۱۳ تیر ۱۴۰۳ |۲۶ ذیحجهٔ ۱۴۴۵ | Jul 3, 2024
ज़ैनबे सानी

हौज़ा/ ऑस्ट्रेलिया की ताज़ा मुसलमान होने वाली क्रिस्टिन जेम्स कहती हैं इंसान की परिपूर्णता का मार्ग अल्लाह तआला के आदेशों के प्रति नतमस्तक होने में है। वह कहती हैं अगर आपके पास बड़ा घर हो, पैसा हो और बहुत सारे दोस्त हों तो ये सब चीज़ें आपको परिपूर्णता तक नहीं पहुंचा सकतीं परंतु अगर आप पूरी निष्ठा के साथ ईश्वरीय आदेशों के समक्ष नतमस्तक रहें तो आप वास्तविक परिपूर्णता तक पहुंचेंगे।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट अनुसार, क्रिस्टिन जेम्स का ऑस्ट्रेलिया के एक ग़ैर धार्मिक परिवार में जन्म हुआ था। स्कूल जाने पर ईसाई धर्म की शिक्षाओं से अवगत होती हैं। विश्वविद्यालय जाने पर यहूदी धर्म की शिक्षाओं का अध्ययन करती हैं परंतु वह दोनों में से किसी भी धर्म को वास्तविक मार्गदर्शक नहीं पाती हैं।

ऑस्ट्रेलिया की ताज़ा मुसलमान होने वाली क्रिस्टिन जेम्स कहती हैं इंसान की परिपूर्णता का मार्ग अल्लाह तआला के आदेशों के प्रति नतमस्तक होने में है। वह कहती हैं अगर आपके पास बड़ा घर हो, पैसा हो और बहुत सारे दोस्त हों तो ये सब चीज़ें आपको परिपूर्णता तक नहीं पहुंचा सकतीं परंतु अगर आप पूरी निष्ठा के साथ ईश्वरीय आदेशों के समक्ष नतमस्तक रहें तो आप वास्तविक परिपूर्णता तक पहुंचेंगे।

ऑस्ट्रेलियाई महिला का इस्लाम स्वीकार करने एक कारण शायद उनका अध्ययन और विभिन्न देशों में रहना है। वह अपनी यात्राओं के बारे में कहती हैं यात्रा करना, अनुभव प्राप्त करना और अधिक जानना मुझे बहुत पसंद है। मैं ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, स्काटलैंड, डेनमार्क, स्वीडेन, स्पेन, अमेरिका और इसी तरह इंडोनेशिया और भारत जैसे पूर्वी देशों में पढ़ाने या रहने के लिए गयी हूं और इसी वजह से थोड़ा- बहुत कई देशों की संस्कृतियों और लोगों के रहन -सहन से अवगत हूं और शायद इन्हीं अनुभवों के कारण मैंने इस्लाम धर्म स्वीकार करने का पक्का इरादा किया।

इस्लाम, पवित्र कुरआन और पैग़म्बरे इस्लाम की पावन जीवनी का अध्ययन आरंभ कर देती हैं और इस ईश्वरीय धर्म की शिक्षाओं का गहन अध्ययन करती हैं और वह अपनी खोई हुई चीज़ को इस्लाम धर्म में पा जाती हैं यानी उन्हें लोक- परलोक में सफल जीवन का मार्ग मिल जाता है और वह कलेमा पढ़कर मुसलमान हो जाती हैं। इस संबंध में वह कहती हैं जब मैं कलेमा पढ़ रही थी तो मेरा ध्यान इस ओर गया कि मैं ईश्वर के एक होने को स्वीकार कर रही हूं और उसे वचन दे रही हूं।"

मुसलमान होने वाली श्रीमती क्रिस्टिन जेम्स इस्लाम धर्म की इस शिक्षा से प्रभावित होकर पश्चिमी संचार माध्यमों के झूठे प्रचारों की ओर संकेत करते हुए कहती हैं इस्लाम के बारे में समस्त दुष्प्रचारों के बावजूद जो चीज़ मेरे लिए सबसे आकर्षक थी वह प्रेम व मेहरबानी थी। इस्लाम धर्म में पैग़म्बरे इस्लाम और उनके पवित्र परिजनों जैसी महान हस्तियां आदर्श हैं जो बहुत अधिक सख्तियों व समस्याओं के बावजूद लोगों के साथ बहुत ही सुशील व प्रेमपूर्ण व्यवहार करते थे। मैंने इस अवधि में यह सीखा है कि जितनी भी सख्ती और समस्या हो मुझे दूसरे लोगों के साथ अच्छा और प्रेमपूर्ण व्यवहार करना चाहिये।

ताज़ा मुसलमान होने वाली महिला श्रीमती क्रिस्टिन जेम्स पश्चिमी संचार माध्यमों के उस दुष्प्रचार की ओर संकेत करती हैं जिसमें कहा जाता है कि इस्लाम महिलाओं के अधिकारों का विरोधी है। वह बल देकर कहती हैं कि इस ईश्वरीय धर्म में महिलाओं के अधिकारों पर ध्यान दिया गया है। मैं एक पश्चिमी महिला हूं और पश्चिमी समाज की संस्कृति में पली- बढ़ी हूं। अगर इस्लाम महिलाओं पर अत्याचार करता और उसकी सीमितता का कारण बनता तो मैं कभी भी मुसलमान न होती। इस्लाम महिलाओं को महत्व देता है इसके लिए ऑस्ट्रेलियाई महिला श्रीमती क्रिस्टिन जेम्स इस्लामी गणतंत्र ईरान का उदाहरण देती और कहती हैं अगर इस्लाम महिलाओं पर अत्याचार करता तो आज ईरान में इतनी पढ़ी- लिखी व शिक्षित महिलायें न होतीं। आज ईरान में लाखों महिलायें मिल जायेंगी जिन्होंने विश्व विद्यालयों में शिक्षायें ग्रहण की हैं और कर रही हैं।  

वह कहती हैं कि मेरा मानना है कि मुसलमान महिलाओं को जो आज़ादी है वह पश्चिमी महिलाओं को नहीं है। उन पर अत्याचार किये जाते हैं और वे सीमितता में हैं। रोचक बात यह है कि इस्लाम धर्म स्वीकार करने से पहले श्रीमती क्रिस्टिन जेम्स हिजाब करती थीं क्योंकि उनका मानना है कि एक महिला को अपनी रक्षा के लिए हिजाब की ज़रूरत है।

ऑस्ट्रेलिया की ताज़ा मुसलमान होने वाली श्रीमती क्रिस्टिन जेम्स ने अब अपना नाम ज़ैनबे सानी रख लिया है। वह इस्लाम धर्म स्वीकार करने से पहले इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और उनके महाआंदोल और उनकी कुर्बानियों से अवगत थीं। इस संबंध में वह कहती हैं अगर इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और उनके वफादार साथियों की कुर्बानियां व शहादत न होती तो इस्लाम बाकी न बचता और वह मिट जाता। आज जो विशुद्ध इस्लाम हम तक पहुंचा है वह इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की शहादत का नतीजा है।

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