हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , पहला अंतर्राष्ट्रीय पूर्व-सम्मेलन "तबय्यीन ज़रूरत दुरूस-ए मआरिफ़ कुरआन" आज इमाम खुमैनी (र.ह) इंस्टीट्यूट, क़ुम के हॉल में आयोजित किया गया। जहां आयतुल्लाह गुलाम रज़ा फ़ैय्याज़ी ने बात करते हुए कहा, जब मैंने इस्लामी दर्शन की शिक्षा शुरू की तो यह महसूस था कि इस क्षेत्र में कदम रखना एक आवश्यक ज़रूरत है। आज दर्शन किसी खास वर्ग तक सीमित नहीं रह गया है बल्कि आम हो चुका है।
उन्होंने कहा, हमारे बुजुर्ग उस्ताद अल्लामा मिस्बाह यज़्दी (रह) बार-बार इस बात पर ज़ोर देते थे कि देखना यह है कि जो काम हम कर रहे हैं वह सिर्फ वाजिब न हो बल्कि "औजब" (सबसे अधिक आवश्यक) हो। अक़्ल भी यही कहती है कि जब कोई "महत्वपूर्ण" ज़िम्मेदारी सामने हो तो कम महत्वपूर्ण कामों पर समय बर्बाद करना सही नहीं है।
जामिया मुदर्रिसीन हौज़ा ए इल्मिया क़ुम के इस सदस्य ने आगे कहा,हर तालिबे इल्म, चाहे वह किसी भी क्षेत्र में पढ़ाई कर रहा हो, उसे चाहिए कि वह अपने हौज़ा के दरस को गंभीरता और मजबूती के साथ आगे बढ़ाए। अल्लामा मिस्बाह (रह) का विचार यह था कि तालिबे इल्म को इस स्तर तक पहुंचना चाहिए कि वह सीधे पवित्र कुरआन और अहले बैत अ.स. की हदीसों से लाभ उठा सके।
अंत में उन्होंने कहा,कुछ लोगों की क्षमता उन्हें फ़िक़ह के स्तर तक ले जाने की योग्यता रखती है और कुछ को यह समझना चाहिए कि जब तक वे इस स्तर तक नहीं पहुंच जाते, उन्हें अपनी तरफ से फतवा देने के बजाय अहले फ़िक़ह और अहले नज़र के विचारों को उद्धृत करना चाहिए।
पवित्र कुरआन में भी आया है कि जिस चीज़ का तुम्हें ज्ञान न हो, उसका अनुसरण मत करो और काफ़ी शरीफ़ की प्रामाणिक रिवायतों में भी है कि जो बिना ज्ञान के फतवा देता है, वह खुद भी गुमराह होता है और दूसरों को भी गुमराह करता है।
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