हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,हज़रत आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने फरमाया,इस्लाम; इंसान की ज़िंदगी के हर मैदान के लिए है इस्लाम सिर्फ़ इबादतों या मस्जिद तक महदूद नहीं है बल्कि अख़लाक़,मुआशरत,मआमलात,तालीम,हुकूमत हर पहलू में इंसान की रहनुमाई करता है।
क़ुरआने मजीद में एक जगह कहा गया है,ऐ ईमान वालो! अल्लाह को बहुत ज़्यादा याद किया करो और सुबह शाम उसकी तस्बीह (गुण गान) किया करो।(सूरए अहज़ाब, आयत 41-42)
यह चीज़ इंसान के दिल और तसव्वुर से संबंधित है लेकिन एक जगह कहा गया है जो लोग ईमान लाए हैं वो तो अल्लाह की राह में जंग करते हैं और जो काफ़िर हैं वो शैतान की राह में जंग करते हैं। तो तुम शैतान के हामियों (समर्थकों) से जंग करो।(सूरए निसा, आयत 76) ये भी है, यानी अल्लाह को याद करो से लेकर “शैतान के हामियों से जंग करो” तक का ये पूरा मैदान, दीन के दायरे में है।
एक जगह पैग़म्बर अकरम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम से कहा गया हैः(ऐ पैग़म्बर!) रात को (नमाज़ में) खड़े रहा कीजिए मगर (पूरी नहीं बल्कि) थोड़ी रात। यानी आधी रात या उसमें से भी कुछ कम कर दीजिए या उससे कुछ बढ़ा दीजिए।और क़ुरआन की ठहर ठहर का स्पष्ट तरीक़े से तिलावत कीजिए।(सूरए मुज़्ज़म्मिल, आयत 2,3,4)
एक जगह पैग़म्बर से कहा गया हैः तो “(ऐ पैग़म्बर!) आप अल्लाह की राह में जेहाद कीजिए, आप पर सिवाय अपनी ज़ात के कोई ज़िम्मेदारी नहीं डाली जाती और ईमान वालों को जेहाद के लिए तैयार कीजिए।(सूरए निसा, आयत 84) मतलब ये कि ज़िंदगी के ये सारे मैदान, आधी रात को जागने, अल्लाह के सामने गिड़गिड़ाने, उससे दुआ मांगने, उसके सामने रोने और नमाज़ पढ़ने से लेकर जेहाद और जेहाद के मैदान में शिरकत तक साब इस दायरे में हैं, पैग़म्बर की ज़िंदगी भी यही दिखाती है।
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