हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, मौलाना ने अपनी बात की शुरुआत अल्लाह की तारीफ और पैगंबर (स) व अहले-बैत (अ) पर दुरूद भेजकर की। उन्होंने कहा कि इंसान की असली यात्रा दुनिया से आखिरत की ओर नहीं, बल्कि अल्लाह की ओर है। यह "सफर इलल्लाह" है - एक ऐसा रास्ता जो रूह की जागृति से शुरू होकर अल्लाह से मिलन पर खत्म होता है।
रूहानी सफर की 7 मंजिलें: यक्ज़ा - जागृति, तौबा - पश्चाताप, तक्वा - ईश्वर-भय, तखलिया - दिल की सफाई, तहलिया - दिल को सजाना, तजल्ली - ईश्वरीय प्रकाश, फना - अल्लाह में विलीन होना
मौलाना ने समझाया कि जब बंदा अपने दिल को पाक कर लेता है, तो उसे छठी मंजिल "तजल्ली-ए-नूर-ए-इलाही" नसीब होती है, जहाँ दिल में अल्लाह का नूर उतरता है और इंसान की दुनिया बदल जाती है।
मौलाना मंज़ूर अली ने कुरआन की आयतों का हवाला देते हुए कहा: "जिस दिल में अल्लाह का नूर आ जाए, वह सिर्फ जिंदा ही नहीं रहता, बल्कि असली जीवन पाता है।" जिनके दिलों में अल्लाह का नूर नहीं है, वे दिखने में तो जिंदा हैं लेकिन हकीकत में अंधेरे में भटक रहे हैं।
एक दिलचस्प क़िस्सा सुनाते हुए मौलाना ने सय्यद जमालुद्दीन असदाबादी - जब वे यूरोप में थे, तो एक बार हाथ से खाना खाने पर पश्चिमी पत्रकारों ने उनका मजाक उड़ाया। सय्यद ने जवाब दिया: "मेरे हाथ आज तक किसी के मुँह में नहीं गए, लेकिन तुम्हारे चम्मच हर किसी के मुँह में जाते हैं।"
मौलाना मंजूर अली नक़वी ने आगे कहा: "यह ईमान की इज्जत है कि मोमिन अपनी हकीकत जानता है और दुनिया की आलोचना और डांट-फटकार से नहीं घबराता।"
उन्होंने आगे कहा कि "ईमान का नूर इंसान को अज्ञान से ज्ञान की तरफ, हीन भावना से आत्म-सम्मान की तरफ, निराशा से उम्मीद की तरफ, गुलामी से आजादी की तरफ ले जाता है। अल्लाह तआला मोमिनों का वली है, वह उन्हें अंधेरों से निकालकर रोशनी में ले आता है।"
मौलाना मंजूर अली नक़वी ने जोर देकर कहा कि "दिल का मालिक या तो अल्लाह होता है या शैतान। अगर दिल में नफ्स (ईगो), जलन और दुनिया की मोहब्बत है, तो वह दिल अंधेरे में डूबा हुआ है; लेकिन अगर दिल में अल्लाह की याद, अल्लाह की मोहब्बत और अल्लाह का डर है, तो वह अर्श-ए-रहमान बन जाता है।"
आखिर में मौलाना ने दुआ की कि "ऐ पालनहार! हमारे दिलों में अपना नूर दाखिल कर, हमें उन बंदों में शामिल कर जिनके दिल रोशन हैं और हमें उस मंजिल-ए-तजल्ली तक पहुंचा दे जहाँ तेरा दीदार ही हमारा मकसद हो।"
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