हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, मुफ़्ती अहमद अली शूस्तरी लखनवी साहब 25 रजबुल मुरज्जब सन 1303 हिजरी में सरज़मीने लखनऊ पर पैदा हुए , आप के वालिदे मोहतरम का नाम “मुफ़्ती सैयद मौहम्मद अब्बास शूस्तरी” था ।
मुफ़्ती साहब तीन साल की उम्र में शफ़क़ते पिदरी से महरूम हो गए और आप ने अपनी वालेदा के ज़ेरे साया पर्वरिश पाई ।
अहमद अली साहब ने सन 1312 हिजरी से सन 1317 हिजरी तक मदरसा ए सुल्तानुल मदारिस में मौलाना जाफ़र हुसैन साहब और मदरसा ए नाज़िमिय्या में आयतुल्लाह नजमुल हसन साहब के सामने ज़ानूए अदब तेह किए, उस वक़्त उनकी तवज्जोह तहसीले इल्म की तरफ नहीं थी बल्के वज़ाएफ़ व औराद और एबादात की तरफ़ माएल थे ।
सन 1318 हिजरी में आप अपनी वालेदा माजेदा के साथ ज़ियारते अतबाते आलियात के लिए ईरान व इराक़ गए तो मौसूफ़ के दिल में तहसीले इल्म का शौक़ पैदा हो गया, उस वक़्त उनके पास कस्बे मआश का कोई ज़रीया नहीं था ।
मुफ़्ती अहमद अली साहब ने रात दिन तहसीले उलूम में बहुत मेहनत की और हिंदुस्तानी तुल्लाब की एक बड़ी तादाद को दर्स देना शुरू कर दिया ।
मुफ़्ती अहमद अली साहब ने बहुत से असातेज़ा से कस्बे फैज़ किया मगर आयतुल्लाह सैयद काज़िम बेहबहानी और आयतुल्लाह शेख़ ग़ुलाम हुसैन माज़नदरानी से बहुत ज़ियादा फ़ैज़ उठाया ।
आप ने आयतुल्लाह ज़ियाउददीन इराक़ी से किताबे रसाएल और मकासिब पढ़ी, आयतुल्लाह मिर्ज़ा हुसैन ख़लील, आयतुल्लाह मुल्ला आखूंद मौहम्मद काज़िम ख़ुरासानी और आयतुल्लाह मौहम्मद काज़िम तबातबाई यज़दी के दर्से ख़ारिज में शिरकत की ।
मुफ़्ती अहमद अली साहब का हाफेज़ा बहुत क़वी था , आप आयतुल्लाह सैयद मौहम्मद काज़िम तबातबाई के दर्स के दौरान शरई मसाएल में बहस कर लेते थे , आयतुल्लाह काज़िम साहब जवाब देते थे : आप भी मुजतहिद हैं और में भी मुज्तहिद हूँ , आप का ये नज़रया है और मेरा ये नज़रया ।
मुफ़्ती साहब ने 24 साल की उम्र में इजाज़ए इजतेहाद हासिल कर लिए थे , उस के बाद उन्हो ने कर्बलाए मोअल्ला में किताबे क़वानीन और शरहे लुमआ की तदरीस की , उस के बाद इराक़ से हिंदुस्तान वापस आ गए और दर्सो तदरीस में मसरूफ़ हो गए ।
आप दर्सो तदरीस को बहुत ज़ियादा पसंद करते थे , अमरोहा में जहां मौसूफ़ तबलीगी फरीज़ा अंजाम दे रहे थे वहीं मदरसा ए सैयदुल मदारिस अमरोहा में तदरीस का फर्ज़ अदा कर रहे थे ।
जिस तरह उन्हें तदरीस पसंद थी इसी तरह शाएरी को भी बहुत ज़ियादा पसंद फ़रमाते थे , मौसूफ़ को शाएरी विर्से में मिली थी , यहाँ तक के उनके घराने की औरतें और बच्चे भी शेर कहते थे ।
मुफ़्ती अहमद अली साहब का सिन 9-10 साल का था जब उन्हें शाएरी का शौक़ हुआ ; क़सीदा, शेर, सलाम, तारीख़े अरबी, फ़ार्सी और उर्दू उन के कशकौल में देखे जा सकते हैं ।
जिस वक़्त अहमद अली साहब जानसठ ज़िला मुज़फ़्फ़र नगर पहुंचे तो आप ने एक कलाम नज़्म किया जिस का एक शेर इस तरह है:
चेरा राहत नबीनम दर मकानश - के शुद अब्दुल्ला खाँ मेहमन नवाज़म
मुफ़्ती साहब मुस्तक़िल कई साल तक रमज़ानुल मुबारक के महीने में ककरौली ज़िला मुज़फ़्फ़र नगर जाते और वहाँ मौमेनीन को वाज़ो नसीहत फ़रमाते थे , वहाँ के लोग आप का बहुत एहतेराम करते थे ।
मुफ़्ती साहब ने मुता’अद्दिद आसार तहरीर फ़रमाए जिन में : मौएज़ा ए फ़ाख़ेरा उर्दू ज़बान में और रिसालतुन फ़ित तक़लीद अरबी ज़बान में तहरीर फ़रमाया ।
मुफ़्ती अहमद अली साहब ने 16 ज़िलहिज्जा सन 1388 हिजरी में लखनऊ में दाइए अजल को लब्बैक कहा , आप के जनाज़े में मौमेनीन, ओलमा और तुल्लाबे उलूमे दीनी ने शिरकत की नीज़ मदरसा ए नाज़िमीया लखनऊ में सुपूर्दे ख़ाक किया गया ।
(माख़ूज़ अज़: नुजूमुल हिदाया, जिल्द 5, सफ़्हा 23, तहक़ीक़: मौलाना सैयद ग़ाफ़िर रिज़वी फ़लक छौलसी – मौलाना सैयद रज़ी ज़ैदी फंदेड़वी – दानिशनामा ए इस्लाम, नूर माइक्रो फ़िल्म, दिल्ली)