हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , एक रिपोर्ट के अनुसार ,हमास आंदोलन के प्रमुख नेता शहीद याह्या सिनवार ने ग़ाज़ा छोड़ने और मिस्र में सुरक्षित शरण लेने के प्रस्ताव को ठुकराकर अपनी ज़मीन और अपने लोगों के साथ अंतिम सांस तक संघर्ष करने का संकल्प लिया।
यह घटना उस वक्त की है जब ग़ाज़ा पर इज़रायली हमले बेहद तीव्र थे और हर पल खतरे में घिरे फिलिस्तीनी नेता को बचाने के लिए अरब मध्यस्थों ने उन्हें मिस्र जाने का मौका दिया था। लेकिन याह्या सिनवार, जो अपने दृढ़ विश्वास और संघर्ष के प्रतीक के रूप में जाने जाते थे मौत को गले लगाना बेहतर समझा।
अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने इस घटनाक्रम की गहराई से जांच की और स्ट्रीट जर्नल की एक रिपोर्ट ने इस बात की पुष्टि की कि सिनवार ने न केवल इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया बल्कि अपनी शहादत के बाद हमास के भविष्य को लेकर भी गहन विचार किया।
सिनवार का कहना था कि उनकी शहादत के बाद हमास को एक सामूहिक नेतृत्व परिषद बनानी चाहिए जिससे यह संगठन और भी मजबूत होकर इज़रायल के खिलाफ संघर्ष जारी रख सके। उन्होंने इस बात का भी अनुमान लगाया था कि उनकी शहादत के बाद इज़रायल विभिन्न प्रकार के प्रस्तावों के साथ हमास को गुमराह करने की कोशिश करेगा लेकिन फिलिस्तीनी प्रतिरोध को कभी हार नहीं माननी चाहिए।
याह्या सनावार का जन्म और उनकी पूरी जिंदगी ग़ाज़ा की संघर्षरत जमीन से जुड़ी रही। 16 अक्टूबर को ग़ाज़ा के रफ़ाह इलाके में इज़रायली बलों के साथ मुठभेड़ में, वे शहीद हो गए। इससे पहले इस्माइल हानिये के ईरान में शहीद होने के बाद, याह्या सिनवार को हमास का नेता नियुक्त किया गया था। अपनी शहादत तक उन्होंने फिलिस्तीनी प्रतिरोध की कमान संभाली और हमास की रणनीति और दिशा को मजबूती से आगे बढ़ाया।
इज़रायली सेना ने लगातार यह दावा किया कि सिनवार ग़ाज़ा की सुरंगों में छिपे हुए थे और उन्होंने इज़रायली बंधकों को ढाल बना रखा था। लेकिन इस दावे को उनकी शहादत के बाद झूठा साबित किया गया। सिनवार न केवल ग़ाज़ा में इज़रायली सेना के खिलाफ जमीनी संघर्ष में शामिल थे, बल्कि अपने आखिरी वक्त तक अपने लोगों के साथ खड़े रहे।