शनिवार 18 अक्तूबर 2025 - 08:15
राह ए हक़ में इस्तेक़ामत सबसे महत्वपूर्ण विशेषता है / दुश्मन का असली लक्ष्य हमारे अक़ीदे और जीवन-शैली को बदलना है

हौज़ा / मसीर-ए-बंदगी शीर्षक वाले दर्स-ए-अख़लाक़ में हुज्‍जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन नासिर रफ़ीई ने सूरह अनफ़ाल की आयत नंबर 45 की रोशनी में दुश्मन की सांस्कृतिक युद्ध के मुक़ाबले में जागरूकता और होशियारी की ज़रूरत पर ज़ोर दिया।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, आयतुल्लाह मोहसिन फ़क़ीही के दफ़्तर में आयोजित “मसीर-ए-बंदगी” शीर्षक वाले दर्स-ए-अख़लाक़ में हुज्‍जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन नासिर रफ़ीई ने सूरह अनफ़ाल की आयत नंबर 45 की रोशनी में दुश्मन की सांस्कृतिक युद्ध के मुक़ाबले में जागरूकता और होशियारी की ज़रूरत पर ज़ोर दिया।

उन्होंने सूरह अनफ़ाल की आयत:
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا إِذَا لَقِيتُمْ فِئَةً فَاثْبُتُوا وَاذْكُرُوا اللَّهَ كَثِيرًا لَعَلَّكُمْ تُفْلِحُونَ 
“हे ईमान वालो! जब किसी गिरोह से सामना हो, तो डटे रहो और अल्लाह को खूब याद करो ताकि तुम सफल हो जाओ” की तफ़्सीर करते हुए ईमान में स्थिरता और अल्लाह की याद से लापरवाही के कारणों को समझाया।

उन्होंने बताया कि यह आयत जंगे उहुद के पृष्ठभूमि में नाज़िल हुई थी। उन्होंने कहा कि सफलता और निजात/मोक्ष की पहली शर्त “साबित क़दमी” यानी दृढ़ता और अडिग रहना है — जो इंसान के कथन, कर्म और दिल तीनों क्षेत्रों में मज़बूती की माँग करती है। यह सबर (धैर्य) से भी ऊँचा दर्जा रखती है और क़ुरआन व अहादीस में इसे असाधारण अहमियत दी गई है।

डॉ. रफ़ीई ने इस संदर्भ में इस्लामी इतिहास की महान हस्तियों — ज़ुबैर, हजरत हिज्र बिन अदी, उमर बिन हमक और मैथम तमार — का उदाहरण देते हुए कहा कि दिनी और विलायती मौक़िफ़ पर मज़बूती से टिके रहना, सच्चे ईमान की निशानी है। उन्होंने कहा कि ज़ियारेत-ए-आशूरा में “थब्बित ली कदम सिद्क” (मेरे क़दमों को सचाई पर मज़बूत रख) का दो बार ज़िक्र इसी तथ्य की ओर इशारा करता है कि “राह-ए-हक़ में इस्तिकामत” ईमान की सबसे बुलंद सिफ़त (गुण) है।

मौलाना रफ़ीई ने आगे बताया कि अल्लाह की याद से ग़ाफ़िल करने वाली कई बाधाएँ होती हैं — शैतान का दिल में असर डालना, दौलत और औलाद में अत्यधिक उलझाव, जिसके बारे में क़ुरआन कहता है: يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لَا تُلْهِكُمْ أَمْوَالُكُمْ وَلَا أَوْلَادُكُمْ عَنْ ذِكْرِ اللَّهِ “हे ईमान वालो! तुम्हारी दौलत और तुम्हारी औलाद तुम्हें अल्लाह की याद से गाफिल न कर दे”, और लंबे अरमान, खेल-कूद, फुह्श संगीत और जुआ जैसी लतें इंसान को अल्लाह की याद से दूर कर देती हैं।

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