर्भरता का फल है। हमें यह देखना चाहिए कि मानसिक मोर्चे पर हमने कितना काम किया और आगे कैसी रणनीति अपनाएँ।

आयतुल्लाह अराक़ी ने स्पष्ट किया कि ईमान ताक़त और आत्मविश्वास का स्रोत है। जो समाज ईमान रखता है, वह न डरता है और मुश्किलों को पार करता है। उन्होंने कुरआन की आयत पढ़ी: ":وَلَا تَهِنُوا وَلَا تَحْزَنُوا وَأَنتُمُ الْأَعْلَوْنَ إِن کُنتُم مُّؤْمِنِینَ वला तहेनू वला तहज़नू व अन्तुमुल आलौना इन कुन्तुम मोमेनीन]"—सुस्ती न करो, उदास मत हो; यदि मोमिन हो, तो तुम ही श्रेष्ठ हो।

उन्होंने कहा कि हमें इस्लाम के शुरुआती युद्धों—जैसे ख़ैबर,अहज़ाब—को आज के लिए एक पाठशाला के रूप में समझाना चाहिए। ये केवल युद्ध नहीं थे, बल्कि ईमान, बहादुरी और समझदारी के सबक थे। जब मोमिनों ने कठिन हालात में ईमान के सहारे विजय पाई, उसी तरह आज भी वही यक़ीन हमें मानसिक और सांस्कृतिक हमलों से बचा सकता है। उन्होंने बताया कि हर काम में सफलता की कुंजी "ख़ालिस नियत" है। अगर कार्य अल्लाह के लिए होगा, तो वह मदद और तौफ़ीक़ देगा। प्रचार और सांस्कृतिक कार्य तब ही असर डालेंगे जब नीयत ईमानदार और दिशा इलाही होगी। उन्होंने कहा कि हमें अपने शैक्षिक व प्रचार तंत्र को इस्लामी सिद्धांतों पर बनाना चाहिए—जहाँ ईमान, यक़ीन और इमाम व विलायत की इताअत हर कदम की नींव हो। हमारे सभी निर्णय निश्चितता और अंतर्दृष्टि पर टिके हों।

अंत में आयतुल्लाह अराकी ने ज़ोर दिया कि अगर हम यक़ीन पर अडिग रहें, तो दुश्मन मानसिक युद्ध में हमें परास्त नहीं कर सकता। उन्होंने प्रचारकों और सांस्कृतिक अधिकारियों से अपील की कि योजना-बद्ध तरीक़े से काम करें, युवाओं को इस्लामी क्रांति के आदर्शों, इतिहास और ईरान की क्षमताओं से परिचित कराएँ और सांस्कृतिक मोर्चे को दुश्मन के मानसिक हमले के सामने मज़बूत क़िला बना दें।

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