हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,हज़रत आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने आज स्वयंसेवी बल बसीज के मुख़्तलिफ़ वर्गों से मुलाक़ात में इसे सांस्कृतिक, सामाजिक और सैन्य नेटवर्क बताया। उन्होंने कहा कि इमाम ख़ुमैनी ने जासूसी के केन्द्र (अमरीकी दूतावास) पर क़ब्ज़ा किए जाने और अमरीका की ओर से खुली धमकी के तीन हफ़्ते बाद, 26 नवम्बर 1979 को बसीज का गठन कर उस बड़े ख़तरे को बड़े अवसर में बदल दिया
और इस पाकीज़ा दरख़्त की जड़ को मुल्क के सामाजिक, सांस्कृतिक और सैन्य तानेबाने तक पहुंचा दिया। आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने सैन्य आयाम को स्वयंसेवी बल बसीज के मुख़्तलिफ़ पहलुओं में से एक पहलू बताया और कहा कि बसीज सबसे पहले एक सोच और एक मत है जिसके मूल स्तंभ अल्लाह पर ईमान और आत्म विश्वास है जिसने मुख़्तलिफ़ मंचों पर मुख्य रूप से रोल निभाया और योगदान किया और भविष्य में भी यह सिलसिला जारी रहेगा।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने अपनी स्पीच में, फ़िलिस्तीन और लेबनान के ताज़ा हालात की ओर इशारा करते हुए कहा कि ज़ायोनी मूर्ख यह न सोचें कि घरों, अस्पतालों और आम सभाओं पर बमबारी, उनकी कामयाबी की निशानी है, दुनिया में कोई भी इसे कामयाबी नहीं मानता। उन्होंने इस बात पर बल देते हुए कि दुश्मन ग़ज़ा और लेबनान में इतने बड़े युद्ध अपराध के बावजूद कामयाब नहीं हुआ और नहीं हो पाएगा, कहा कि नेतनयाहू की गिरफ़्तारी का हुक्म जारी करना काफ़ी नहीं है बल्कि उसके और ज़ायोनी शासन के सरग़नाओं की मौत की सज़ा का हुक्म जारी होना चाहिए।
आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने ग़ज़ा और लेबनान में ज़ायोनी शासन के अपराधों को उनकी इच्छाओं के विपरीत रेज़िस्टेंस के और भी मज़बूत होने और उसकी रफ़तार तेज़ होने का कारण बताया और कहा कि लेबनान और फ़िलिस्तीन का ग़ैरतमंद जवान जिस वर्ग का भी हो, जब देखता है कि चाहे वह जंग के मैदान में हो या न हो उस पर बमबारी और मौत का ख़तरा मंडरा रहा है तो उसके पास संघर्ष और रेज़िस्टेंस के सिवा कोई और रास्ता नहीं बचता, इसलिए ये मूर्ख अपराधी, हक़ीक़त में अपने हाथों से रेज़िस्टेंस मोर्चे के दायरे को बढ़ा रहे हैं। उन्होंने ने रेज़िस्टेंस मोर्चे में विस्तार को एक निश्चित ज़रूरत बताते हुए बल दिया कि रेज़िस्टेंस मोर्चा आज जितना फैला है, कल इससे कई गुना ज़्यादा इसका दायरा फैलेगा।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने आगे कहा कि राष्ट्रों की क्षमताओं का इंकार और उनका अपमान करना, वर्चस्ववादियों की पुरानी नीति रही है। उन्होंने कहा कि क़ुरआन की आयतों के मुताबिक़, फ़िरऔन अपनी क़ौम का अपमान करता और उसे नीचा दिखाता था ताकि वह उसका अनुसरण करे, अलबत्ता फ़िरऔन आज के अमरीका और यूरोप के बादशाहों से ज़्यादा सभ्य था, क्योंकि ये दूसरी क़ौमों का अपमान करने के साथ साथ उनके हितों पर डाका डालते और उनकी सपंत्ति लूटते हैं।
आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने साम्राज्यवाद के एजेंटों को वर्चस्ववादी ताक़तों के बाहरी और मनोवैज्ञानिक दबावों का पूरक बताते हुए कहा कि ये तत्व जैसा कि तेल के राष्ट्रीयकरण की घटना के दौरान पेश आया, अपने मालिकों की हाँ में हाँ मिलाकर क़ौमों के इतिहास, उसकी पहचान और क्षमता का इंकार करते हैं ताकि वर्चस्ववादियों के लिए रास्ता समतल हो सके।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने स्वयंसेवा के विचार को घेरा तोड़ने वाला बताया और कहा कि स्वयंसेवा की भावना से प्रेरित आत्मविश्वास, क़ौम का अपमान करने, उसे झुकाने और नाउम्मीद करने के वर्चस्ववादियों के बहुत ही ख़तरनाक साफ़्ट पावर को नाकाम बनाता है और मुल्क तथा रेज़िस्टेंस मोर्चे के सदस्यों में यह भावना और उससे पैदा होने वाली ताक़त निश्चित तौर पर अमरीका, पश्चिम और ज़ायोनी शासन की सभी नीतियों पर हावी हो जाएगी।
आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने, इक्कीसवीं सदी के पहले दशक में 20 फ़ीसदी संवर्धित युरेनियम के मसले में अमरीका की घटिया साज़िश की नाकामी को बसीजी भावना की देन बताया और कहा कि ऐसे हालात में जब मुल्क को 20 फ़ीसदी संवर्धित युरेनियम की बहुत ज़रूरत थी, अमरीकियों ने उस वक़्त दुनिया के दो मशहूर राष्ट्रपतियों की मध्यस्थता से, उसे बेचने के संबंध में होने वाली सहमति के बावजूद, बातचीत के दौरान चालबाज़ी की, लेकिन शहीद शहरयारी सहित हमारे बसीजी वैज्ञानिकों ने 20 फ़ीसदी संवर्धित युरेनियम का उत्पादन करके दिखाया जिससे अमरीकियों की आँखें फटी की फटी रह गयीं।
उन्होंने निरर्थकता के एहसास और मुश्किलों के सामने में असमर्थता के एहसास तथा मानसिक लेहाज़ से बंद गली में होने की सोच और उसके नतीजे में ख़ुदकुशी को दुनिया के मुख़्तलिफ़ मुल्कों के जवानों की मुश्किल क़रार देते हुए कहा कि बसीजी, वर्चस्ववादियों के शोर ग़ुल से प्रभावित नहीं होता और मुख़्तलिफ़ मसलों के संबंध में अमरीका तथा ज़ायोनी शासन जैसे साम्राज्यवादियों के प्रचारिक हंगामे के सामने मुस्कुराता है।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने बल दिया कि स्वयंसेवी बल बसीज अपने मक़सद पर यक़ीन यानी इस्लामी समाज और इस्लामी सभ्यता के निर्माण, न्याय की स्थापना और मौत से निडर होकर शहादत की भावना के साथ आगे बढ़ता है और इसी ख़ूबी की वजह से ईरानी बसीजी को यक़ीन है कि एक न एक दिन ज़ायोनी शासन को उखाड़ फेंकेगा।
आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने अंत में क्षेत्रीय देशों के लिए अमरीका की साज़िश के बारे में जागरुकता और उस साज़िश के मुक़ाबले में दृढ़ता को राजनैतिक क्षेत्र में बसीज के मज़बूत होने का एक कारक बताया और कहा कि अमरीका क्षेत्र में अपने हित साधने के लिए मुल्कों में ज़ुल्म और तानाशाही पैदा करना या अराजकता फैलाना चाहता है। इन दोनों में से कोई भी एक स्थिति मुल्क में पेश आए तो इसमें दुश्मन का हाथ है जिसके ख़िलाफ़ बसीज को डट जाना चाहिए।