शुक्रवार 31 अक्तूबर 2025 - 14:54
घर में महिलाओं का त्याग और सेवा, पुरुषों के जिहाद के बराबर है

हौज़ा / आयतुल्लाह सैयद अहमद अलमुल होदा ने कहा, महिलाओं का जिहाद सिर्फ युद्ध के मोर्चे पर जाने में नहीं है बल्कि घर में धैर्य रखने, बच्चों की परवरिश करने और कठिनाइयों का सामना करने में दृढ़ता दिखाने में भी है जो पुरुषों के जिहाद के बराबर है।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , ईरान के खुरासान रिज़वी प्रांत में प्रतिनिधि वली फकीह आयतुल्लाह सय्यद अहमद अलमुल होदा ने अपने कार्यालय में सेमनान के इमामे जुमआ के एक प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात में कहा,हमारी इज़्ज़त और सरफ़राज़ी इमामे जमाना (अ.स.) की सेवा से जुड़ी हुई है।

आप लोग जो धर्म की सेवा का सौभाग्य रखते हैं, यह बरकतें आपके घरेलू जीवन में भी शामिल हैं, खासकर आपकी पत्नियों के परिश्रम और धैर्य के कारण। यदि वे साथ न होतीं तो यह सफलताएं भी नसीब न होतीं।

उन्होंने पैगंबर (स.अ.व.) की हदीस
"جِهَادُ الْمَرْأَةِ حُسْنُ التَّبَعُّل"
(औरत का जिहाद अच्छे व्यवहार से पति की सेवा करना है) की ओर इशारा करते हुए कहा, महिला का जिहाद यह है कि वह घर और परिवार की ज़िम्मेदारियों को अच्छे व्यवहार, सहनशीलता और ईमानदारी के साथ निभाए।

आयतुल्लाह अलमुल होदा ने आगे कहा,यह रिवायत अस्मा बिंत उमैस से वर्णित है कि जब वह शहीदों और मुजाहिदीन के परिवारों की सेवा करने के जज़्बे के साथ पैगंबर (स.अ.व.) की सेवा में पहुंचीं, तो पैगंबर (स.अ.व.) ने फरमाया, औरतों का यह धैर्य, सेवा और त्याग, पुरुषों के युद्ध के मैदान में जिहाद के बराबर है।

उन्होंने कहा,जब महिलाएं मुश्किलों, तंग आर्थिक हालात, सामाजिक दबाव और घरेलू ज़िम्मेदारियों को धैर्य और गरिमा के साथ निभाती हैं, यतीम बच्चों की परवरिश करती हैं, बेसहारा परिवारों की मदद करती हैं और घर के मोर्चे को मज़बूत रखती हैं, तो यह सब सबसे ऊंचे दर्जे के जिहाद में गिना जाता है और आखिरत में इसका बदला और दर्जा बहुत महान है।

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