۱۱ تیر ۱۴۰۳ |۲۴ ذیحجهٔ ۱۴۴۵ | Jul 1, 2024
نجفی

हौज़ा / केंद्रीय कार्यालय नजफ अशरफ में हज़रत आयतुल्लाहिल उज़मा अलह़ाज ह़ाफ़िज़ बशीर हुसैन नजफ़ी नजफ़ अशरफ़ के प्रतिनिधित्व करते हुए हुज्जतुल इस्लाम सेैयद ज़ामिन जाफ़री साहब ने भारत के लखनऊ में खतीबे अकबर की बरसी की मजलिस में शिरकत की और उपस्थित लोगों की ख़िदमत में केंद्रीय कार्यालय का बयान पढ़ा और आयतुल्लाह का पैगाम पहुचाया।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,केंद्रीय कार्यालय नजफ अशरफ में हज़रत आयतुल्लाहिल उज़मा अलह़ाज ह़ाफ़िज़ बशीर हुसैन नजफ़ी नजफ़ अशरफ़ के प्रतिनिधित्व करते हुए हुज्जतुल इस्लाम सेैयद ज़ामिन जाफ़री साहब ने भारत के लखनऊ में खतीबे अकबर की बरसी की मजलिस में शिरकत की और उपस्थित लोगों की  ख़िदमत में केंद्रीय कार्यालय का बयान पढ़ा और आयतुल्लाह का पैगाम पहुचाया।

उन्होने बयान पढ़ते हुए सबसे पहले मरज ए आली क़द्र का सलाम , उनकी दुआएँ मोमेनीन की ख़िदमत में पेशकश की और विशेषकर वर्तमान एवं आने वाली युवा पीढ़ी को अपने मुसल्लेमा अक़ाएद पर कायम रहने के लिए आमंत्रित किया।
इस मजलिस को पाकिस्तान से आए हुज्जतुल इस्लाम अल्लामा सैयद शहंशाह हुसैन नकवी साहब ने ख़िताब किया।
(मजलिस में पढ़ा गया पूरा बयान)
بِسْمِ اللهِ الرَّحْمنِ الرَّحِيمِ
الحمد لله ربّ العالمين، والصّلاة والسّلام على محمّد وآله الميامين، واللعنة على اعدائھم  أَجمعين..
हाज़रीने मजलिस
सलामुन अलैकुम
सबसे पहले, मैं मरज ए आली क़द्र ह़ज़रत आयतुल्लाह अल उज़मा अलह़ाज ह़ाफ़िज़ बशीर हुसैन नजफ़ी (दाम जिललो हुल्-वारिफ़) का सलाम , उनकी दुआएँ पेश करता हूँ।
लखनऊ की धरती किसी परिचय की मोहताज नहीं है फ़ोक़हा उलेमा ख़ुतबा ज़ाकरीन मर्सियाखां नौहाखां और हौज़ए इल्मिया की  सरज़मीन पर इतने बड़े पैमाने पर मजलिसे अज़ा का आयोजन और बड़ी संख्या में मोमेनीन का शामिल होना इस बात का स्पष्ट संकेत है  के शिया, चाहे  कहीं भी हों, किसी भी स्थिति में हों, सैय्यद अल-शोहदा इमाम हुसैन अस की अज़ादारी इस क़ौम के लिए उनके स्वयं के जीवन और संपत्ति से अधिक प्रिय थी, है, और रहेगी,इंशाअल्लाह।

हज़रात मोमेनीन ;हम शियाओं की जो पहचान है जिससे हम पूरी दुनिया में पहचाने जाते हैं और यह हमारी पूरी क़ौम के लिए सम्मान की बात है उनमें से कुछ ये हैं कि हम तौहीद परस्त , मुहम्मद रसूल अल्लाह (स अ व आ व ) के आज्ञाकारी और बिला फ़स्ल बारह इमामों की इमामत, ख़िलाफ़त , विलायत , क़ियादत और उनकी इताअत , उनकी ख़ुशी को अपनी ख़ुशी उनके ग़म को अपना ग़म समझने वाली क़ौम हैं

क़ुरआन मजीद का एहतेराम और अज़ादारी इमाम हुसैन अस  को हम अपने जीवन और अपनी संपत्ति से अधिक महत्व देते हैं , हम शांतिवादी हैं, शांति फैलाने वाले हैं इंसानियत से रिश्ता और जुल्म-ज्यादती से नफरत हमारी क़ौम का शेवा है ,हम करबलाई समाज के लोग मज़लूमों से हमदर्दी और उसकी हिमायत को अपनी शरई नैतिक और सामाजिक ज़िम्मेदारी के साथ-साथ अपना सम्मान समझते हैं,

हमारे इस गौरवशाली क़ौम के सदस्य, जहाँ भी रहते हैं, मातृभूमि के प्रति प्रेम और निष्ठा को अपने ईमान का हिस्सा मानते हैं , यह जरूरी है कि हमारी वर्तमान और भावी पीढ़ियाँ हर कीमत पर अपने मुसल्लेमा अक़ाएद पर कायम रहे।

जिस युग में हम जी रहे हैं वह विकसित युग माना जाता है जहां मीडिया खासकर सोशल मीडिया समाज को प्रभावित कर रहा है इसलिए विशेषकर हमारे युवा भाई-बहनों को हालिया विकास को अपने और अपनी क़ौम के विकास की ओर मोड़ना चाहिए,

इससे बचने की बजाय इसका सकारात्मक उपयोग करना चाहिए , सोशल मीडिया के माध्यम से हमारे युवा भाई-बहनों को हमारी मुस्लिम मान्यताओं, हमारी पहचान, हमारी संस्कृति, सभ्यता और नैतिकता से दूर करने की दिन-रात साजिशें की जा रही हैं।

हमें इसका अच्छा अंदाज़ा है और पर्दे के पीछे के षडयंत्रकारी किरदारों से भी परिचित हैं हमारी क़ौम के सदस्यों, विशेषकर हमारे युवाओं को स्वयं को इल्म और अमल  से लैस करना चाहिए और इसका डट कर मुक़ाबला करना चाहिए , और अपने आप को मरजईयत , हौज़ए इल्मिया और उलेमा से जोड़े रखें। 

मरजईयत अपनी पूरी शिया क़ौम को अपने बच्चों के समान मानती है, जिस प्रकार एक पिता अपने बच्चों के लिए चिंतित रहता है, उसी प्रकार मरजईयत अपनी पूरी शिया क़ौम के लिए चिंतित रहती है और सभी संभावित संसाधनों के साथ बेहतर भविष्य के लिए कोशिश कर रही है। 

अल्लाह ने उपमहाद्वीप के शियाओं को विशेष सम्मान से नवाजा है वो यह है कि यहां के शिया ने मुहम्मद और मुहम्मद के परिवार के प्रति विलायत और आज्ञाकारिता और उनके दुश्मनों से दूरी का एक अच्छा उदाहरण स्थापित किया है यह जरूरी है कि हमारी वर्तमान और आने वाली पीढ़ियां भी उसी सुन्नत हसना पर कायम रहें।

आख़िर में परवरदिगार से दुआ है के ख़तीबे अकबर और ख़तीबे इरफ़ान के दरजात मज़ीद बुलंद करे और इस लखनऊ की जवानी ज़ुलैख़ा की जवानी की तरह पलट आए के जहाँ होजाते इल्मिया और मदारिसे दिनया से फ़ोक़हा और मुज्तहेदीन निकल कर पूरी दुनया की शियत की ख़िदमत फरमाते थे हज़राते उलेमा और मदारिस के ज़िम्मेदारों की तौफ़ीक़ात के लिए भी दुआ करते हैं वो कोशिश करें के पुराना दौर पलट आये और परवरदिगार उनकी कोशिशों को बरकतों से नवाज़ेगा।

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