हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार | महिला, केवल एक शब्द नहीं; यह एक ब्रह्मांड है। सामान्य धारणा में उसे कमजोर समझा गया, आँसुओं से जोड़ा गया, लेकिन जो आँखें अश्रु बहाती हैं, वही राष्ट्रों की नियति का क्षितिज भी प्रकाशित करती हैं।
महिला कमजोर नहीं; नाजुक है,कोमलता में लिपटी हुई बुद्धिमत्ता, मौन में छिपी हुई आवाज और मुस्कुराहट में छिपी हुई सच्चाई।
नाजुकता, जिसे कम समझ में कोमलता समझा गया, वास्तव में वह सूक्ष्म दृष्टि है जो न केवल दिलों को जीतती है बल्कि मन को आकर्षित कर देती है। यही गुण है जो महिला को केवल बाहरी सुंदरता की प्रतिमा नहीं, बल्कि साहित्य, जागरूकता, धैर्य और वीरता का एक चित्रपट बनाता है।
महिला वह है जो फातिमा (अ.स.) की तरह चुप रहकर भी तर्क बन जाए, जो ज़ैनब (अ.स.) की तरह कैद में भी भाषण बनकर खामोशी को चीर दे, जो माँ हो तो योद्धा को जन्म दे, बहन हो तो वफादारी का झंडा बुलंद करे और बेटी हो तो दुआ बन जाए।
नाजुकता, महिला की कमजोरी नहीं, उसकी पहचान है; वह कोमलता जो तूफान को थाम ले, वह लहजा जो खंजर की नोक को मोम कर दे और वह आँखें जो सच्चाई की मशाल हों।
दुनिया को समझ लेना चाहिए कि महिला की नाजुकता, उसका हथियार है; न वह कमजोर है, न दीवार के पीछे, वह आकाश की गोद में पलने वाली, एक पूर्ण और पूर्ण करने वाली हस्ती है।
लेखक: उम्मे अबीहा
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