۱ آذر ۱۴۰۳ |۱۹ جمادی‌الاول ۱۴۴۶ | Nov 21, 2024
कर्बला

हौज़ा/हज़रत इमाम हुसैन अ.स.से मुहब्बत करने वाले युवा, महिलाएं और पुरुष इसी रास्ते पर चलते हैं और सैय्यदुश्शोहदा के त्याग, समर्पण और बलिदान को याद करते हैं, भले ही कर्बला की घटना को सदियां बीत गई हों आज भी कर्बला ज़िन्दा हैं।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,हज़रत इमाम हुसैन अलै. के ज़ाएरीन तीन दिनों में नजफ अशरफ से कर्बला तक अस्सी किलोमीटर का रास्ता पैदल तय करेंगे और इमाम हुसान अलै. के रौज़े तक पहुंचेंगे। ज़ाएरीन का यह जुलूस सैय्यदुश्शोहदा और कर्बला के शहीदों के प्रति प्रेम दर्शाता है और हर ज़ाएर सच्चे अर्थों में हुसैनी बनकर नजफ़ से कर्बला तक का रास्ता तय कर रहा है।

हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) से  मुहब्बत करने वाले युवा, महिलाएं और पुरुष इसी रास्ते पर चलते हैं और सैय्यदुश्शोहदा  के त्याग, समर्पण और बलिदान को याद करते हैं, भले ही कर्बला की घटना को सदियां बीत गई हों।

वहीं, नजफ अशरफ में स्थित दुनिया के सबसे बड़े कब्रिस्तान वादी उस्सलाम में इन दिनों बड़ी संख्या में ज़ाएरीन जाकर फातिहा पढ़ते हैं।

नजफ अशरफ में वादी उस्सलाम कब्रिस्तान एक बहुत बड़ा और ऐतिहासिक कब्रिस्तान है, इसकी खूबियों के बारे में कई हदीसों में बताया गया है, यही वजह है कि शियों के लिए इसका बहुत महत्व है।

कुछ परंपराओं के अनुसार, कुछ पैगंबर और धर्मी लोग इस कब्रिस्तान में लौटेंगे वादी उस्सलाम कब्रिस्तान में इराकी निवासियों के अलावा ईरान, भारत, पाकिस्तान, लेबनान और अन्य देशों के लोगों की कब्रें भी देखी जाती हैं। वादी सलाम में कई प्रसिद्ध धार्मिक और गैर-धार्मिक हस्तियों को भी दफनाया गया है।

इस कब्रिस्तान में हज़रत यह्या, हज़रत लूत, हज़रत हूद और हज़रत सालेह अलै. को दफनाया गया है। रईस अली दिलवारी, सैयद मुहम्मद बाकिर अल-सद्र और अबू मेहदी अल-मुहांदिस की कब्रें भी वादी उस्सलाम में हैं।

 जगह जगह लगे कैम्प में ज़ाएरीन को अपनी सेवाएं प्रदान कर रहे हैं। इराकी लोग, विशेष रूप से महिलाएं, स्थानीय रोटियां बनाती हैं और उन्हें सैय्यद अल-शहादा के ज़ाएरीन को परोसती हैं। नजफ़ से कर्बला तक की 80 किलोमीटर की सड़क जुलूसों से भरी रहती है और विभिन्न देशों और धर्मों के लोग एक ही गंतव्य की ओर मार्च करते हैं।

हर शिया के दिल में अरबईन वाॅक पर जाने की इच्छा पाई जाती है क्योंकि यह दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक जुलूस है।

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