शनिवार 14 दिसंबर 2024 - 06:55
कुरान में ग़ौर-और-फ़िक्र: इलाही कलाम का नकारना संभव नहीं

हौज़ा/ यह आयत स्पष्ट करती है कि क़ुरान अल्लाह का कलाम है, जो किसी भी संदेह से परे है। इस पर ध्यान करने से व्यक्ति को अल्लाह की एकता, ज्ञान और न्याय का एहसास होता है। कुरान की सच्ची समझ ज्ञान के बिना संभव नहीं है और यह संदेश मनुष्य को मार्गदर्शन के मार्ग पर ले जाता है।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी

بسم الله الرحـــمن الرحــــیم   बिस्मिल्लाह अल-रहमान अल-रहीम

أَفَلَا يَتَدَبَّرُونَ الْقُرْآنَ ۚ وَلَوْ كَانَ مِنْ عِنْدِ غَيْرِ اللَّهِ لَوَجَدُوا فِيهِ اخْتِلَافًا كَثِيرًا   अफ़ाला यतदब्बरूनल क़ुरआना वलौ काना मिन इंदे ग़ैरिल्लाहे लवजदू फ़ीहे इख्तेलाफ़न कसीरा (नेसा 82)

अनुवाद: क्या ये लोग क़ुरआन में ग़ौर-ओ-फ़िक्र नहीं करते? अगर यह किसी और की तरफ से होता तो इसमें बहुत सारा اختلاف होता।

विषय:

क़ुरआन में ग़ौर-और-फ़िक्र की अहमियत और इसके इलाही कलाम होने का सबूत।

पृष्ठभूमि:

यह आयत सूरत अन-निसा में उतरी थी, जहाँ अल्लाह ने काफ़िरों और मुनाफ़िक़ों की गुमराही, उनके शक और शुब्हात, और क़ुरआन के खिलाफ़त का ज़िक्र किया है। यह आयत लोगों को क़ुरआन की सच्चाई और इसकी इलाही हैसियत को समझने के लिए ग़ौर-ओ-फ़िक्र करने की दावत देती है।

तफ़सीर:

  1. ग़ौर-और-फ़िक्र की दावतआयत का आरंभ सवालिया अंदाज़ में है, जो सुनने वालों को क़ुरआन के अर्थों पर ग़ौर करने के लिए प्रेरित करता है। यह तदब्बुर (ग़ौर-ओ-फ़िक्र) करने का आदेश देता है ताकि इंसान क़ुरआन को सही तरीके से समझ सके।

  2. क़ुरआन का इलाही कलाम होनाअगर क़ुरआन किसी इंसान का कलाम होता तो इसमें विरोधाभास और फर्क नजर आता, क्योंकि इंसानी इल्म और सोच सीमित होती है। लेकिन अल्लाह का कलाम हर तरह के विरोधाभास से पाक है।

  3. मुक़ाबला करने वालों के लिए ख़ामोश दलीलयह आयत उन लोगों के लिए एक स्पष्ट दलील है जो क़ुरआन के बारे में शक करते हैं। क़ुरआन में कोई भी विरोधाभास न होना इसके इलाही होने का सीधा सबूत है।

  4. तदब्बुर की अहमियततदब्बुर का मतलब केवल शब्दों को पढ़ना नहीं है, बल्कि इसके अर्थ, संदर्भ और संदेश को गहरे से समझना है।

अहम बिंदु:

  1. क़ुरआन का अनोखा तरीकाक़ुरआन की ज़बान, शैली और अर्थ हर समय में अपनी मिसाल खुद है।

  2. विरोधाभास से पाकक़ुरआन हर तरह के टकराव और विरोधाभास से मुक्त है, जो इसके रचयिता की बेपनाह इल्म को दर्शाता है।

  3. ग़ौर-और-फ़िक्र का पैगामअल्लाह ने इंसान को अपनी عقل और सोच का इस्तेमाल करने की तरगीब दी है ताकि वह क़ुरआन के संदेश को सही तरह से समझ सके।

  4. क़ुरआन और इल्मइल्म और तदब्बुर (ग़ौर-और-फ़िक्र) क़ुरआन को समझने की कुंजी है, जो इंसान की हिदायत के लिए ज़रूरी है।

परिणाम:

यह आयत साफ़ तौर पर यह बताती है कि क़ुरआन अल्लाह का कलाम है, जो हर शक और संदेह से ऊपर है। इस पर ग़ौर-और-फ़िक्र करने से इंसान को अल्लाह की एकता, हिकमत और इंसाफ़ का एहसास होता है। तदब्बुर के बिना क़ुरआन को सही से समझना मुमकिन नहीं है, और यही पैगाम इंसान को हिदायत की राह पर चलने के लिए प्रेरित करता है।

•┈┈•┈┈•⊰✿✿⊱•┈┈•┈┈•

सूर ए नेसा की तफ़सीर

टैग्स

आपकी टिप्पणी

You are replying to: .
captcha