मंगलवार 16 दिसंबर 2025 - 15:33
इमाम अली अलैहिस्सलाम सलाम की मोहब्बत ईमान की अलामत है। प्रोफेसर अली अमीर

हौज़ा / प्रोफेसर अली आमिर ने बैतूस्सलात अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी कैंपस में आयोजित इसाले सवाब की मजलिस को संबोधित करते हुए कहा,शहर-ए-इल्म' अलीगढ़ का शहीद-ए-कर्बला की अज़ादारी के प्रचार-प्रसार में अहम भूमिका है यह कार्य वही करता है जिसमें अली अलैहिस्सलाम की प्रेम और पैगाम-ए-कर्बला हो।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , प्रोफेसर अली अमीर ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय परिसर में बैतुस्सलात में आयोजित एसाल-ए-सवाब की मजलिस-ए-अज़ा को संबोधित करते हुए कहा कि 'शहर-ए-इल्म' अलीगढ़ का शहीद-ए-कर्बला की अज़ादारी के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका है यह कार्य वही करता है जिसमें अली अलैहिस्सलाम की मुहब्बत और पैगाम-ए-कर्बला हो।

उन्होंने सूरह तौबा की मशहूर 111वीं आयत को अपनी बात का मुख्य बिंदु बनाया जिसमें अल्लाह तआला का इरशाद है,निस्संदेह अल्लाह ने ईमान वालों से उनके प्राण और उनके धन इसके बदले में खरीद लिए हैं कि उन्हीं के लिए जन्नत है; वे अल्लाह के मार्ग में लड़ते हैं, तो मारते भी हैं और मारे भी जाते हैं।

यह उसकी तौरात, इंजील और कुरआन में सच्चा वादा है। और कौन है अल्लाह से अधिक अपने वादे को पूरा करने वाला? तो तुम अपनी इस सौदेबाजी पर प्रसन्न हो जाओ, जो तुमने उससे की है और यही सबसे बड़ी सफलता है। जीवन की सबसे बड़ी सफलता वादे को पूरा करना है।

प्रोफेसर अली अमीर ने आगे कहा कि यह इस हकीकत का बयान है कि खुद ईमान लाना, अपनी जान और माल को अल्लाह के हाथ बेचने का करार है और इस ईमान के साथ ही अल्लाह उस जान और माल का खुद उस करार के आधार पर मालिक हो जाता है, जिसके बाद किसी सच्चे मुसलमान को अपने मामले में कोई इख्तियार नहीं रह जाता। न व्यक्तिगत रूप से, न सामूहिक रूप से। इस तरह न तो शूरा की कोई वक़अत (महत्व) रहती है, न इजमा (सहमति) की। यह हकीकत है कि इंसान के हाथ में न उस बंदे की खल्कत (सृष्टि) है और न उसके हाथ में मौत है। मोमिनीन के लिए इशारा काफी था कि सहाबी वादे पर साबित क़दम नहीं रहे और रसूलुल्लाह को छोड़कर फ़रार हो गए। (सूरह आल-ए-इमरान, 153)

उन्होंने आगे कहा कि अली अलैहिस्सलाम ही क़सीमुन नार वल जन्नत हैं। रसूल-ए-अकरम सल्लल्लाहु अलैहि व आलिही व सल्लम की पाक हदीस है कि हुब्बे अली (अली से प्रेम) जन्नत है और बग़्ज़े अली जहन्नम है। मीज़ान (तराजू) हुब्ब और निफ़ाक़ को अलग कर देगा।

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