हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , हज़रत उम्मुल बनीन सलामुल्लाह अलैहा की पुण्यतिथि के अवसर पर फातेमा ज़हरा (स) धार्मिक स्कूल में शहर की महिलाओं और छात्राओं की उपस्थिति में एक शोक सभा आयोजित की गई।
इस अवसर पर फातेमा ज़हरा (स) किशवानिया धार्मिक स्कूल की प्रधानाध्यापिका श्रीमती बिख़स्ता ने कहा, इस्लाम के प्रारंभिक इतिहास में असंख्य महिलाएं ऐसी थीं जिन्होंने पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर, बल्कि कुछ स्थानों पर उनसे आगे बढ़कर, अपनी मानव-निर्माण की जिम्मेदारी निभाई।
घर संभालने और संतान की परवरिश के साथ-साथ इस्लामी मूल्यों की रक्षा में बलिदान दिए। इन्हीं उत्कृष्ट महिलाओं में एक हज़रत उम्मुल बनीन सलामुल्लाह अलैहा हैं, यहाँ तक कि हज़रत अब्बास अलैहिस्सलाम जैसी महान हस्ती भी अपनी माता के नाम से जानी जाती हैं और उम्मुल बनीन का नाम अब्बास अलैहिस्सलाम के दीप्तिमान चेहरे में और अधिक प्रकाश का कारण बनता है।
उन्होंने कहा, अमीरुल मोमिनीन अली अलैहिस्सलाम ने हज़रत फातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा की शहादत के बाद अपने भाई अकील से कहा कि वे उनके लिए ऐसे परिवार से पत्नी का चयन करें जो मूल और वीरता में प्रसिद्ध हो। हज़रत उम्मुल बनीन सलामुल्लाह अलैहा, जो एक बहादुर और सम्मानित परिवार से थीं, चुनी गईं और पंद्रह वर्ष की आयु में अमीरुल मोमिनीन अली अलैहिस्सलाम के विवाह में आईं।
श्रीमती बिख़स्ता ने संतान की परवरिश में महिलाओं की मूलभूत भूमिका पर जोर देते हुए कहा,यदि महिलाएं अपनी संतान की सही परवरिश करें तो समाज में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं और यहाँ तक कि इतिहास की दिशा बदलने की क्षमता रखती हैं।

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