हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , जिस वक़्त 13 आबान बराबर 4 नवंबर 1979 की घटना घटी, हम ईरान में नहीं थे। हम और जनाब रफ़सन्जानी साहब हज के लिए पवित्र नगर मक्का में थे। मुझे याद है कि एक रात हम मक्के में हज संस्था के प्रतिनिधि कार्यालय में छत पर बैठे या लेटे हुए थे। हम सोना चाहते थे। ईरान में रात के 12 बजे का रेडियो बुलेटिन सुन रहे थे कि रेडियो से यह ख़बर सुनी कि इमाम ख़ुमैनी की गाइडलाइन पर अमल करने वाले स्टूडेंट्स ने अमरीका के (जासूसी के अड्डे में बदल चुके) दूतावास को अपने कंट्रोल में ले लिया है। हमारे लिए यह ख़बर बहुत अहम थी, लेकिन थोड़ा फ़िक्रमंद हुए कि ये कौन लोग हैं? जिन स्टूडेंट्स ने यह काम किया वह किस ग्रुप या धड़े के हैं? चूंकि यह बात मुमकिन थी कि वामपंथी धड़े राजनैतिक फ़ायदे के लिए लुभावने नारे की आड़ में कोई हरकत करें। हमें इस बात की बड़ी चिंता थी यहाँ तक कि 12 बजे रात के बुलेटिन में बताया गया कि वे इमाम ख़ुमैनी की गाइडलाइन पर अमल करने वाले मुसलमान स्टूडेंट्स हैं। जैसे ही हमने मुसलमान और इमाम को फ़ॉलो करने वालों का नाम सुना, हमें इत्मेनान हो गया, यानी हम समझ गए कि इसके पीछे वामपंथी, एमकेओ और अवसरवादी नहीं हैं, अपने मुसलमान स्टूडेंट्स हैं जिन्होंने यह काम किया। जब हम ईरान लौटे तो इंक़ेलाब के शुरूआती दिन जैसे शोर-शराबे का सामना हुआ। बहुत बड़ी रस्साकशी थी जिसके एक ओर अंतरिम सरकार बहुत नाराज़ थी कि यह कैसे हालात हैं,
यह कैसी घटना है, तो दूसरी तरफ़ लोगों में जोश था। इन सब बातों के नतीजे में अंतरिम सरकार का इस्तीफ़ा सामने आया। हम इस मामले को उन लोगों की नज़र से देख रहे थे जो अमरीका के ख़िलाफ़ वास्तविक संघर्ष में यक़ीन रखते थे इसी वजह से इस्लामी क्रांति परिषद के भीतर हम इन साथियों की इस कार्यवाही का समर्थन करते थे।
हमने उसी दौरान जासूसी के अड्डे में एक स्पीच दी थी। साथ ही लोगों ने मोहर्रम शुरू होते ही 10 दिन या 12 दिन की मजलिसों का प्रोग्राम रखा। सभी अंजुमनें वहाँ (अमरीकी दूतावास की इमारत के भीतर) मातम करती थीं। हर रात वहाँ इकट्ठा होती थीं, मातम होता था, नौहे पढ़े जाते थे और हर रात एक वक्ता स्पीच देता था। एक रात हम भी वहाँ गए। मुझे याद है बड़ी जोशीली व प्रभावी स्पीच थी।
बदलते हालात के साथ आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई के इंटरव्यू का एक हिस्सा 29 अक्तूबर सन 1984 को जुम्हूरी इस्लामी पार्टी की स्टूडेंट विंग के साथ