۱۳ تیر ۱۴۰۳ |۲۶ ذیحجهٔ ۱۴۴۵ | Jul 3, 2024
क़ुरआन का टच करना

हौज़ा/क़ुरआन अल्लाह की तरफ़ से अपने बंदों के लिए एक अहद और मीसाक़ है मुसलमान को चाहिए कि वह अपना अहद नामा ध्यान से पढ़े और रोज़ाना पचास आयतों की तिलावत करे।उसके बाद आपने फ़रमाया क़ुरआन की तिलावत ज़रूर किया करो इसलिए कि क़ुरआन की आयतों के मुताबिक़ जन्नत के दर्जे होंगे जब क़यामत का दिन होगा तो क़ुरआन पढ़ने वाले से कहा जाएगा क़ुरआन पढ़ते जाओ और अपने दरजात बुलंद करते जाओ फिर वह जैसे जैसे आयतों की तिलावत करेगा उसके दरजात बुलंद होते चले जाएंगे।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,क़ुरआन वह आसमानी क़ानून और इलाही नामूस है जो लोगों की दुनिया और आख़ेरत की ज़मानत देता है, क़ुरआन की हर आयत हिदायत का स्रोत, रहमत और रहनुमाई की खान है।

जो भी हमेशा बाक़ी रहने वाली सआदत और दीन व दुनिया की कामयाबी का उम्मीदवार है उसे दिन रात क़ुरआन से अहद और पैमान बांधना चाहिए, उसकी आयतों को अपने दिमाग़ में जगह दे, और उन्हें अपनी फ़िक्र और आदत में शामिल करे ताकि हमेशा की कामयाबी और कभी ख़त्म न होने वाले व्यापार की तरफ़ क़दम बढ़ा सके।

क़ुरआन की फ़ज़ीलत में मासूमीन अ.स. और उनके अजदाद से बहुत सी हदीसें नक़्ल हुई हैं, जैसाकि इमाम मोहम्मद बाक़िर अ.स. फ़रमाते हैं कि पैग़म्बर स.अ. ने फ़रमाया: जो शख़्स रात में दस आयतों की तिलावत करे उसका नाम ग़ाफ़ेलीन (जो अल्लाह की याद से दूर रहते हैं) में नहीं लिखा जाएगा, और जो शख़्स पचास आयतों की तिलावत करे उसका नाम ज़ाकिरीन (जो अल्लाह को याद करते हैं) में लिखा जाएगा, और जो शख़्स सौ आयतों की तिलावत करे

क़ानेतीन (इबादत गुज़ारों) में लिखा जाएगा और जो शख़्स दो सौ आयतों की तिलावत करे उसका नाम ख़ाशेईन (जो अल्लाह के सामने विनम्र हैं) में लिखा जाएगा और जो शख़्स तीन सौ आयतों की तिलावत करे उसका नाम सआदत मंदों में लिखा जाएगा,

जो शख़्स पांच सौ आयतों की तिलावत करे उसका नाम इबादत और अल्लाह की परस्तिश की कोशिश करने वालों में लिखा जाएगा और जो शख़्स हज़ार आयतों की तिलावत करे वह ऐसा है जैसे उसने अल्लाह की राह में बहुत ज़्यादा सोना दिया हो।

इमाम जाफ़र सादिक़ अ.स. फ़रमाते हैं: क़ुरआन अल्लाह की तरफ़ से अपने बंदों के लिए एक अहद और मीसाक़ है, मुसलमान को चाहिए कि वह अपना अहद नामा ध्यान से पढ़े और रोज़ाना पचास आयतों की तिलावत करे।

उसके बाद आपने फ़रमाया: क़ुरआन की तिलावत ज़रूर किया करो (इसलिए कि) क़ुरआन की आयतों के मुताबिक़ जन्नत के दर्जे होंगे, जब क़यामत का दिन होगा तो क़ुरआन पढ़ने वाले से कहा जाएगा क़ुरआन पढ़ते जाओ और अपने दरजात बुलंद करते जाओ, फिर वह जैसे जैसे आयतों की तिलावत करेगा उसके दरजात बुलंद होते चले जाएंगे।

हदीस की किताबों में उलमा ने इस मज़मून की बहुत सी रिवायतों को एक जगह जमा कर दिया ताकि जिन्हें शौक़ है वह इन्हें पढ़ सकें।

इन्हीं रिवायतों में क़ुरआन में देख कर तिलावत करना ज़ुबानी तिलावत से कहीं बेहतर है जैसाकि हदीस में इमाम सादिक़ अ.स. ने फ़रमाया: जब इसहाक़ इब्ने अम्मार ने पूछा कि मेरी जान आप पर क़ुर्बान हो मैंने क़ुरआन हिफ़्ज़ कर लिया है और ज़ुबानी ही उसकी तिलावत करता हूं, मौला आप बताइए क्या इसी तरह बेहतर है या फिर देख कर तिलावत करूं?

आपने फ़रमाया: क़ुरआन देख कर तिलावत किया करो यह बेहतर तरीक़ा है, क्या तुम्हें नहीं मालूम कि क़ुरआन में देखना भी इबादत है, जो शख़्स क़ुरआन देख कर तिलावत करे उसकी आंखों की रौशनी में इज़ाफ़ा होता है और उसके वालेदैन के अज़ाब में कमी कर दी जाती है।
इसी तरह जिन घरों में क़ुरआन की तिलावत होती है उसके असर का भी ज़िक्र रिवायतों में मौजूद हैं:
वह घर जिसमें क़ुरआन की तिलावत की जाती हो और अल्लाह का ज़िक्र किया जाता हो उसकी बरकतों में इज़ाफ़ा होता है उसमें फ़रिश्तों का नुज़ूल होता है, शैतान उस घर को छोड़ देते हैं,

और यह घर आसमान वालों को रौशन देते हैं बिल्कुल उसी तरह जिस तरह आसमान के सितारे ज़मीन वालों को रौशनी देते हैं, और वह घर जिसमें क़ुरआन की तिलावत नहीं होती और अल्लाह का ज़िक्र नहीं होता उसमें बरकत कम होती है, फ़रिश्ते ऐसे घरों को छोड़ देते हैं और शैतान बस जाते हैं।
 

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