हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , पहला अंतर्राष्ट्रीय पूर्व सम्मेलन "तबय्यीन ज़रूरत दरूस-ए मआरिफ़ ए कुरआन" आज इमाम खुमैनी (र.ह.) इंस्टीट्यूट क़ुम के हॉल में आयोजित हुआ, जहाँ आयतुल्लाह रजबी ने आयतुल्लाह मिस्बाह यज़्दी (रह) की महत्वपूर्ण रचना मआरिफ़-ए कुरआन की वैज्ञानिक हैसियत और इस्लामी मानविकी विज्ञानों के प्रसार में इसके महत्व पर चर्चा की।
उन्होंने कहा,यह पुस्तक विभिन्न आयामों से कुरआनी ज्ञान की समीक्षा करती है और अपने वैज्ञानिक विशिष्टताओं के कारण कम नज़ीर है। कुरआन के विज्ञान के तथ्यों की खोज करना एक आवश्यक कार्य है और जितना मनुष्य कुरआन के ज्ञान की ओर ध्यान देता है, उतना ही वह इस असीम सागर की महानता से अवगत होता है।
हौज़-ए इल्मिया की उच्च परिषद के इस सदस्य ने कहा,इमाम खुमैनी (रह) ने हमेशा वैज्ञानिक पूर्वाग्रह से परहेज और निष्पक्षता के साथ कुरआन और इस्लामी ज्ञान के अध्ययन की सिफारिश की है। इस पुस्तक के अध्ययन के लिए भी ध्यान, सूक्ष्मता और गहन चिंतन की आवश्यकता है ताकि इसके सभी वैज्ञानिक लाभों से सही ढंग से फायदा उठाया जा सके।

उन्होंने आगे कहा, इस पुस्तक में आरंभ से अंत तक कुरआन करीम को फ़िक़्ही और इज्तिहादी सिद्धांतों की रोशनी में व्यक्त किया गया है। साथ ही मानविकी और सामाजिक पहलुओं को भी व्यापक और विश्लेषणात्मक ढंग से स्पष्ट किया गया है, जो इस रचना को विशिष्ट और विद्वतापूर्ण बनाता है।
आपकी टिप्पणी