लेखक: स्कॉलर सय्यदा बुशरा बतूल नक़वी
हौज़ा न्यूज़ एजेंसी | इमाम अली बिन मुहम्मद अल-नकी (अ) (212–248 हिजरत) अहले बैत (अ) के नौवें इमाम हैं। उन्हें नकी और हादी के टाइटल दिए गए थे। उनका जन्म 15 रमज़ान या 15 ज़ुल हिज्जा 212 हिजरी को मदीना में हुआ था। उनके पिता इमाम मुहम्मद तकी (अ) थे और उनकी माँ एक महिला थीं। उन्होंने 8 साल की उम्र में इमामत का पद संभाला था। उनका समय अब्बासी खलीफ़ाओं के कठोर दौर में बीता, खासकर मुतवक्किल अब्बासी के राज में, जब इमाम को मदीना से बगदाद बुलाया गया और उन पर नज़र रखी गई। इमाम अली अल-नकी (A.S.) की शख्सियत ज्ञान, नेकी, इंसाफ़, सब्र, त्याग और नैतिकता की एक बड़ी मिसाल है।
जन्म, परिवार और दौर
इमाम का जन्म मदीना में हुआ था।
उनकी माँ, समाना मग़रिबिया, एक नेक और नैतिक महिला थीं।
बचपन में, इमाम ने अपने पिता और टीचरों की देखरेख में पढ़ाई-लिखाई और नैतिक ट्रेनिंग ली।
ज़रूरी घटनाएँ:
मदीना में ट्रेनिंग: इमाम ने बचपन से ही पढ़ाई-लिखाई और नैतिक ट्रेनिंग ली और अपने माता-पिता से धार्मिक शिक्षाएँ सीखीं।
बगदाद में नज़रबंदी: मुतवक्किल अब्बासी ने इमाम पर नज़र रखी ताकि उनका पब्लिक असर कम रहे, लेकिन इमाम लोगों को उपदेशों और चिट्ठियों के ज़रिए रास्ता दिखाते रहे।
नैतिक और पढ़ाई-लिखाई के गुण
ज्ञान और कानून: इमाम अली अल-नकी (अ) कानून, विश्वासों और नैतिकता में ऊँचा मुकाम रखते थे।
तपस्या और नेकी: उनकी ज़िंदगी दुनियावी सुखों से दूर थी और अल्लाह की याद और इबादत से भरी थी।
इंसाफ़ और निष्पक्षता: दुश्मनों ने भी उनकी हिम्मत, ज्ञान और इंसाफ़ को माना।
सब्र और लगन: बगदाद में नज़रबंद होने के बावजूद, उन्होंने लोगों को लीड करना जारी रखा।
ज़रूरी हदीसें
हदीस 1:
عَنْ أَبِي جَعْفَرٍ عَلِيٍّ النَّقِيِّ عَلَيْهِ السَّلَامُ:
«مَنْ عَرَفَنِي فَقَدْ عَرَفَ الْحَقَّ، وَمَنْ أَعْرَفَنِي لِلنَّاسِ فَقَدْ أَعْمَلَ بِالْحَقِّ
अबू जाफ़र अली अल-नक़ी (अ) की हदीस के अनुसार:
अनुवाद: जो मुझे जानता है उसने सच जान लिया है, और जो मुझे लोगों में जानता है उसने सच के अनुसार काम किया है।
हदीस 2:
عَنِ الْهَادِي عَلِيِّ النَّقِيِّ عَلَيْهِ السَّلَامُ:
«الْعِلْمُ نُورٌ، وَالْجَهْلُ ظُلْمَةٌ»
हादी अली नकी (अ) के अनुसार:
अनुवाद: ज्ञान प्रकाश है, और अज्ञान अंधकार है।
एकेडमिक और कानूनी सेवाएँ
इमाम ने इबादत के कामों, कानूनी मामलों, ख़ुम्स, ज़कात और हज के मुद्दों को साफ़ किया।
उनके लेखों (मकतब) में नैतिक शिक्षा, सामाजिक न्याय और लोगों के अधिकारों के सिद्धांत शामिल हैं।
उनके मार्गदर्शन ने अहले-बैत के अनुयायियों को धर्म के रास्ते पर मज़बूत किया।
मकातिब से एक हिस्सा
“और जान लो कि जो कोई हमारे पीछे चलेगा, उसे अल्लाह के रास्ते पर ले जाया जाएगा, और जो कोई हमसे मुँह मोड़ेगा, वह गुमराह हो जाएगा।”
अनुवाद: जान लो कि जो कोई हमारे पीछे चलेगा, उसे अल्लाह के रास्ते पर ले जाया जाएगा, और जो कोई हमसे मुँह मोड़ेगा, वह गुमराह हो जाएगा।
ज़रूरी घटनाएँ
घटना 1: खान सलीका
एक बार इमाम अली अल-नकी (अ) बगदाद के एक ज़िले खान सलीका गए, जहाँ लोग उनसे मिलने के लिए जमा हुए थे। दुश्मन खलीफ़ाओं के जासूस भी वहाँ मौजूद थे। इमाम ने लोगों को लीड करते हुए सब्र और हिम्मत दिखाई। इमाम ने लोगों को इबादत, नैतिकता और इंसाफ़ के उसूल सिखाए। यह घटना इमाम के ज्ञान और लोगों को रास्ता दिखाने का एक सबूत है।
घटना 2: एक चिट्ठी में दुश्मनी के बावजूद सब्र
मुतावक्किल के राज में, इमाम पर लगातार नज़र रखी जाती थी। एक बार मुतवक्किल ने इमाम के खिलाफ साज़िश की, लेकिन इमाम ने न सिर्फ सब्र रखा बल्कि लोगों को रास्ता भी दिखाते रहे। इमाम ने लोगों को चिट्ठियां लिखकर सच्चा दीन सिखाया और उनके दिलों को मज़बूत किया। यह घटना इमाम के सब्र, समझदारी और लोगों को रास्ता दिखाने का एक उदाहरण है।
ज़ियारत ए जामेआ कबीरा
ज़ियारत ए जामेआ कबीरा इमाम अली अल-नकी (अ) की हैसियत और रुतबे का एक पूरा ब्यौरा है:
इस ज़ियारत में इमाम की महानता, ज्ञान और अच्छाई, तक़वा, त्याग और इमामत का ज़िक्र है।
इमाम ने यह दौरा देश को अपनी पर्सनैलिटी और अच्छाइयों से रोशन करने के लिए लिखा था।
अच्छाई: यह दौरा पढ़ने वाले को इमाम की बातों से रोशन करता है और दिल को शांति और रास्ता दिखाता है।
ज़ियारत से उदाहरण वाक्य:
तुम पर सलाम हो, ऐ अबू अल-हसन! मैं गवाही देता हूँ कि आप अल्लाह के प्रतिनिधि हैं।
सारांश
इमाम अली अल-नकी (अ) का जीवन एक बौद्धिक, नैतिक और आध्यात्मिक सबक है:
गुण: ज्ञान, धर्मपरायणता, तपस्या, न्याय, धैर्य
महत्वपूर्ण घटनाएँ: खान सलीका वाला, बगदाद में धैर्य, और लोगों का मार्गदर्शन
जामिया कबीर की हदीसें और ज़ियारत: इमाम के बौद्धिक और आध्यात्मिक मार्गदर्शन का एक उज्ज्वल संकेत
इमाम की शिक्षाएँ आज भी अहल अल-बैत के अनुयायियों के लिए रोशनी की किरण हैं
संदर्भ
अल-इरशाद, शेख मुफीद, भाग 2, पेज 285–310
बिहार अल-अनवार, अल्लामा मजलिसी, भाग 50, पेज 120–145
कमालुद्दीन वा तमामुन नेअमा, शेख सदूक़, भाग 2, पेज 112–130
रिजाल कशी, भाग 1, पेज 157–162
ज़ियारत अल-शिया, अल्लामा हुर्र अमिली
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