۴ آذر ۱۴۰۳ |۲۲ جمادی‌الاول ۱۴۴۶ | Nov 24, 2024
रहबर

हौज़ा/ सुप्रीम लीडर ने फरमाया,ज़ायोनी हुकूमत से संबंध बहाल करने का जुआ, हारने वाले घोड़े पर शर्त लगाने की तरह है जो कभी कामयाब नहीं होगा, क्योंकि फ़िलिस्तीन का अभियान आज पहले से ज़्यादा पुरजोश और ताज़ा दम है जबकि क़ाबिज़ हुकूमत आख़िरी सांसें गिन रही हैं।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,हज़रत आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने इस मुलाक़ात के दौरान उन्होंने अपने ख़िताब में कहा कि क़ुरआन मजीद से मुंह ज़ोर ताक़तें ख़तरा महसूस करती हैं जिसकी वजह से अल्लाह की इस किताब की तौहीन की साज़िशें रचती हैं।

उन्होंने इस बात पर ज़ोर देते हुए कि अमरीका और मुंहज़ोर ताक़तों से मुक़ाबले का रास्ता, इस्लामी मुल्कों के बीच एकता और बुनियादी मामलों में संयुक्त ऐक्शन प्लान अख़्तियार करना है, कहा कि ज़ायोनी हुकूमत से संबंध बहाल करने का जुआ, हारने वाले घोड़े पर शर्त लगाने की तरह है जो कभी कामयाब नहीं होगा, क्योंकि फ़िलिस्तीन का अभियान आज पहले से ज़्यादा पुरजोश और ताज़ा दम है जबकि क़ाबिज़ हुकूमत आख़िरी सांसें गिन रही है।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने इस मुलाक़ात में पैग़म्बरे इस्लाम और इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम के शुभ जन्म दिवस पर इस महापर्व की मुबारकबाद देते हुए कहा कि पैग़म्बरे इस्लाम के चमकते सूरज का इंसानियत के हर शख़्स की गर्दन पर हक़ है और सभी उनके क़र्ज़दार हैं क्योंकि पैग़म्बरे इस्लाम ने एक माहिर हकीम की तरह ग़रीबी, जेहालत, ज़ुल्म, भेदभाव, बेइमानी, लक्ष्यहीनता, अख़लाक़ी बुराइयों और सामाजिक मुश्किलों जैसी सभी मुख्य पीड़ाओं के इलाज का व्यवहारिक नुस्ख़ा इंसान को दिया है।

उन्होंने क़ुरआन मजीद की एक आयत का हवाला देते हुए पैग़म्बर के क़र्ज़ को अदा करने का रास्ता, अल्लाह की राह में भरपूर जेहाद को बताया और कहा कि जेहाद के मानी सिर्फ़ हथियार से जेहाद नहीं है बल्कि जेहाद सभी मैदानों में होता है चाहे वह इल्म का मैदान हो, राजनीति का मैदान हो या अध्यात्म और अख़लाक़ का मैदान हो और इन मैदानों में जेहाद के ज़रिए हम किसी हद तक इस पाक हस्ती का क़र्ज़ अदा कर सकते हैं।

आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने इस बात पर बल देते हुए कि आज इस्लाम से दुश्मनी, पहले से कहीं ज़्यादा ज़ाहिर है, इस दुश्मनी का एक नमूना क़ुरआन मजीद के जाहेलाना अनादर को बताया और कहा कि एक जाहिल बेवक़ूफ़ अनादर करता है और एक हुकूमत उसका सपोर्ट करती है जिससे पता चलता है कि अस्ल बात सामने दिखाई देने वाली घटना और क़ुरआन का अनादर नहीं है।

उन्होंने कहा कि इस बेवक़ूफ़ व जाहिल इंसान से हमें कोई मतलब नहीं है जो परदे के पीछे मौजूद तत्वों के लक्ष्य को पूरा करने के लिए अपने आपको सबसे बड़ी सज़ा, मौत की सज़ा का हक़दार बना रहा है, बल्कि अस्ल बात इस तरह के जुर्म और नफ़रत से भरी हरकत की योजना बनाने वालों की है।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने इस तरह की हरकतों से क़ुरआन मजीद को कमज़ोर करने के ख़याल को लज्जाजनक और क़ुरआन के दुश्मनों के अस्ली चेहरे बेनक़ाब होने का सबब बताया और कहा कि क़ुरआन मजीद हिकमत, अध्यात्म, आत्म निर्माण और जागरुकता की किताब है और कुरआन से दुश्मनी हक़ीक़त में इन बड़े मूल्यों से दुश्मनी है।

अलबत्ता क़ुरआन, बुरी ताक़तों के लिए ख़तरा है क्योंकि वह ज़ुल्म की भी निंदा करता है और ज़ुल्म का निशाना बनने वाले इंसान की भी निंदा करता है जो ज़ुल्म सहना गवारा कर लेता है।

आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जैसे घिसे पिटे, झूठे और ग़लत दावों की आड़ में क़ुरआन मजीद के अनादर को इस तरह के दावे करने वालों की फ़ज़ीहत का सबब बताया और सवालिया अंदाज़ में पूछा कि उन मुल्कों में जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बहाने क़ुरआन मजीद के अनादर की इजाज़त देते हैं, क्या ज़ायोनी प्रतीकों को निशाना बनाने की इजाज़त दी जाती है?  इससे ज़्यादा और कौन सी ज़बान के ज़रिए साबित किया जा सकता है कि ये लोग ज़ालिम, मुजरिम व लुटेरे ज़ायोनियों के पिट्ठू हैं? 

आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने अपने ख़िताब के दूसरे हिस्से में एकता हफ़्ते की ओर इशारा करते हुए, इस्लामी मुल्कों के अधिकारियों, राजनेताओं, इस्लामी जगत के विचारकों और योग्य लोगों को इस सवाल पर ग़ौर करने की दावत दी कि इस्लामी मुल्कों की एकता का दुश्मन कौन है, मुसलमानों की एकता किन लोगों के लिए नुक़सानदेह है और इस एकता से उनकी लूटमार और हस्तक्षेप में रुकावट पड़ती है?

उन्होंने इसका जवाब देते हुए कहा कि पश्चिम एशिया और उत्तरी अफ़्रीक़ा के इस्लामी मुल्कों में एकता अमरीका की मुंहज़ोरी, चोरी और हस्तक्षेप को रोक देगी। आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने कहा कि आज अमरीका इलाक़े के मुल्कों को राजनैतिक और आर्थिक चोट पहुंचाता है,

सीरिया का तेल चोरी करता है, ज़ालिम, वहशी व ख़ूंख़ार दाइश की रक्षा करता है ताकि ज़रूरत पड़ने पर उसे फिर से मैदान में ले आए, मुल्कों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करता है लेकिन अगर हम सभी एकजुट हो जाएं और ईरान, सीरिया लेबनान, सऊदी अरब, मिस्र, जॉर्डन और फ़ार्स की खाड़ी के तटवर्ती मुल्क बुनियादी मामलों में संयुक्त ऐक्शन प्लान अपनाएं तो मुंहज़ोर ताक़तें उनके आंतरिक मामलों और विदेश नीति में न तो हस्तक्षेप कर सकती हैं और न ऐसा करने की कल्पना भी सकती हैं।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने कहा कि जैसा कि हमने बारबार कहा है, हम किसी को भी जंग और फ़ौजी कार्यवाही के लिए प्रेरित नहीं करते और इससे परहेज़ करते हैं, इसलिए एक साथ रहने और एकता की दावत, अमरीका की जंग भड़काने की कार्यवाही को रोकने के लिए है क्योंकि अमरीकी जंग भड़काते हैं और इलाक़े में सभी जंगों की अस्ल वजह विदेश हाथ है।

उन्होंने इलाक़े के एक दूसरे मसले यानी ज़ायोनी शासन के लगातार जारी अपराधों के बारे में कहा कि आज यह हुकूमत न सिर्फ़ इस्लामी गणराज्य ईरान से बल्कि मिस्र, सीरिया और इराक़ जैसे अपने आस पास के सभी मुल्कों के ख़िलाफ़ नफ़रत व द्वेष से भरी हुयी है।

उन्होंने इस नफ़रत का कारण, अलग अलग मौक़ों पर इन मुल्कों की ओर से ज़ायोनियों की नील से फ़ुरात तक के इलाक़े पर क़ब्ज़ा करने की योजना की नाकामी को बताया और कहा कि ज़ायोनी नफ़रत व द्वेष से भरे हुए हैं लेकिन क़ुरआन मजीद के बक़ौल, जो कहता है कि “ग़ुस्से में रहो और उसी ग़ुस्से में मर जाओ” जान निकलने की हालत में है और अल्लाह की मदद से यह आयत ज़ायोनी हुकूमत के सिलसिले में साकार हो रही है।

आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने कहा कि इस्लामी गणराज्य का साफ़ नज़रिया यह है कि जो हुकूमतें ज़ायोनी हुकूमत से संबंध बहाल करने का जुआ खेल रही हैं, वो नुक़सान उठाएंगी क्योंकि इस हुकूमत का दम निकल रहा है और वो हुकूमतें हारने वाले घोड़े पर शर्त लगा रही हैं।

उन्होंने फ़िलिस्तीन पर क़ब्ज़े और ज़ुल्म के ख़िलाफ़ फ़िलिस्तीनियों के आंदोलन को आज पहले से ज़्यादा पुरजोश और ताज़ा दम बताया और कहा कि इंशाअल्लाह यह आंदोलन कामयाब होगा और जैसा कि इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह ने इस क़ाबिज़ हुकूमत को कैंसर का फोड़ा बताया है, ख़ुद फ़िलिस्तीनी अवाम और पूरे इलाक़े में प्रतिरोध की फ़ोर्सेज़ के हाथों इस हुकूमत की जड़ काट दी जाएगी।

उन्होंने अपने ख़िताब के आख़िर में उम्मीद जताई की इस्लामी जगत पूरी इज़्ज़त के साथ अल्लाह के करम से अपनी बेमिसाल प्राकृतिक व मानव संसाधनों से ज़्यादा से ज़्यादा लाभ उठाएगा।

इस मुलाक़ात के आग़ाज़ में राष्ट्रपति सैय्यद इब्राहीम रईसी ने तक़रीर करते हुए इंसान की सही तरबियत और तौहीद तथा न्याय पर आधारित समाज के गठन के लिए पैग़म्बरे इस्लाम के संघर्ष की ओर इशारा किया और  दुश्मनियों के मुक़ाबले में दृढ़ता और इसी तरह लक्ष्य की राह में डटे रहने को उनकी सबसे अहम शिक्षाओं में बताया। उनका कहना था कि एकता व दृढ़ता, इस्लामी जगत की एकजुटता और नई इस्लामी सभ्यता के गठन की ख़ुशख़बरी बनेगी।
 

टैग्स

कमेंट

You are replying to: .